समय कभी नही रुकता न किसी के लिए शोक मनाता, जिस तेजी से घटा है

समय कभी नही रुकता न किसी के लिए शोक मनाता, जिस तेजी से घटा है

समय कभी नही रुकता न किसी के लिए शोक मनाता

समय कभी नही रुकता न किसी के लिए शोक मनाता, जिस तेजी से घटा है

चंडीगढ 11  सिंतबर  जीवन पगंडडी पर अगर सहज व सरल रूप से चलना है तो समय की कद्र करते चले।   समय एक बेहद ही प्यारा हमसफर है  अगर हम समय की कद्र करते है तो समय हमे कभी धोखा नही देता। अगर आपने व्यवहार पर ध्यान नही दिया तो यह भी हो सकता है की आप जीवन भर ठगे जाय । एक छोटा आदमी भी आपका अपमान कर सकता है या फिऱ आपको उचित मान नही देगा  अगर आपकी यह धरना है की सब चलता है तो फिऱ आपने अपनी बुद्धि से नही सोचा आपका कोई विचार स्तर नही है जब अपना कोई विचार ही नही है तो विकास कैसे होगा सब चलता है इस सोच वाले कभी इधर कभी उधर होते रहते है, हम अपने खिलाफ आवाज भी नही उठा सकते क्यों की आत्मबल होगा ही नही अच्छा और बुरा दोनों चलने में हम कही के नही रहते । हमारे वसूल, अपने किले को मजबूत बनाइए!, सिद्धांत सब ख़तम हो जाते हैं । अगर हम कुछ करना चाहते है तो सब ठीक हो इसके लिए सब कुछ नही चला सकते कुछ अच्छा चलाना पड़ेगा तभी अच्छा होगा । अच्छा हो इसके लिए एक अच्छा रास्ता, सफलता का रास्ता चुनना होगा "सब चलता है "इससे बहार आना होगा, उदासीन सोच को बदलना होगा। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन तुलसीसभागार मे कहे।, मनीषीसंत ने आगे कहा कठिनाईयो से कभी घबराना नही चाहिए बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए। जो  कठिनाईयो से डर कर भागता है वह जीवन मे कभी सफलता प्राप्त नही कर सकता। जीवन यात्रा में यात्री को यह मालूम होना चाहिए की हम कहाँ से चलें हैं, दक्षता है । समय कभी नही रुकता न किसी के लिए शोक मनाता है यह निरंतर चलता रहता है इसलिए असफल होने पर पुन: प्रयास करें । विश्स्वास के साथ प्रयास करें संशय हमारे काम को कुशलता से नही होने देता । हर पत्थर की तकदीर बदल सकती है, सलीके से उसे तराशा जाए । सफलता का सूत्र हम एक बच्चे से लेते है -आइये देखे एक बच्चे से हम कैसे सीख सकते है ?एक बालक हमेशा प्रसन्न रहता है उसे किसी का न भय होता है न शोक वह एक नियम के तहत जीवन में बढ़ता जाता है ।बछा नही जानता इष्र्या क्या होती है, वह केवल प्रेम की भाषा जानता है भेद दृष्टि उसमे नही होती बच्चे ग़लत नही बोलते वो हमेशा वही कहते है।, मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया  हमारे भीतर हिंसा हर जगह से ठूसी जा रही है। टीवी हमें गुस्सैल बनाने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हमारे नेता, युवा खिलाडिय़ों को नेशनल टेलीविजन पर गालियां देते सगर्व गुस्सा फेंकते दिखते हैं।  हमारे आसपास जो कुछ घट रहा है, उस पर सजग दृष्टि रखना बहुत जरूरी है. अक्सर हम जिन चीजों से सहमत नहीं होते, उन्हें अनदेखा करते जाते हैं. हम उनसे खुद को बहुत दूर मानते हैं, जबकि सच्चाई कुछ और होती है। इस अनदेखी के चलते धीरे-धीरे हमारा किला कमजोर पड़ता जाता है।  हमारे निर्णय लेने की क्षमता, चीजों को महसूस करने की शक्ति कमजोर होती जाती है। हम सबके लिए दूसरों पर निर्भर होते जाते हैं।सब कुछ कीजिए. सुख चैन के सारे साधन जुटाइए. लेकिन इतना कुछ करते हुए बस इतनी चिंता कीजिए कि हमारे भीतर क्या भरता जा रहा है. हम बाहरी चीजों के ख्याल में इतने डूबे हैं कि भीतर का खोखलापन बढ़ता जा रहा है। उस साधु की हंसी को चेतावनी समझ