पूरब के हमारे पड़ोसी देश म्यांमार को कभी बर्मा कहा जाता था। पर, पूर्वी एशियाई देशों के बीच ये स्वर्णभूमि के तौर पर मशहूर है। आप बर्मा या म्यांमार के शहरों के ऊपर से गुजरें तो पूरी जमीन के ऊपर सुनहरी चादर सी तनी नजर आती है। सुनहरे स्तूप, मंदिर और पगोड़ा ही नजर आते हैं। फिर चाहे शहरों की व्यस्त सड़कें हों या गांव के शांत इलाके। आप आसमान से जमीन पर उतरें तो आप को कदम-कदम सुनहरे बौद्ध मंदिर दिखाई देंगे। सबसे बड़े मंदिर तो पहाड़ों पर स्थित हैं। वहीं, छोटे-छोटे मंदिर पुराने पेड़ों के नीचे या लोगों के घरों के सामने बने दिखते हैं। यूं कहें कि हर तरफ सोना ही सोना नजर आता है। इरावदी नदी इस स्वर्णभूमि के दिल से गुजरती है। इसके किनारे ही असली बर्मा या म्यांमार है।
पहाड़ों पर बने विशाल बौद्ध मंदिर, बूंदों से भरे बादल, दूर-दूर तक फैले जंगल और किनारों पर स्थित छोटे-बड़े मकान ऐसे लगते हैं मानो किसी कलाकार ने कूची से एक कृति रच दी हो। मांडले बिजनेस फोरम के मुताबिक, मांडले के आस-पास की पहाडिय़ों पर ही सात सौ से ज्यादा स्वर्ण मंदिर हैं। इन्हें इरावदी नदी की लहरों पर तैरते हुए देखा जा सकता है। बगान नाम के शहर के इर्द-गिर्द तो 2200 से ज्यादा मंदिरों और पगोडा के खंडहर बिखरे हुए हैं।
11वीं से 13वीं सदी के बीच पगान साम्राज्य के दौर में यहां दस हजार से ज्यादा मंदिर हुआ करते थे। इसी दौर में बौद्ध धर्म का विस्तार पूरे म्यांमार में हो रहा था। हालांकि बौद्ध धर्म ने बर्मा की धरती पर दो हजार साल पहले ही कदम रख दिए थे।मांडले के पेशेवर गाइड सिथु हतुन कहते हैं कि बर्मा की संस्कृति में सोने की बहुत अहमियत है। यहां अभी भी परंपरागत तरीके से ही सोने को तरह-तरह के रंग-रूप में ढाला जाता है। इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि सोना पूरी तरह से शुद्ध है। 24 कैरेट गोल्ड है।
बांस की पत्तियों के बीच में सोने को रखकर सौ से दो सौ परतें तैयार की जाती हैं। फिर इन्हें ढाई किलो के हथौड़ों से करीब 6 घंटे तक पीटा जाता है। ताकि ये सही आकार ले सकें। फिर इन्हें पतले-छोटे एक एक इंच के टुकड़ों में काटा जाता है। सोने की ये पत्तियां मंदिरों में चढ़ाई जाती हैं। सोने का इस्तेमाल परंपरागत दवाओं में भी होता है।
यही नहीं, यहां की स्थानीय शराब में भी सोने के ये पत्तर डाले जाते हैं। स्थानीय शराब को व्हाइट व्हिस्की के नाम से जानते हैं। इनकी बोतलों में सोने के पतले पत्तर डाल कर हिलाया जाता है। फिर इस सोने मिली शराब को गिलास में डालकर लोग उसका लुत्फ लेते हैं।
म्यांमार में सोने को बहुत पवित्र माना जाता है। यहां की 90 फीसदी आबादी बौद्ध है। बौद्ध धर्म में सोने को बहुत अहमियत दी जाती है, क्योंकि सोने को सूरज का प्रतीक माना जाता है और सूरज ज्ञान और बुद्धि की नुमाइंदगी करता है।
बर्मा के लोग मंदिरों को सोने से सजाकर बुद्ध को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। सिथु हतुन कहते है कि खास मौकों पर बनने वाले चावल और सब्जियों में भी सोने के टुकड़े डाले जाते हैं। लड़कियां सोने से श्रृंगार करने के अलावा केले और सोने के बने हुए फेस मास्क से चेहरे भी चमकाती हैं। माना ये जाता है कि सोना त्वचा के अंदर जाता है तो उससे मुस्कान बेहतर होती है। म्यांमार में सोना मिलता भी खूब है। मांडले शहर के पास ही सोने की कई खदाने हैं। इसके अलावा इरावदी और चिंदविन नदियों की तलछट में भी सोना मिलता है। बालू से सोने को अलग करने के लिए पारे का इस्तेमाल होता है। पर, इस पारे की वजह से मछलियां मर जाती हैं।
बालू के अवैध खनन से भी इरावदी नदी को भारी नुकसान पहुंच रहा है। हालांकि स्थानीय स्तर पर नदी, बालू और जंगलों के संरक्षण का काम भी हो रहा है। मांडले शहर के पुराने हिस्से में सुनारों की बस्ती है। वहां पर बहुत से लोग दिन भर सोने की कुटाई का काम करते रहते हैं। भयंकर गर्मी और उमस में भी इनका काम रुकता नहीं है। ज्यादातर लोग कई पीढिय़ों से यही काम करते आए हैं। सोने की कुटाई का काम मर्द करते हैं और औरतें, तैयार पत्तरों को टुकड़ों में काटने का काम करती हैं।
सोने के उन टुकड़ों को बांस के कागज में लपेट कर फिर बेचा जाता है। लकड़ी के टुकड़ों पर नक्काशी के लिए भी सोने का इस्तेमाल होता है।
म्यांमार ने सियासी अस्थिरता के लंबे दौर देखे हैं। इसलिए यहां सोने को करेंसी के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। मौजूदा रोहिंग्या संकट की वजह से एक बार फिर से सोने की अहमियत बढ़ गई है। बर्मा के लोग बैंकों में बचत खातों की जगह सोना खरीदने को तरजीह देते हैं। छोटे से छोटे कस्बे में सोने की दुकानें मिल जाती हैं।
1948 में अंग्रेजों से आजाद होने के बाद से ही देश की अर्थव्यवस्था अस्थिरता और बाकी दुनिया से अलगाव के दौर से गुजरती रही है। इसीलिए सोने में निवेश को लोग आज भी सब से सुरक्षित मानते हैं। सैन्य शासन के दौरान म्यांमार का ताल्लुक बाकी दुनिया से बहुत ही कम रहा था। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पाबंदियां हटी हैं।
यहां पर बौद्ध धर्म का बोलबाला है। सुबह के वक्त बौद्ध भिक्षु और पादरी गलियों में घूमते हुए दान में खाना मिलने की उम्मीद करते हैं। दान करना, भारत की ही तरह बर्मा में भी एक अहम परंपरा है। लोग अनजान शख्स को भी खाने-खिलाने में यकीन रखते हैं। चाय-पानी तो कराते ही हैं। खाना भी खाकर जाने की जिद करते हैं। बर्मा के लोग सिर्फ देना जानते हैं। कुछ लेना नहीं।
मांडले शहर में बर्मा का सबसे पवित्र मंदिर महामुनि पाया स्थित है। यहां पर सुबह चार बजे से ही भारी भीड़ जुट जाती है। यहां सुनहरे बुद्ध विराजमान हैं। लोग स्थानीय बाजार से सोने के पत्तर खरीदकर भगवान बुद्ध को अर्पित करते हैं। सिथु कहते हैं कि, ‘हम भगवान बुद्ध को ज्यादा से ज्यादा सोना अर्पित करना चाहते हैं। उनके ढेरों मंदिर और पगोड़ा बनवाना चाहते हैं। फिर उन मंदिरों को अपनी पवित्र जमीन पर मिलने वाले सोने से सजाना चाहते हैं।