Chautala family will not be one

चौटाला परिवार नहीं होगा एक

चौटाला परिवार नहीं होगा एक

Chautala family will not be one

Chautala family will not be one राजनीति और पारिवारिक रिश्ते साथ-साथ नहीं चल सकते। दोनों में टकराव निश्चित होता है और फिर विभाजन भी। ऐसा बहुत कम देखा गया है कि एक परिवार राजनीतिक रूप से दो विचारधाराओं में बंट जाए लेकिन पारिवारिक रूप से फिर भी एक रहें। हरियाणा में इनेलो दो फाड़ हुई तो चौटाला परिवार भी बिखर गया। चौधरी देवीलाल के लगाए इनेलो रूपी पौधे को बड़ा होते सभी ने देखा और फिर उस पर फल भी आए लेकिन उनके पुत्र ओमप्रकाश चौटाला के बेटों और पोतों के बीच जो वैचारिक द्वंद्व पैदा हुआ, उसने न केवल इनेलो को दो फाड़ कर दिया अपितु परिवार के भी दो टुकड़े कर दिए। यह कितना कष्टपूर्ण रहा होगा, इसका अंदाजा सामाजिक रूप से सहज ही लगाया जा सकता है।

इनेलो से अलग करके जननायक जनता पार्टी का गठन करने वाले अजय चौटाला और उनके उपमुख्यमंत्री बेटे दुष्यंत चौटाला अब जब पार्टी के स्थापना दिवस ९ दिसंबर को झज्जर में रैली के आयोजन की तैयारी कर रहे हैं, तब एकाएक इस चर्चा ने सभी को चौंका दिया कि चौटाला परिवार फिर से एक होने जा रहा है। रिश्तों की अहमियत समझने वाले लोगों के लिए इन चर्चाओं में भारी दिलचस्पी थी वहीं राजनीति तलाशने वालों के लिए कुछ नया घटने की जिज्ञासा। कहा जा रहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री एवं इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के दोनों पुत्र अजय एवं अभय चौटाला एक साथ आने को राजी हो रहे हैं। इन चर्चाओं को बल तब मिला था, जब एक शादी समारोह में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने अपने दादा ओमप्रकाश चौटाला के पैर छुए। इस दौरान उन्होंने दुष्यंत के सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद भी दिया।

 यह पूरा घटनाक्रम काफी दिलचस्प रहा है। ओमप्रकाश चौटाला राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी एक सख्त अनुशासन पसंद व्यक्ति हैं। जजपा का गठन जिन परिस्थितियों में हुआ था, वे काफी विडम्बनापूर्ण थी। अगर जजपा का इनेलो से विलगाव नहीं हुआ होता तो क्या स्थिति यही रहती। दरअसल, खुद ओमप्रकाश चौटाला ने अब उन सभी चर्चाओं, कयासों, खबरों पर विराम लगा दिया है, जिनमें यह कहा जा रहा था कि अब चौटाला परिवार एक होने जा रहा है। ओमप्रकाश चौटाला जानते हैं कि यह वह समय है, जब उनका एक-एक कदम इनेलो के भविष्य का खाका खींचेगा। बीते दिनों ऐलनाबाद उपचुनाव में इनेलो के प्रधान महासचिव अभय चौटाला ने जिस प्रकार कड़े मुकाबले में भाजपा-जजपा उम्मीदवार को पटकनी दी थी, उसने इनेलो की संभावनओं को जिंदा कर दिया है। इनेलो को खारिज हुई पार्टी समझने वाले लोगों को इससे झटका लगा है। खुद ओमप्रकाश चौटाला पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच फिर से विश्वास बहाल करने में सफल होते दिख रहे हैं। ऐसी चर्चाएं हैं कि जजपा में असंतोष पनप रहा है और  पार्टी के विधायक जहां नाखुश हैं, वहीं कार्यकर्ताओं के बीच भी बैचेनी है।  

  तब इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला अगर परिवार की राजनीतिक एकजुटता को जजपा नेताओं की चाल बताते हुए खारिज कर रहे हैं तो इसका अर्थ यही है कि उन्हें ये एकजुटता के प्रयास ईमानदार नहीं लग रहे। उनकी तरफ से कहा गया है कि जजपा में कथित भगदड़ को रोकने के लिए ऐसे भ्रमित करने वाली बातें कही गई हैं। पूर्व मुख्यमंत्री के इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, यह तो वही साबित कर सकते हैं, लेकिन इतना तय है कि जजपा की सफलता, इनेलो को रास नहीं आ रही।

इनेलो नेताओं को जजपा की बढ़त में अपना नुकसान दिख रहा है और यही वजह है कि अगर राजनीतिक रूप से एक होने की चर्चा भी छिड़ती है तो इसमें इनेलो को जजपा का हाथ ऊपर रहने की आशंका दिखती है। बेशक, अगर आज के समय इनेलो और जजपा अगर एक हो जाएं तो यह एक बड़ी ताकत बन सकते हैं। प्रदेश के उन लोगों का भरोसा फिर से संयुक्त इनेलो मेें लौट सकता है जोकि चौधरी देवीलाल और ओम प्रकाश चौटाला की राजनीति के कायल रहे हैं। बुजुर्ग पीढ़ी को जजपा के युवा नेताओं से अपनी पटरी बैठाने में दिक्कत आ रही है, वे घूम कर इनेलो की तरफ देख रहे हैं। लेकिन फिर इनेलो में उन्हें वह चमत्कार होता नहीं दिखता, जोकि एक समय सिर चढ़ कर बोलता था। यही वजह है कि ओम प्रकाश चौटाला सीमित और मर्यादित शब्दों में जजपा नेताओं के उनके परिवार की तरफ बढ़ते रुझान पर अपनी बात नहीं कहते हैं, अपितु बेहद तीखे अंदाज में आरोप लगाते हैं।  

 गौरतलब है कि इनेलो कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ये (जजपा) इनेलो पार्टी के गद्दार हैं और गद्दारों के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता। झूठ की बुनियाद पर बनी जजपा में भगदड़ मची हुई है। वैसे इनेलो सुप्रीमो को अपने बेटे और उनके बेटों को कोसने से ज्यादा समय इस पर लगाना चाहिए कि आखिर इनेलो से लोग दूर क्यों हो गए। भ्रष्टाचार को जायज ठहराना बिल्कुल उचित नहीं है, प्रतियोगिता और उच्च मानदंड से नौकरियां देने की वकालत न करके फिर से सत्ता में आने के बाद फिर रेवडिय़ों की तरह नौकरी बांटने की जुगत जनता को लुभाती नहीं है, अपितु नाक-भौं सिकोडऩे पर मजबूर कर देती है। वैसे भी परिवार के नाम पर राजनीति अब पुराने जमाने की बात हो गई है, आज का जमाना परफार्मेंस और विश्वास का है। जजपा जब तक अपने वादे और इरादों को कायम रखेगी, उसकी स्वीकार्यता बनी रहेगी।