Now the ruckus on the Lakhimpur Kheri scandal

अब लखीमपुर खीरी कांड पर रार

अब लखीमपुर खीरी कांड पर रार

Now the ruckus on the Lakhimpur Kheri scandal

Now the ruckus on the Lakhimpur Kheri scandal: किसान आंदोलन अब खत्म हो चुका है, लेकिन इस आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के स्याह धब्बे अब और ज्यादा चमकने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में ४ किसानों को गाड़ी से कुचल कर मारने के मामले में गठित एसआईटी ने कह दिया है कि किसानों पर जानबूझकर और साजिशन गाड़ी चढ़ाई गई। इससे पहले यह मामला गैर इरादतन हत्या का था लेकिन अब इसे इरादे के साथ किया गया कत्ल बताया गया है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र के खिलाफ दर्ज मामले में पुलिस ने अब धारा परिवर्तित कर दी है। केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के लिए यह मामला इतना दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसकी वजह से जहां पार्टी को बैकफुट पर आना पड़ा है, वहीं अब केंद्रीय गृहराज्य मंत्री टेनी विपक्ष के निशाने पर हैं। विपक्ष उनका इस्तीफा चाहता है और केंद्र सरकार की मंशा उन्हें बनाए रखने की है। आखिर भाजपा के सामने ऐसी क्या मजबूरी है कि वह केंद्रीय मंत्री से इस्तीफा लेने का साहस नहीं कर पा रही है? इसकी वजह पूरी तरह से राजनीतिक जान पड़ रही है, क्योंकि भाजपा केंद्रीय मंत्री मिश्र का इस्तीफा लेकर ब्राöण मतदाता को नाराज नहीं करना चाहती। वहीं यह भी धारणा है कि बेटे की करतूत का प्रतिफल पिता को नहीं दिया जा सकता। हालांकि यह धारणा अटपटी है, क्योंकि आशीष मिश्र पर जो आरोप लगे हैं,  वे एक केंद्रीय मंत्री का बेटा होने के नाते ही लगे हैं। आंदोलनकारी किसानों ने एक केंद्रीय मंत्री के बेटे के खिलाफ प्रदर्शन किया था, इस दौरान यह वारदात घटी।  

 गौरतलब है कि इस मामले की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है। आशंकाएं ऐसी भी हैं कि एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में सीधे-सीधे इसे इरादतन हत्या करार दिया है। एक केंद्रीय मंत्री के आरोपी बेटे के संबंध में जांच एजेंसी की ऐसी साफगोई हैरत में डालती है, कहा यह भी जा रहा है कि कहीं चुनाव की वजह से किसानों को और ज्यादा संतुष्ट करने के लिए तो ऐसा नहीं किया गया है। अब एकतरफ एसआईटी इसे इरादतन हत्या करार दे रही है तो केंद्र सरकार आरोपी बेटे के पिता केंद्रीय मंत्री को बचाने में लगा है। लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट का चुनावी गणित यह है कि यह प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है। खीरी और आसपास के 5 जिलों में 42 विधानसभा सीटें हैं। अगर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहां से भाजपा ने 37 सीटें जीती थीं। इसके बाद सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर भाजपा यहां पर इतना संभल कर क्यों चल रही है। यह तब है, जब केंद्रीय मंत्री टेनी के खिलाफ विपक्ष हाथ धोकर पीछे पड़ चुका है। टेनी अपने लोकसभा क्षेत्र में एक ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन करने पहुंचे थे तो उनकी मीडिया कर्मियों से झड़प हो गई थी। टेनी पर अपशब्द बोलने के भी आरोप हैं। उस घटना के लिए सीधे केंद्रीय मंत्री को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि किसान आंदोलनकारियों की ओर से भी लगातार भडक़ाऊ बयानबाजी और कार्रवाई की गई। अगर किसान आंदोलकारी शांतिपूर्ण तरीके से अपने आंदोलन को चलाए रखते तो ऐसे हालात ही पैदा नहीं होते।

   संसद में आजकल यह मसला जोर-शोर से उठाया जा रहा है। विपक्ष चाहता है कि केंद्रीय मंत्री अपने पद से इस्तीफा दे दें। विपक्ष के पास एसआईटी की रिपोर्ट का हथियार है। यह वारदात घटने के बाद भी विपक्ष ने केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे की मांग की थी, लेकिन फिर सबकुछ शांत हो गया था, हालांकि केंद्र सरकार और किसान आंदोलनकारियों के बीच हुए समझौते में केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे की बात भी शामिल थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को वापस ले लिया वहीं मृतक किसानों के परिजनों को भी मुआवजा दे दिया। अब एसआईटी की रिपोर्ट ने नए सिरे से विपक्ष की तेवर तीखे कर दिए हैं। विपक्ष भी जानता है कि केंद्रीय मंत्री को हटाए जाने का राजनीतिक असर क्या होगा। मालूम हो, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि प्रधानमंत्री को माफी मांगने का टाइम आ गया है, लेकिन पहले आरोपी के पिता को मंत्री पद से हटाएं। वहीं प्रियंका गांधी भी इसकी मांग कर रही हैं कि इस साजिश में गृह राज्य मंत्री की क्या भूमिका थी, इसकी जांच होनी चाहिए। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है। माननीय अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार भी लगाई थी और उसे निर्देशित भी किया था कि हत्या के बाकी मामलों में जैसी कार्रवाई होती है, वैसी ही इस मामले में भी करे। अदालत का यह भी कहना था कि यह गंभीर केस है और जैसे देखा जाना चाहिए था, वैसे देखा नहीं गया। हालांकि अदालत को सरकार ने विश्वास दिलाया था कि सभी कमियों को दूर किया जाएगा।

   कानून कहता है कि जब तक आरोप साबित नहीं हो जाते, तब तक किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यही बात केंद्रीय गृहराज्यमंत्री अजय मिश्रा भी कह रहे हैं। उनकी दलील है कि उनके पास इसके सबूत हैं कि न तो वे खुद और न ही उनका बेटा घटनास्थल पर मौजूद थे। फिर वे यह भी दावा कर रहे हैं कि अगर उनके बेटे की मौजूदगी का प्रमाण साबित हो जाए तो वे मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। ऐसे में यह विचारणीय है कि विपक्ष उनके इस्तीफे के लिए क्यों इतनी जोर आजमाइश कर रहा है। हालांकि सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री क्यों नहीं उनका इस्तीफा ले रहे। लखीमपुर खीरी मामला यूपी चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेगा, इसमें कोई दो राय नहीं, भाजपा फूंक-फूंक कर कदम रख रही है, जो उसकी रणनीति का हिस्सा है।