चंडीगढ़ नगर निगम में पार्षद के कमरे पर ₹4 लाख से ज्यादा का टेंडर पर विवाद: RTI एक्टिविस्ट ने उठाए सवाल
- By Gaurav --
- Thursday, 18 Dec, 2025
Controversy over tenders worth over ₹4 lakh by Chandigarh Municipal
सेक्टर 33 के कम्युनिटी सेंटर में पार्षद के लिए बनाए जाने वाले कमरे पर 4 लाख रुपये से अधिक का खर्च विवाद का कारण बन गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट आर.के. गर्ग ने नगर निगम पर इस नाजायज खर्च (illegal expenditure) को लेकर कड़ा हमला किया है और प्रशासन से तुरंत रोक लगाने की मांग की है।
आर.के. गर्ग ने कहा कि यह खर्च पूरी तरह अनावश्यक और निगम के वित्तीय प्रबंधन के मानदंडों के खिलाफ है। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे खर्चों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और भविष्य में किसी भी नाजायज खर्च को रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।
वित्तीय प्राथमिकताओं पर सवाल: आरटीआई एक्टिविस्ट ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि नगर निगम एक तरफ आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के समय पर वेतन भुगतान के लिए पर्याप्त पैसे नहीं रखता, जबकि दूसरी ओर पार्षद के कमरे पर लाखों रुपये खर्च करने का टेंडर निकाला जा रहा है। उनका कहना है कि यह प्रशासन की प्राथमिकताओं और वित्तीय जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
नगर निगम की प्रतिक्रिया: इस मामले पर नगर निगम प्रशासन ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि पार्षद और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच इस मुद्दे पर चर्चा की संभावना जताई जा रही है।
विशेषज्ञों का दृष्टिकोण: सिविल एडमिनिस्ट्रेशन विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के नाजायज खर्च भविष्य में निगम के बजट और स्थानीय विकास परियोजनाओं पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना किसी भी नगरपालिका प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।
आम जनता की प्रतिक्रिया: स्थानीय नागरिकों ने भी इस खर्च पर सवाल उठाए हैं। कई लोगों का कहना है कि इस पैसे को विकास कार्यों और जनता की सुविधाओं में लगाया जाना चाहिए था।
चंडीगढ़ नगर निगम में नाजायज खर्च और अधूरी परियोजनाओं का मामला
सेक्टर 33 के कम्युनिटी सेंटर में पार्षद के लिए बनाए जाने वाले कमरे पर 4 लाख रुपये से अधिक का खर्च विवादित हो गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट आर.के. गर्ग ने नगर निगम पर इस नाजायज खर्च (illegal expenditure) को लेकर कड़ा हमला किया है और प्रशासन से तुरंत रोक लगाने की मांग की है।
आर.के. गर्ग ने कहा कि यह खर्च पूरी तरह अनावश्यक है और निगम के वित्तीय प्रबंधन के मानदंडों के खिलाफ है। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे खर्चों पर पुनर्विचार होना चाहिए और भविष्य में किसी भी नाजायज खर्च को रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।
आरटीआई एक्टिविस्ट ने यह भी सवाल उठाया कि नगर निगम एक तरफ आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के समय पर वेतन भुगतान के लिए पर्याप्त पैसे नहीं रखता, जबकि दूसरी ओर पार्षद के कमरे पर लाखों रुपये खर्च करने का टेंडर जारी किया जा रहा है।
नगर निगम प्रशासन ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पार्षद और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच इस मुद्दे पर चर्चा की संभावना जताई जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ऐसे नाजायज खर्चों पर रोक नहीं लगी, तो भविष्य में निगम के बजट पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और जनता के हितों के लिए जोखिम बढ़ सकता है।
अधूरी परियोजनाओं और वित्तीय संकट
• शहर की सड़कों की बदहाली: कई क्षेत्रों की सड़के टूटी पड़ी हैं, रिपेयरिंग कार्य पेसो की कमी के कारण अधूरा पड़ा है।
• पुराने टेंडर अधूरे पड़े: निगम द्वारा जारी पुराने टेंडरों के काम पैसे की कमी में रुके हुए हैं।
• सेक्टर 23 सामुदायिक केंद्र: पिछले 2 साल से रेनोवेशन कार्य अधूरा, पेसो की कमी के कारण काम बंद।
• वित्तीय प्राथमिकताएं: एक तरफ नाजायज खर्च और दूसरी तरफ जनता की जरूरी सुविधाओं पर काम नहीं हो पा रहा।