Rabindranath Tagore Jayanti 2023 Know all about his life facts here

Rabindranath Tagore Jayanti 2023: एक नहीं बल्कि 3 राष्ट्रगान लिखे थे रवींद्रनाथ टैगोर ने, यहां जाने उनकी जीवन के कुछ रोचक तथ्य

Rabindranath Tagore Jayanti 2023

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Rabindranath Tagore Jayanti 2023: भारत के सबसे प्रसिद्ध कवियों और लेखकों में से एक रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती इस बार 9 मई को मनाई जा रही है। हालांकि उनका जन्म 7 मई, 1861 को हुआ था। ऐसे में देखा जाएं तो उनकी जयंती 7 मई को मनाई जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि ऐसा ना होने के पीछे क्या वजह है। 

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9 मई को रबीन्द्रनाथ टैगोर जयंती
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकात्ता में हुआ था। लेकिन बंगाल में उनकी लोकप्रियता की वजह से उनकी जयंती बंगाली कैलेंडर के मुताबिक मनाई जाती है।रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती बंगाली कैलेंडर के महीने बोइशाख महीने के 25वें दिन मनाई जाती है। ऐसे में इस बार बंगाली कैलेंडर के मुताबिक बोइशाख महीने का 25वां दिन 9 मई को पड़ रहा है। इसलिए इस बार यानी की साल 2023 में रबींद्रनाथ टैगोर जयंती मंगलवार, 9 मई को मनाई जायेगी। आपको बतादें कि इस दिन देश के कुछ राज्यों में अवकाश भी होता है। 

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बैरिस्टर बनना चाहथे थे टैगोर
रवींद्रनाथ टैगोर बैरिस्टर बनना चाहते थे,1878 में उन्होंने अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल में एडमिशन लिया। बाद में वह कानून की पढ़ाई के लिए लंदन कॉलेज यूनिवर्सिटी भी गए लेकिन वहां पढ़ाई पूरी किए बिना ही 1880 में वे वापस लौट आए।

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8 साल में लिखी पहली कविता
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ टैगोर ने आठ वर्ष की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था, बल्कि जब वह 16 साल के थे तब उन्होंने छद्म नाम 'भानुसिंह' के तहत कविताओं का अपना पहला संग्रह जारी किया। वो भारत ही नहीं एशिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें साहित्य के लिए 1913 में अपनी रचना गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आज भी रवींद्र संगीत बांगला संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है।

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टैगोर ने लिखे इन देशों के राष्ट्रगान
भारत के राष्‍ट्रगान को लिखने के अलावा रवींद्रनाथ टैगोर ने बांग्‍लादेश के 'आमार सोनार बांगला' की भी रचना की थी। टैगोर ने ये गीत तब लिखा था जब 1905 बंगाल को अंग्रेज बांटने वाले थे। उन्‍होंने बंगाल के लोगों को एक सूत्र में बांधने के लिए इस कालजयी कविता को बांग्‍ला भाषा में लिखा था। देखते ही देखते ये कविता बंगाल के लोगों की जुबां पर चढ़ गई। 1971 में जब बांग्‍लादेश आजाद होकर अलग राष्‍ट्र बना, तो बांग्‍लादेश ने इसे नेशनल एंथम के तौर पर एडाप्ट कर लिया। कहा जाता है कि श्रीलंका के राष्ट्रगान का एक हिस्सा भी उनकी कविता से प्रेरित है। श्रीलंका के राष्‍ट्रगान 'श्रीलंका माता, श्रीलंका, नमो नमो नमो नमो माता' की रचना आनंद समाराकून ने की थी। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि इस गीत का भी एक हिस्‍सा रबीन्‍द्रनाथ टैगोर की कविता से प्रेरित है। दरअसल रवींद्रनाथ टैगोर ने पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन में विश्व भारती, यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी, जिसमें श्रीलंका (तब सीलोन) के आनंद समरकून अध्ययन करने के लिए आए थे। कहा जाता है कि आनंद समाराकून गुरुदेव से बहुत प्रभावित थे। भारत से लौटने के बाद ही उन्‍होंने टैगोर की एक कविता से प्रभावित होकर ये गीत लिखा और इस गीत को रवींद्रनाथ संगीत में कंपोज किया गया। ये गीत श्रीलंका में इतना लोकप्रिय हो गया कि इसे 1950 में राष्ट्रीय गान के तौर पर स्वीकार किया गया।

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रवींद्रनाथ टैगोर के नोबल पुरस्कार की कहानी
टैगोर पहले गैर यूरोपीय थे जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। हालांकि टैगोर ने इस नोबेल पुरस्कार को सीधे स्वीकार नहीं किया, बल्कि उनकी जगह पर ब्रिटेन के एक राजदूत ने पुरस्कार लिया था। टैगोर को ब्रिटिश सरकार ने ‘नाइट हुड’ यानी 'सर' की उपाधि से भी नवाजा था लेकिन 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद टैगोर ने इस उपाधि को लौटा दिया।

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महात्‍मा गांधी से मिली थी 'गुरुदेव' की उपाधि
रवींद्रनाथ टैगोर कई विधाओं में निपुण थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ टैगोर ने आठ वर्ष की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनकी लेखनी में वो ताकत थी, जो लोगों के अंतर्मन को स्‍पर्श कर लेती थी। इसको देखकर महात्मा गांधी ने रबीन्द्रनाथ टैगोर को 'गुरुदेव' की उपाधि दी थी। वहीं अंग्रेजी हुकूमत की ओर से टैगोर को 'नाइट हुड' यानी 'सर' की उपाधि से भी नवाजा था, लेकिन 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद टैगोर ने इस उपाधि को लौटा दिया था।

Rabindranath Tagore | Iconic relationships were at the heart of the  National Movement - Telegraph India