Nayab cabinet.

Editorial: नायब मंत्रिमंडल में मिला प्रदेश के सभी वर्गों को सही प्रतिनिधित्व

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हरियाणा में मुख्यमंत्री नायब सैनी ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर राज्य में विभिन्न समुदायों, वर्गों और क्षेत्रों को साधने की कोशिश की है। मुख्यमंत्री सैनी और 5 मंत्रियों के पहले ही शपथ ग्रहण करने के बाद अब 8 और विधायकों को मंत्री बनाया गया है, इनमें एक कैबिनेट मंत्री वहीं अन्य स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री होंगे। मंत्रिमंडल विस्तार में सबसे अनोखी बात यह देखी जा रही है कि निर्दलीय विधायकों की पूरी तरह अनदेखी की गई है।

हालांकि एकमात्र निर्दलीय चौ. रणजीत सिंह चौटाला शुरू में ही मंत्री बनाए जा चुके हैं, लेकिन रणजीत सिंह चौटाला का रुझान पूरी तरह भाजपा के प्रति है और केंद्रीय नेतृत्व भी उन्हें मान दे रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों ने पहले जजपा को खुद से अलग कर लिया, लेकिन अब निर्दलीय विधायकों को भी अलग करके कोई दूर की योजना पर काम शुरू किया है। गौरतलब है कि भाजपा ने बीते चुनाव में प्रदेश में 75 पार का नारा दिया था, हालांकि पार्टी 40 सीटें ही ले पाई थी। इस बार पार्टी नेताओं का दावा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाते हुए हैट्रिक कायम करने का है। लेकिन राज्य में चुनावी माहौल अगले छह महीने बाद किस तरह का होगा, इसका अंदाजा अभी से नहीं लगाया जा सकता। लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गठबंधन तोड़ने और अपने विधायकों को ही मंत्री पद सौंपने जैसी कवायद राजनीतिक विश्लेषकों को भी पहेली नजर आ रही है।

भाजपा के नेता बीते कुछ समय से जजपा से अलग होने की रट लगाए हुए थे। पूर्व मंत्री बीरेंद्र सिंह समेत अनेक नेता गाहे-बगाहे इसकी जरूरत बता रहे थे। हालांकि गठबंधन खत्म होने से पहले ही बीरेंद्र सिंह के सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह कांग्रेस में चले गए। अब मौजूदा परिस्थितियों में न जजपा की ओर से तीखे बयान भाजपा के प्रति आ रहे हैं और न ही भाजपा की ओर से कोई ऐसा बयान दिया जा रहा है जोकि जजपा नेताओं का दिल दुखाए। हालांकि जिन निर्दलीय विधायकों को भाजपा, जजपा की तुलना में अपने फिक्स डिपॉजिट की भांति प्रयोग कर रही थी, उनमें से एक के अलावा किसी अन्य को मंत्री न बनाया जाना चकित करता है। स्थिति ऐसी है कि अगर पांच निर्दलीय विधायक अपना समर्थन वापस ले लें तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी।

आखिर भाजपा को इतना बड़ा जोखिम लेने की क्या जरूरत आ पड़ी। क्या इसे पार्टी के रणनीतिकारों का अति आत्मविश्वास तो नहीं कहा जाएगा। यह तब है, जब पार्टी ने पूर्व गृहमंत्री एवं छह बार के विधायक अनिल विज की पूरी तरह से अनदेखी कर दी है। उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार में कोई जगह नहीं मिली है। इससे पहले नए मुख्यमंत्री के चयन में भी विज की उपेक्षा की गई थी। माना जा रहा था कि विज को मना लिया जाएगा और पंजाबी वोट बैंक को पार्टी नाराज नहीं होने देगी। लेकिन अब विज के स्थान पर अम्बाला सिटी से असीम गोयल को मंत्री बना दिया गया है, यह जैसे विज के समकक्ष गोयल को खड़ा करने की कोशिश है।

गौरतलब है कि नायब मंत्रिमंडल में जीटी रोड बेल्ट को सबसे ज्यादा अहमियत हासिल हुई है। वहीं जातीय समीकरणों के अनुसार समझें तो अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी से मुख्यमंत्री नायब सैनी, कैबिनेट मंत्री कंवरपाल गुर्जर और राज्यमंत्री अभय सिंह यादव शामिल हैं तो जाट समाज से जेपी दलाल, रणजीत चौटाला, महिपाल ढांडा कैबिनेट का हिस्सा हैं। वैश्य समाज से डॉ. कमल गुप्ता, असीम गोयल को स्थान मिला है वहीं ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व मूलचंद शर्मा कर रहे हैं। अजा एवं पिछड़ा वर्ग से डॉ. बनवारी लाल और बिशंभर वाल्मीकि प्रतिभागिता कर रहे हैं, इसी प्रकार राजपूत समाज से संजय सिंह एवं पंजाबी समाज से सीमा त्रिखा, सुभाष सुधा को स्थान दिया गया है। इस मंत्रिमंडल को देखकर ऐसी कोई बात नहीं की जा सकती कि फलां वर्ग को महत्व नहीं दिया गया है।

वास्तव में सरकार का चेहरा बदलकर भाजपा ने चुनाव से पहले सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने की कोशिश की है, वहीं मंत्रियों में भी नए चेहरे सामने लाए गए हैं। यह मुख्यमंत्री नायब सैनी एवं पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सुनियोजित कार्ययोजना का हिस्सा है। बेशक अगले तीन महीने तक सरकार कोई नयी घोषणा भी नहीं कर सकेगी, लेकिन फिर भी मंत्रिपरिषद का नए सिरे से गठन करके यह जताया गया है कि सरकार सभी वर्गों एवं क्षेत्रों को लेकर आगे बढ़  सरकार सभी वर्गों एवं क्षेत्रों को लेकर आगे बढ़ रही है।

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