Chaudhary Santokh Singh

Editorial :पंजाब में दलित राजनीति के पर्याय थे चौधरी संतोख सिंह

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Chaudhary Santokh Singh

Dalits were synonymous with politics in Punjab भारत जोड़ो यात्रा में शामिल रहे कांग्रेस के जालंधर से लोकसभा सांसद चौधरी संतोख सिंह का असामयिक निधन बेहद दुखद है। पंजाब की राजनीति में दलित समाज का प्रतिनिधित्व करते रहे चौधरी संतोख सिंह Chaudhary Santokh Singh के निधन से जो रिक्ति कायम हुई है, वह भरी नहीं जा सकेगी। 76 वर्षीय संतोख सिंह भी कोरोना की चपेट में आए थे लेकिन उससे उन्होंने जीत हासिल कर ली थी, लेकिन उन्हें मधुमेह की समस्या भी थी। अब चिकित्सक बता रहे हैं कि कोरोना प्रभावित व्यक्ति की सर्दी में नाडिय़ां सिकुडऩे की संभावना पैदा हो रही है।

आजकल की कड़कती ठंड में सुबह के 7 बजे उनका यात्रा में शामिल होना अपने आप में बड़ी बात थी, लेकिन कुछ दूर चलने पर ही वे लडख़ड़ा गए। चौधरी संतोख सिंह Chaudhary Santokh Singh चार दशक से पंजाब की राजनीति में सक्रिय थे। उन्होंने समाज और राजनीति में जो जगह कायम की थी, उसी का परिणाम है कि उनके देहांत पर सभी राजनीतिक दलों Political parties के नेताओं और समाज के लोगों ने संवेदनाएं व्यक्त की हैं।
 

चौधरी संतोख सिंह Chaudhary Santokh Singh लोकसभा में पंजाब के हितों को लेकर सदैव सक्रिय रहे। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र जालंधर समेत पूरे पंजाब के मुद्दों को उठाया। इनमें पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप post matric scholarship का मुद्दा हो या फिर पंजाब में नशे का। जानकार बताते हैं कि वे हर मुद्दे पर अपने तर्कों व तथ्यों से सदन को अवगत करवाते थे। सदन में एकबार उन्होंने कहा था कि अपने संसदीय क्षेत्र के एक ऐसे गांव को उन्होंने गोद लिया है, जहां युवा नशे की गिरफ्त में थे और गांव की ज्यादातर आबादी अनुसूचित जाति की है।

मार्च 2021 में लोकसभा में नई शिक्षा नीति पर चर्चा के दौरान भी उन्होंने प्रमुखता से अपनी राय रखी थी। उनका कहना था कि शिक्षा, रोजगार व अर्थव्यवस्था employment and economy को एक किया जाना चाहिए। सरकार ने शिक्षा बनाई है लेकिन उसके लिए बजट बहुत कम रखा गया है। उनका यह भी कहना था कि कांग्रेस सरकारों के समय साल 2014-15 में शिक्षा का जितना बजट होता था, उससे भी कम बजट अब रखा जा रहा है। जाहिर है, वे यह कहना चाहते थे कि अगर शिक्षा का स्तर बढ़ेगा तो रोजगार के साधनों में भी इजाफा होगा।

चौधरी संतोख सिंह Chaudhary Santokh Singh का संबंध बड़े राजनीतिक परिवार से रहा। उनके पिता चौधरी मास्टर गुरबंता सिंह 1927 से कांग्रेस से जुड़े थे। वे स्वतंत्रता सेनानी थे और फिर देश के आजाद होने के बाद कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। यह भी खूब है कि 95 साल से कांग्रेस से 3 पीढिय़ां जुड़ी रही और अगले पांच साल बाद यह सफर 100 साल का होने जा रहा था, लेकिन चौधरी संतोख सिंह के जीवन की यात्रा देश को जोडऩे के लिए निकली भारत जोड़ो यात्रा के दौरान संपन्न हो गई।

यह कितना यादगार होता जब एक परिवार का 100 वर्षों का राजनीतिक सफर एक पार्टी के साथ पूरा होता। बेशक, अभी उनके बेटे विक्रमजीत चौधरी फिल्लौर Vikramjit Chowdhary Phillaur से कांग्रेस विधायक हैं। चौधरी संतोख सिंह का राजनीतिक रसूख ही था कि वे दो बार जालंधर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। उनके भाई चौधरी जगजीत सिंह भी लगातार पांच बार करतारपुर सीट से विधायक और मंत्री रहे। यह इस परिवार का कांग्रेस और राज्य एवं देश के प्रति समर्पण है कि वह अपने मूल्यों, सिद्धांतों से आबद्ध रहते हुए समाज में योगदान देते रहे, दे रहे हैं। कहा जाता है कि दोआबा में बड़े सियासी फैसले चौधरी परिवार के बगैर नहीं लिए जाते थे।
   

कांग्रेस का पर्याय बने चौधरी संतोख सिंह Chaudhary Santokh Singh के देहावसान से कांग्रेस का एक मजबूत सिपाही चला गया है। यह पार्टी के लिए बड़ी क्षति है। वे कट्टर कांग्रेसी थे लेकिन उनके सामाजिक रिश्ते सभी दल के नेताओं के साथ थे। अब जब अगले वर्ष लोकसभा चुनाव भी प्रस्तावित हैं, तब जालंधर में रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव भी निश्चित हो गया है। इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए सभी दल कमर कसेंगे। कांग्रेस के लिए यह चुनौतीपूर्ण होगा कि वह इस सीट पर अपनी दावेदारी को कायम रखे।

पंजाब की राजनीति देशभर में चर्चा का विषय रहती है। संभव है, राज्य में नए समीकरण बने। हालांकि चौधरी संतोख सिंह जैसे राजनीतिक की अनुपस्थिति में राज्य में दलित राजनीति के नए कर्णधारों को भी आगे आना होगा। देश में दलित राजनीति पहले ही पिछड़ी हुई है, चौधरी संतोख सिंह Chaudhary Santokh Singh जैसे बड़े राजनीतिक परिवार की वजह से यह चर्चा में थी लेकिन अब इसकी भरपाई के प्रयास करने होंगे। 

 

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