Vij neglect is a matter of concern for BJP

Editorial: विज की उपेक्षा भाजपा के लिए चिंता की बात, समाधान जरूरी

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Vij neglect is a matter of concern for BJP

हरियाणा में मुख्यमंत्री को बदलने और मंत्रिमंडल गठन के दौरान जिस प्रकार से समीकरण बने हैं, उनमें सब कुछ उपयुक्त नजर आता है। हालांकि पूर्व गृहमंत्री एवं वरिष्ठ नेता अनिल विज की जिस प्रकार पार्टी ने उपेक्षा की है, वह चिंता की बात है। यह तब है, जब पार्टी की ओर से वयोवृद्ध नेताओं एवं लोगों का कुशलक्षेम जानने की योजना शुरू की गई है। विज ऐसे ही नेता हैं, उनका एक अपना प्रारूप है, जिसकी कोई तुलना भी नहीं है। हालांकि मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने और मंत्रिमंडल के गठन में उन्हें विश्वास में नहीं लेने की बात पर प्रश्नचिन्ह खड़े हुए हैं। बेशक, अब मुख्यमंत्री नायब सैनी ने उनके आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की है और उनसे आशीर्वाद लिया है।

हालांकि इस पूरे प्रकरण की टाइमिंग थोड़ी लेट हो गई है, क्योंकि विज की पीड़ा रह-रहकर अनेक बार रिस चुकी है। चूंकि एक राजनीतिक दल लोगों और उनकी सोच का समूह होता है, जोकि जनमत तैयार करता है। तब यह नहीं कहा जा सकता कि किसी एक व्यक्ति की वजह से पार्टी खड़ी है और आगे बढ़ रही है। उसमें कार्यकर्ता से लेकर सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति का योगदान होता है। विज की पहचान एक स्पष्टवादी और ईमानदार नेता के रूप में है, वे छह बार के विधायक हैं और आज तक कभी उनके कामकाज पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं। क्या मौजूदा राजनीति में यह दुर्लभ गुण नहीं हैं? ऐसे में किसी व्यक्ति की सोच को कायम रखते हुए उसे आगे बढ़ाने की जरूरत होती है।

बेशक, यह सब उलटफेर अप्रत्याशित था, क्योंकि इसकी सूचना देकर अगर पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल यह सब करते तो इसमें नुकसान की आशंका भी थी। यह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व, प्रधानमंत्री एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री के बीच तारतम्य का परिणाम था। निश्चित रूप से इसकी जानकारी किसी अन्य को नहीं दी जा सकती थी। हालांकि पूर्व गृह मंत्री विज की इस नाराजगी का तुरंत समाधान जरूरी था कि मुख्यमंत्री के चयन में उनकी उपेक्षा की गई। उन्होंने कहा भी है कि वे सबसे वरिष्ठ हैं, इसमें कोई दोराय भी नहीं है। लेकिन राजनीति में किसी को मुकम्मल जहाँ कहां मिलता है, यह सब अवसरों और विभिन्न स्तर पर मेहरबानियों का परिणाम होता है कि कोई किसी उच्च स्थान पर पहुंच जाता है। विज एक स्वयं निर्मित राजनेता हैं, ऐसे में उन्हें इसकी अपेक्षा करनी भी नहीं चाहिए कि उन्हें कोई ऐसा ओहदा स्वत: मिल जाएगा जो कि उनके कद के अनुरूप होगा। यह वास्तविकता है। भाजपा ने बीते वर्षों में राज्य में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं, यह भी सच है कि पार्टी ने अपने चेहरे अनेक बार बदल लिए हैं। पार्टी अब परंपराओं से बाहर निकल कर प्रयोगधर्मी बन चुकी है, जीत का लक्ष्य उसके समक्ष प्रखर है और उसकी प्राप्ति के लिए वह अपने पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रही है।

साल 2014 में कई ऐसे वरिष्ठ नेता थे, जोकि कांग्रेस आदि दलों से भाजपा में आए और आज उसके सांसद एवं मंत्री हैं। इसी प्रकार साल 2019 और अब साल 2024 के चुनाव में भी यही कवायद जारी है। एक समय कांग्रेस के प्रधान रहे अशोक तंवर को पार्टी ने अपनी जमात में शामिल करके उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट भी दे दिया है। हालांकि इस दौरान पार्टी ने अपने उन नेताओं, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर दी, जोकि बरसों से उसके साथ संलग्न हैं। एक विस्तृत सोच के साथ यह कहा जा सकता है कि जीत सर्वोपरि है, क्योंकि अगर एक पार्टी जीत हासिल नहीं करेगी तो उसका बहुमत नहीं होगा। बहुमत नहीं होगा तो वह सरकार नहीं बना पाएगी। सरकार नहीं बनी तो वह अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को कैसे अमलीजामा पहनाएगी?

भाजपा एक अनुशासित पार्टी है, इसमें कोई दोराय नहीं होनी चाहिए। गृहमंत्री जैसा अहम पद संभालने के बावजूद मंत्रिमंडल विस्तार में जगह न मिलने पर भी विज ने कोई ऐसा बयान नहीं दिया जोकि सरकार एवं पार्टी के लिए नुकसानदायक हो। वे खुद को पार्टी का अनन्य भक्त बता रहे हैं। यह सच भी है। हालांकि नए परिप्रेक्ष्य में भाजपा को यह विचार करना होगा कि वह दूसरी पार्टियों से खुद को अलग बताते हुए राजनीतिक परिदृश्य में आई थी। लेकिन इस समय पार्टी दूसरे राजनीतिक दलों के दागी नेताओं को भी अपने साथ ला रही है। यह पार्टी के मौलिक नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को परेशान करता है। निश्चित रूप से पार्टी को ऐसा स्वरूप कायम करना होगा, जिसमें उसके मौलिक नेताओं और कार्यकर्ताओं का सम्मान बरकरार रहे और वे भी पार्टी में खुद को आगे बढ़ता हुआ पाएं। 
 

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