Take care of the decorum of statements in public life

Editorial: सार्वजनिक जीवन में बयानों की मर्यादा का रखे ख्याल

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Take care of the decorum of statements in public life

Take care of the decorum of statements in public life: देश में अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन क्या इसका दुरुपयोग किया जा सकता है? किसी की सफलता और जनता में उसके विश्वास से अगर कोई अपने अंदर द्वेष की ऐसी आग जला ले जोकि खुद उसे प्रभावित करने लगे तो इसे कितना सही कहा जाएगा। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान एकाएक क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ इतने तीखे और आपत्तिजनक हुए हैं, यह सभी को जानने का अधिकार है।

बतौर पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने ऐसे बयान दिए हैं, जोकि सामान्य रूप से किसी प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार के खिलाफ कभी नहीं सुने गए होंगे। इन बयानों में मलिक एक तरह से केंद्र सरकार को चुनौती दे रहे हैं, वे सिर्फ चुनौती ही नहीं दे रहे अपितु साफ-साफ कह रहे हैं कि उनका बाल बांका करके दिखाओ। इसके बाद वे यह भी कहते हैं कि केंद्र सरकार कुछ करके तो दिखाए, उनकी कम्युनिटी इतनी बड़ी है कि जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। एक पूर्व राज्यपाल को क्या इस प्रकार के बयान देने चाहिए। उनका अपनी कम्युनिटी से क्या मतलब है। देश में हर नेता अपनी-अपनी कम्युनिटी बना कर चल रहा है, जिनकी कोई कम्युनिटी नहीं है, वे आखिर कहां जाएंगे। हरियाणा में जब आरक्षण की आग भडक़ती है तो कौन कम्युनिटी थी, जिसने ऐसा दुस्साहस किया। आज तक उस कम्युनिटी ने इसके लिए क्षमा नहीं मांगी है, कहा यही जाता है कि कोई बाहरी आकर आग लगा गया।

 फरवरी 2019 में पुलवामा में जवानों पर हुए आतंकी हमले के संबंध में मलिक ने दावा किया है कि यह सरकार की लापरवाही की वजह से हुआ। उनका कहना है कि सीआरपीएफ ने एयरक्राफ्ट की मांग की थी लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इससे इनकार कर दिया था। गौरतलब है कि चुनावों के दौरान यह मामला खूब उछला था और विपक्ष ने इसके संबंध में भाजपा सरकार पर तमाम आरोप लगाए थे। इनमें यह आरोप भी था कि देश दूसरे मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए जानबूझकर ऐसा कांड अंजाम दिलवाया गया आदि। उस समय जम्मू-कश्मीर में सत्यपाल मलिक राज्यपाल का पद संभाल रहे थे।

निश्चित रूप से उनके पास सुरक्षा संबंधी हर इनपुट रहा होगा। लेकिन यह सवाल प्रमुख है कि आखिर उनकी आत्मा उसी समय क्यों नहीं जागी। उनका कहना है कि उन्हें चुप रहने के लिए कहा गया था, तो क्या इतने जवानों की शहादत से वे विचलित नहीं हुए और कथित रूप से चुप्पी साध कर जो हो रहा था, उसे देखते रहे। हालांकि जब राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल को आगे नहीं बढ़ाया गया तो वे नाराज हो गए। उसके बाद उन्होंने देश को यह बताना अपना फर्ज समझा कि कैसे पुलवामा में सरकार ने लापरवाही बरती और उसकी वजह से जवानों की जान चली गई। सेना और सुरक्षा बल खुद को राजनीति से दूर रखते आए हैं, जोकि जरूरी भी है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को भी सेना एवं सुरक्षा बलों को राजनीति से दूर ही रखना चाहिए। बेहतर यह भी है कि केंद्र में सत्ताधारी भाजपा से मुकाबले के लिए वे कुछ और मुद्दे लेकर आएं।

जम्मू-कश्मीर में बीमा घोटाला भी सामने आया था, जिसके संबंध में अब सीबीआई ने पूर्व राज्यपाल को समन भेजा है। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा पर तीखे हमले किए हैं, इनमें उन्होंने प्रधानमंत्री के संबंध में काफी अपमानजनक बात कही है, उन्हें देश के मसलों के संबंध में अज्ञानी बताया है। सवाल यह है कि आखिर जब तक सुविधाएं प्राप्त होती रहती हैं, बड़े लोग चुप्पी क्यों साध कर रखते हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें सड? पर उतरना पड़ जाता है तो उनके पास आरोपों के पिटारे उपलब्ध हो जाते हैं। पुलवामा समेत घाटी में जितने भी आतंकी हमले हुए हैं, उनके लिए विपक्ष ने कभी भी केंद्र सरकार का सहयोग करने की जरूरत नहीं समझी है। चीन के सैनिक जब गुंडों की भांति भारतीय जवानों पर तिब्बत में हमला करते हैं, तब भी विपक्ष अपनी अलग ही रोटियां सेकता नजर आता है। उस समय भी वह चीन की तरफदारी करता नजर आता है। यह देश का विपक्ष ही है जोकि पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत भी सरकार से मांगता है।

वास्तव में महत्वाकांक्षी होना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। इसी से जीवन में आगे बढ़ा जाता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि देश को गुमराह करना बंद किया जाए। लोकतंत्र की यही खूबी है कि यहां प्रत्येक अपनी बात रखने को स्वतंत्र है, लेकिन उस बात में कुछ तो तथ्य हों। सत्यपाल मलिक के समर्थन में हरियाणा की खाप पंचायतें सक्रिय हैं। दरअसल होना यह चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति सही को सही और गलत को गलत ही समझे। सार्वजनिक जीवन में बयानों की मर्यादा कायम रहनी चाहिए, देश में बहुसंख्या अपनी आंखें और कान खोल कर रखती है जोकि वास्तव में लोकतंत्र को आगे बढ़ाती है। 

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