Mukti Parv - the festival of spiritual freedom

संत निरंकारी मिशन ने मुक्ति पर्व समागम मनाया

Nirankari

Mukti Parv - the festival of spiritual freedom

मुक्ति पर्व - आत्मिक स्वतंत्रता का पर्व

चंडीगढ़। संपूर्ण भारतवर्ष में जहाँ 77वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाया गया वहीं निरंकारी जगत ने इस दिन को आत्मिक स्वतंत्रता पर्व के रूप में मनाते हुए ‘मुक्ति पर्व’ नाम से सम्बोधित किया। चंडीगढ़ के संत निरंकारी सत्संग भवन सैक्टर 30 ए में भी ‘मुक्ति पर्व’ समागम का आयोजन किया गया इस समागम की  अध्यक्षता श्री ओ पी निरंकारी जी ज़ोनल इंचार्ज चंडीगढ़ जोन ने की जिसमे बड़ी संख्या मे श्रद्धालु, भक्त सम्मिलित हुए ।
इस अवसर पर देशभर में व्याप्त मिशन की सभी शाखाओं में और दिल्ली के निरंकारी चौक, ग्राउंड नं. 8 बुराड़ी रोड में भी ‘मुक्ति पर्व’ समागम का आयोजन किया गया जिसमें अनेक स्थानों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु, भक्त सम्मिलित हुए और सभी संतों ने जन जन की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करवाने वाली इन दिव्य विभुतियों के प्रति अपनी भावभीनि श्रंद्धाजलि अर्पित की जिन्होंने मानवता के लिए स्वयं को समर्पित किया।

श्री निरंकारी जी ने आगे कहा कि  मुक्ति पर्व के अवसर पर शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी, जगत माता बुद्धवंती जी, निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी, सतगुरु माता संविदर हरदेव जी, संतोख सिंह जी एवं अनन्य भक्तों द्वारा मानव को सत्य ज्ञान की दिव्य ज्योति से अवगत करवाने हेतु श्रद्धालुओं द्वारा हृदय से श्रद्धा सुमन अर्पित किये गये। इसी अवसर पर उनके प्रेरणादायी जीवन से शिक्षाएं भी सांझा की गयी। इन सभी संतों ने अनेक विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने तप त्याग से मिशन को नई ऊँचाईयों तक पहुंचाया जिसके लिए निरंकारी जगत का प्रत्येक भक्त ताउम्र उन भक्तों का ऋणी रहेगा।

मिशन की यही धारणा है कि जहाँ हमें अपने भौतिक विकास तथा उन्नति के लिये किसी भी अन्य देश की पराधीनता से मुक्त होना आवश्यक है उसी भांति हमारी अंतरात्मा को भी आवागमन के बन्धन से मुक्ति दिलाना अति अनिवार्य है। यह केवल ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति से ही संभव है क्योंकि यह दिव्य ज्योति ही हमें निरंकार प्रभु परमात्मा के दर्शन करवाती है।

मुक्ति पर्व समागम का आरम्भ 15 अगस्त, 1964 में शहनशांह बाबा अवतार सिंह जी की जीवनसंगिनी जगत माता बुद्धवंती जी की स्मृति में किया गया था। वह सेवा की एक जीवंत मूर्ति थी, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ही मिशन एवं भक्तों की निस्वार्थ सेवा में अर्पित किया। उसके उपरांत जब शहनशांह बाबा अवतार सिंह जी सन् 1969 को ब्रह्मलीन हुए तभी से यह दिन ‘शहनशांह-जगतमाता दिवस’ के रूप में सम्बोधित किया जाने लगा। सन् 1979 में संत निरंकारी मण्डल के प्रथम प्रधान लाभ सिंह जी ने जब अपने इस नश्वर शरीर का त्याग किया तभी से बाबा गुरबचन सिंह जी ने इस दिन को ‘मुक्ति पर्व’ का नाम दिया।

पूज्य माता सविंदर हरदेव जी ने 5 अगस्त, 2018 को अपने नश्वर शरीर का त्याग किया। उससे पूर्व सत्गुरू रूप में मिशन की बागडोर सन् 2016 में संभाली और 36 वर्षो तक निरंतर बाबा हरदेव सिंह जी के साथ उन्होंने हर क्षेत्र में अपना पूर्ण सहयोग दिया और निरंकारी जगत के प्रत्येक श्रद्धालु को अपने वात्सल्य से सराबोर किया। उनकी यह अनुपम छवि निरंकारी जगत के हर भक्त के हृदय में सदैव समाहित रहेगी। सतगुरु के आदेशानुसार ‘मुक्ति पर्व’ के पावन अवसर पर सभी भक्तों द्वारा माता सविंदर हरदेव जी को भी श्रद्धा सुमन अर्पित किये जाते है।

निसंदेह यह महान पर्व निरंकारी जगत के उन प्रत्येक संतों को समर्पित है जिन्होंने अपने प्रेम, परोपकार, भाईचारे की भावना से भक्ति भरा जीवन जीकर सभी के समक्ष एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया।

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