यूपी में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों से हटाए जाएंगे सरप्लस शिक्षक, दूसरी जगह दी जाएगी तैनाती

यूपी में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों से हटाए जाएंगे सरप्लस शिक्षक, दूसरी जगह दी जाएगी तैनाती

यूपी में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों से हटाए जाएंगे सरप्लस शिक्षक

यूपी में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों से हटाए जाएंगे सरप्लस शिक्षक, दूसरी जगह दी जाएगी तैनाती

प्रदेशभर के जिन राजकीय माध्यमिक स्कूलों या इंटर कॉलेजों में आवश्यकता से अधिक शिक्षक हैं, उन्हें हटाया जाएगा। सरप्लस शिक्षक-शिक्षिकाओं का समायोजन अन्य स्कूलों में किए जाने के माध्यमिक शिक्षा विभाग के प्रस्ताव को शासन ने मंजूरी दे दी है। इससे उन स्कूलों में शिक्षक मिलने की उम्मीद जग गई है, जहां वर्षों से विभिन्न विषयों की पढ़ाई कामचलाऊ तरीके से दूसरे विषय के शिक्षकों से कराई जा रही है।

विशेष सचिव शंभु कुमार ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को 20 जुलाई को भेजे पत्र में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में आवंटित विषयों के सापेक्ष अध्ययनरत छात्रसंख्या के अनुपात में आवश्यक शिक्षकों की संख्या का निर्धारण करने के बाद विद्यालय में कार्यरत विषयवार अतिरिक्त/सरप्लस शिक्षकों का चिह्नांकन करने और उनका समायोजन अन्य विद्यालयों में करने को मंजूरी दी है। शासन के निर्णय से इन स्कूलों में कार्यरत 10 हजार से अधिक शिक्षक प्रभावित होंगे।

ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षकों की कमी

प्रयागराज। ग्रामीण क्षेत्र के राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है। उदाहरण के तौर पर प्रयागराज में ही देखें तो राजकीय बालिका इंटर कॉलेज धनूपुर में शिक्षकों के सात में तीन पद खाली हैं। यहां विज्ञान, गणित और खेल के शिक्षक नहीं है। राजकीय बालिका इंटर कॉलेज शंकरगढ़ में शिक्षकों के 12 में से छह पद रिक्त हैं। यहां विज्ञान, संस्कृत, हिन्दी, कला, गृह विज्ञान व उर्दू के शिक्षक नहीं है। राजकीय बालिका इंटर कॉलेज सैदाबाद में 30 दिसंबर 2016 को पद सृजित होने के बाद से नागरिक शास्त्र, गणित, भौतिक, रसायन व जीव विज्ञान के शिक्षक नहीं हैं।

बालक विद्यालयों में भर दी शिक्षिकाएं

प्रयागराज। शिक्षकों के पदस्थापन में बड़ी विसंगति है। जिला मुख्यालय के बालक विद्यालयों में शिक्षिकाएं भर दी गई हैं। राजकीय इंटर कॉलेज प्रयागराज में शिक्षिकाओं को भर दिया गया है। यहां वर्तमान में तकरीबन 40 शिक्षिकाएं कार्यरत हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्र के बालिका विद्यालयों में पद खाली होने के बावजूद कोई जाना नहीं चाहता।