Shani Pradosh Vrat

शनि प्रदोष व्रत: शिवपूजन से होगी सभी मनोकामनाएं पूर्ण, पढ़ें कैसे करें पूजन; क्या हैं नियम

Shani Pradosh Vrat

Shani Pradosh Vrat

Shani Pradosh Vrat- अप्रैल माह का पहला प्रदोष व्रत 6 अप्रैल, दिन शनिवार को है। पंचांग के अनुसार यह व्रत हर महीने में दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। अप्रैल में पहली त्रयोदशी तिथि शनिवार के दिन प? रही है, जिसे बहुत खास माना जा रहा है। त्रयोदशी तिथि अगर शनिवार के दिन हो तो इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। वैसे तो प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव शंकर की पूजा की जाती है, लेकिन अगर प्रदोष व्रत शनिवार के दिन होता है तो इस दिन शिव जी के साथ शनि देव की पूजा भी की जाती है। इस व्रत को करने से शिव शंभू के साथ शनि देव भी प्रसन्न होते हैं और कुंडली से शनि दोष दूर होता है। ऐसे में चलिए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में...

शनि प्रदोष व्रत 2024 शुभ मुहूर्त

इस बार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 06 अप्रैल को सुबह 10 बजकर 19 मिनट से होगी। इसका समापन 07 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 53 मिनट पर होगा। प्रदोष व्रत के दिन संध्याकाल में शिव की पूजा करने का विधान है। ऐसे में 06 अप्रैल को शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। 

शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि

शानि प्रदोष व्रत वाले दिन पूजा के लिए प्रदोष काल यानी शाम का समय शुभ माना जाता है। 
सूर्यास्त से एक घंटे पहले, भक्त स्नान करें और पूजा के लिए तैयार हो जाएं। 
स्नान के बाद संध्या के समय शुभ मुहूर्त में पूजन आरंभ करें। 
गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल आदि से शिवलिंग का अभिषेक करें। 
फिर शिवलिंग पर श्वेत चंदन लगाकर बेलपत्र, मदार, पुष्प, भांग, आदि अर्पित करें।
फिर विधिपूर्वक पूजन और आरती करें। 

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

शनि प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव के साथ शनि महाराज भी प्रसन्न होते हैं। शनि प्रदोष व्रत करने से मनुष्य को लंबी आयु के साथ सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी दुख दूर हो जाते हैं और अंत में वह सभी सुखों को भोगकर मोक्ष प्राप्त करता है।

शनि प्रदोष पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें।
अपने पूजा कक्ष को साफ करें।
एक वेदी पर भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं।
सफेद चंदन, कुमकुम का तिलक लगाएं।
देसी घी का दीपक जलाएं।
फल, मिठाई और खीर का भोग लगाएं।
शिव चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें।
अंत में आरती से पूजा को समाप्त करें।
प्रदोष पूजा हमेशा शाम के समय की जाती है, इसलिए शाम के समय पूजा जरूर करें।
पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीया जलाएं और भगवान शनिदेव का आशीर्वाद लें।
पूजा समाप्त करने के बाद सात्विक भोजन से अपना व्रत खोलें।
गरीबों की मदद करें।

शनि प्रदोष व्रत कथा

शनि प्रदोष व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दु:खी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।
अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं।
साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दु:ख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार ।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार ॥
हे नीलकंठ सुर नमस्कार ।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार ॥
हे उमाकांत सुधि नमस्कार ।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥
ईशान ईश प्रभु नमस्कार ।
विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार ॥
दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और खुशियों से उनका जीवन भर गया।