The society should not let its sensitivity die

Editorial:समाज को मरने नहीं देनी चाहिए अपनी संवेदनशीलता

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The society should not let its sensitivity die

The society should not let its sensitivity die: देश की राजधानी दिल्ली में एक किशोरी की 34 बार चाकू का वार करके की गई हत्या ने जहां राजधानी में अपराध की एक और वारदात को सामने ला दिया है वहीं इस दौरान आम लोगों की असंवेदनशीलता का भी बखूबी फर्दाफाश हो गया। दिल्ली में बीते समय में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जब एक महिला ने अपने बेटे के साथ मिलकर पति की हत्या की और शव के टुकड़े करके उसे फ्रिज में रख लिया वहीं लीव इन में रहने वाले एक युवक ने अपनी महिला मित्र की हत्या करके उसके शव के भी टुकड़े कर दिए और फ्रिज में छिपाकर बाद में उन्हें कूड़े में फेंक दिया।

इसी दौरान उस युवती की दर्दनाक मौत का खुलासा हुआ था, जिसकी स्कूटी को गाड़ी के आगे घिसटकर उसे आधी दिल्ली में अपराधी घुमाते रहे थे और उसका महज कंकाल रह गया था। इन सब वारदातों के बाद यह कहा गया था कि यह तो बेहद भयानक वारदातें हैं, हालांकि अब शाहबाद डेरी इलाके में एक सिरफिरे ने जिस प्रकार एक किशोरी की 34 बार चाकू घोंप कर उसकी हत्या की है, वह इन सब वारदातों पर भारी पड़ रही है।

इस बार की वारदात का अलग पहलू यह है कि इसकी वीडियो सामने आ चुकी है और उसमें भी सबसे भयंकर बात यह है कि अपराधी जब इस अपराध को अंजाम दे रहा था, तब दस के करीब लोग उसके पास से आ-जा रहे थे, लेकिन किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। एक गुंडा इतने लोगों पर भारी पड़ गया, उसने एक किशोरी की जान ले ली।

इस अपराध की पूरे देश में चर्चा है, इसकी तमाम वजह हैं। सबसे पहले तो यह कि आखिर आज के किशोर-किशोरियों का यह कैसे समय है, जब वे अपने करियर, शिक्षा और भविष्य से ज्यादा दोस्ती करने में समय बर्बाद कर रहे हैं। यह किस तरह का प्यार है कि एक अपराधी इसलिए बौखला जाता है, क्योंकि वह किशोरी उसका साथ छोड़ देती है। बताया गया है कि उस किशोरी के हाथ पर टैटू बना था, जोकि किसी अन्य साथी के नाम पर था, जिसके बाद अपराधी ने अपना आपा खोया। यह पसंद या नापसंद व्यक्तिगत मामला है, कोई किसके साथ खुद को कंर्फटेबल पाता है। किशोरी साक्षी के दोस्तों ने पुलिस को बताया है कि वह आरोपी साहिल की हरकतों से परेशान थी, जिसके बाद उसने उसके साथ नाता तोड़ लिया था, यह जाहिर है उसकी अपनी पसंद थी।

हालांकि इस दौरान आरोपी का इस कदर गुस्से में आना क्या अर्थ रखता है। वैसे आजकल पति-पत्नी और घर-परिवार के दूसरे लोगों के बीच भी नाता होने के बावजूद ऐसी वारदातें अंजाम दी जा रही हैं कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। देश भर में अनेक वारदातों को देखकर यह समझा जा सकता है। वास्तव में आज समाज में दुष्कर्म, हत्या, छेड़छाड़ जैसे अपराध बहुत बढ़ते जा रहे हैं। स्कूल जाने वाले किशोर-किशोरी ही खुद को इतना स्वतंत्र पा रहे हैं कि वे जैसे चाहे वैसे निर्णय ले सकते हैं। हालांकि उन्हें रोकने-टोकने की कोशिश कोई नहीं कर सकता। अगर ऐसा किया जाए तो वे बेहद नाराज हो जाते हैं और आत्मघात भी कर सकते हैं।

साक्षी की हत्या के मामले में भी सामने आ रहा है कि उसके माता-पिता को मालूम ही नहीं था कि उसकी किसी के साथ दोस्ती है। निश्चित रूप से यह माता-पिता के लिए चिंता की बात होनी चाहिए कि आखिर उनके बच्चों का किन लोगों के साथ संपर्क है और वे किनके बीच उठते और बैठते हैं। यह सब संस्कारों का खत्म होना है।

इस मामले को लेकर एक बार फिर राजधानी में राजनीति अपने चरम पर है। एक तरफ आम आदमी पार्टी की सरकार है, जोकि यह कहती है कि पुलिस पर उसका नियंत्रण नहीं है, इसलिए अपराध को रोकना उसका काम नहीं है, वहीं भाजपा का कहना है कि प्रदेश सरकार ने कहा था कि शहर में सभी स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। निश्चित रूप से अपराध की रोकथाम के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिएं। हालांकि साक्षी हत्याकांड किसी अकेले सुनसान इलाके में नहीं हुआ है, यह सबके सामने और लगभग भीड़ के सामने हुआ है। ऐसे में सीसीटीवी कैमरों ने क्या अपराधी के हाथ रोक लिए थे।

हालांकि जिन्होंने रोकना था, रोक तो वे भी नहीं सके। यह आज के समय का सबसे बड़ा संकट है, आजकल बीच रास्ते किसी की आबरू पर हाथ पड़ता रहे लेकिन कोई नहीं बोलता, किसी पर चाकू, तलवार चलती रहें, उनसे भी किसी को फर्क नहीं पड़ता। क्या इस सबकी एक इंसान से अपेक्षा की जानी चाहिए। समाज में अपराध व्यक्तियों की सोच और कुंठा की वजह से घटते हैं, लेकिन उन अपराधों को रोकने के लिए जो प्रयास किए जाने हैं, वे लोगों के द्वारा ही किए जाने हैं। ऐसे में समाज को इतना संवेदनशील होता होना ही होगा कि वह सही को सही और गलत को गलत कह सके। 

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