Sawan's first Pradosh fast today

सावन का पहला प्रदोष व्रत आज, शिवपूजन से होगा सभी दोषों का नाश

Sawan's first Pradosh fast today

Sawan's first Pradosh fast today

Sawan's first Pradosh fast today- सावन का पहला प्रदोष व्रत 15 जुलाई को है। ये दिन शिव पर्व भी कहलाता है, क्योंकि शिव पुराण के मुताबिक इस तिथि पर शिव-पार्वती की पूजा करना महा पुण्यदायी होता है। ये महीना और तिथि, दोनों ही भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए इस दिन सुबह-शाम भगवान शिव की पूजा करने के साथ व्रत रखने का भी विधान ग्रंथों में बताया गया है। जिससे हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं।

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इस दिन रुद्राभिषेक और शनिदेव का तेलाभिषेक करने के बाद चांदी के नाग नागिन की पूजा करनी चाहिए। फिर उन्हें पवित्र नदी में बहा देना चाहिए। शिवजी का अभिषेक करने से पितृ दोष में भी राहत मिलती है। इसके साथ ही शनिदेव का तेल से अभिषेक करने से भी हर तरह की परेशानियां खत्म हो जाती हैं।

शिव और शनि पूजा

जब शनिवार को प्रदोष यानी त्रयोदशी तिथि हो तो इस संयोग में की गई पूजा से शनि के अशुभ प्रभाव से होने वाली तकलीफों से राहत मिलती है। जो लोग शनि की महादशा, साढ़ेसाती और ढय्या से परेशान हैं उनके लिए 15 जुलाई को आने वाला शनि प्रदोष का दिन बहुत खास है। इस दौरान सावन मास होने से पूजा का फल और बढ़ जाएगा।

जरूरतमंद को कपड़े और अन्नदान

शनि प्रदोष के दिन व्रत, पूजा और दान करने से सुख और सौभाग्य बढ़ता है। शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। उम्र बढ़ती है। संपत्ति और धन लाभ भी होता है। शनि प्रदोष के दिन जरूरतमंद लोगों को कपड़े और अन्न दान के साथ ही जूते-चप्पल का भी दान करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।

प्रदोष यानी शुक्ल और कृष्ण पक्ष की तेरहवीं तिथि: शुक्ल और कृष्णपक्ष की त्रयोदशी यानी तेरहवीं तिथि को प्रदोष कहा जाता है। शिवपुराण के अनुसार शिवजी की प्रिय तिथि होने से प्रदोष में की गई शिव पूजा का विशेष फल मिलता है। भगवान शिव ही शनि देव के गुरू हैं। इसलिए सावन महीने में शनिवार के दिन शिव पूजा करने से शनिदोष के कारण होने वाली तकलीफों से राहत मिलती हैं।

शनि प्रदोष व्रत कथा: पढऩे व श्रवण से होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

एक बार किसी एक नगर में एक साहूकार था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन कोई संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी था। संतान प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता था। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न होकर भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया। पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति देखकर उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा व्यक्त की। माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन उन्होंने बताया कि यह बालक 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।

माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था, इसलिए उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय के बाद साहूकार की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढऩे के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन देते हुए कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ। तुम लोग रास्ते में यज्ञ कराते जाना और ब्राह्मणों को भोजन-दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी नगरी निकल पड़े। इस दौरान रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था, लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए सोचा क्यों न उसने साहूकार के पुत्र को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लडक़े को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया।

साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात सही नहीं लगी इसलिए उसने अवसर पाकर राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढऩे जा रहा हूं।’ जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पड़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया फिर बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लडक़ा और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लडक़ा 12 साल का हुआ उस दिन भी यज्ञ का आयोजन था लडक़े ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर आराम कर लो। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप करना शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती माता ने भोलेनाथ से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा, आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।

जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था, अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के पुन: आग्रह पर भगवान शिव ने उस लडक़े को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लडक़ा जीवित हो गया। शिक्षा पूरी करके लडक़ा मामा के साथ अपने नगर की ओर वापस चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लडक़े के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।