Selection of women in panchayats is not enough

Editorial : पंचायतों में महिलाओं का चयन ही काफी नहीं, सशक्त होना भी जरूरी

Edit

Selection of women in panchayats is not enough

Selection of women in panchayats is not enough हरियाणा में ग्राम पंचायतों का मनोहर लाल सरकार में जिस प्रकार से उत्थान हुआ है, वह अपने आप में ऐसी यशगाथा है, जिसे स्वर्णिम पन्नों पर लिखा जाना चाहिए। राज्य में पढ़ी-लिखी पंचायतें और महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देकर राज्य सरकार ने ग्रामीण परिवेश में जो क्रांति कायम की है, वह दूरगामी परिणाम लेकर आएगी।

हालांकि यह चिंता की बात है कि ग्राम पंचायतों में पढ़ी-लिखी जनप्रतिनिधियों को उनके पति या फिर घर के अन्य लोग निर्देशित कर रहे हैं। ग्राम पंचायतों का यह हाल है, लेकिन ब्लॉक समिति और जिला परिषदों में भी ऐसे उदाहरण भरपूर देखने को मिल रहे हैं। दिक्कत तब होती है, जब शहरों की सरकारों यानी नगर समिति या फिर नगर निगम में भी महिला प्रतिनिधियों को उनके परिवार के लोग ही निर्देशित करते दिखते हैं। यह अपने आप में महिला शक्ति का अपमान है और इसे बदले जाने की जरूरत है।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर खुले विचारों के राजनेता हैं और वे समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं। जब उनके सामने ऐसा मामला आया तो उन्होंने जनप्रतिनिधियों के परिवार के लोगों को उस बैठक से बाहर जाने को कहा, जिसकी वे अध्यक्षता कर रहे थे। जिला परिषदों की महिला जनप्रतिनिधियों के साथ उनके परिवार के लोग भी आए हुए थे।

गौरतलब है कि 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और यह मामला 6 मार्च को सामने आया। बैठक में महिला चेयरपर्सन के पति को देखकर मुख्यमंत्री ने पूछा कि क्या आप चाहती हैं कि आपके प्रतिनिधि बैठक में शामिल हों। इस पर चेयरपर्सन ने एक स्वर में कहा कि वे सक्षम हैं और न केवल बैठक में शामिल होंगी, अपितु अपने फैसले भी खुद लेंगी। वास्तव में यह ऐसी घटना थी, जिसे बेहद सकारात्मक रूप में देखे जाने और समझे जाने की आवश्यकता है।

बदलाव कैसे आता है, यह कोई हवा का झोंका नहीं होता, जिसके साथ सामाजिक बदलाव आ जाता है। इसके लिए समाज के जागरूक लोगों को प्रेरित करना होता है, आवाज उठानी होती है। एक जमाने में स्त्री शिक्षा भी अभिशाप थी, लेकिन राजा राममोहन राय ने इसके लिए आवाज उठाई। उसके बाद अनेक ऐसे समाज सुधारक हुए जिन्होंने महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम किया और उनकी स्थिति सुधारने में अपना योगदान दिया। अगर समय-समय पर ऐसा नहीं हुआ होता तो स्थिति की जस की तस बनी रहती और हवा का रूख मोड़ने का कोई साहस नहीं कर पाता। आमतौर पर गांव-देहात में महिलाएं अपने चेहरे को ढक कर रखती हैं, यह हरियाणवी समाज की रवायत है, लेकिन इसे भी बदले जाने की आवश्यकता है।

हरियाणवी समाज में अब जागृति आ रही है, और महिलाओं ने जहां राजनीति में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया है वहीं वे समाज के अन्य कार्यक्रमों में भी सम्मिलित हो रही हैं। इस बार के पंचायत चुनावों में महिलाओं की रिकार्ड प्रतिभागिता रही है, जिसने इस आधी दुनिया को सबल और सक्षम बनाया है। लेकिन प्रश्न यही है कि इतना होने के बावजूद महिला जनप्रतिनिधि अपने परिवार के लोगों की सलाह और उनके निर्देशन में ही क्यों काम कर  रही हैं।

 मुख्यमंत्री मनोहर लाल Chief Minister Manohar Lal ने जिला परिषदों को सशक्त बनाने के लिए उनके फंड में बढ़ोतरी की है, जोकि सराहनीय और उचित निर्णय है। उन्होंने कहा भी कि सरकार पंचायती राज संस्थाओं को और अधिक मजबूत बनाना चाहती है, इसके लिए पंचायती राज संस्थाओं को अधिक अधिकार दिए गए हैं। सरकार ने पंचायतों को ई-टेंडरिंग प्रणाली प्रदान की है, जिसके तहत विकास कार्य कराए जाने हैं। हालांकि यह विचित्र है कि अन्य फैसलों की तरह इस प्रणाली की भी आलोचना हो रही है। सरपंचों का एक वर्ग लगातार सरकार के खिलाफ मुहिम चलाए हुए है। बावजूद इसके यह उचित है कि सरकार इस फैसले पर अडिग है।

वास्तव में प्रदेश की जनता का बड़ा वर्ग यह मानता है कि ऐसे फैसले दूरगामी सोच के हैं और उनसे विकास की निरंतरता बढ़ेगी एवं पारदर्शिता आने से एक-एक पैसे का हिसाब रख पाना सहज हो जाएगा। सरकार ने अब जिला परिषदों का अपना अलग भवन बनाने और अलग से इंजीनियरिंग विंग का गठन भी करके दिया है।

पंचायती राज मंत्री देवेंद्र बबली पंचायतों में सुधारीकरण के लिए तमाम चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन जाहिर है अगर मुख्यमंत्री स्वयं उनका साथ दे रहे हैं तो उन्हें फिर दोबारा सोचने की आवश्यकता नहीं है। पंचायतों, ब्लॉक समितियों और जिला परिषदों के उत्थान के जरिये जनता का उत्थान ही सरकार सुनिश्चित कर रही है। बबली का यह कहना सही है कि जो बदलाव लेकर आते हैं, उनमें कहीं न कहीं दिवानापन होता है, तभी बदलाव आता है। इसी दीवानेपन से दुनिया बदल जाती है। 

ये भी पढ़ें ...

Editorial : भ्रष्टाचार के खिलाफ विपक्ष की एकता पर ही सवाल

ये भी पढ़ें ...

Editorial : रोड जाम करना नहीं मौलिक अधिकार, सरपंचों को हटाना सही