Principal Secretary Home ordered to respond to contempt of court orders

प्रधान सचिव गृह को अदालती आदेशों की अवमानना का जवाब देने के आदेश

Himachal High court

Principal Secretary Home ordered to respond to contempt of court orders

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अदालती आदेशों की अवमानना पर कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत ने एडीए के स्थानांतरण मामले में प्रधान सचिव गृह सहित सहायक एवं उप जिला न्यायवादी को अवमानना याचिका का जवाब दायर करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने इनके खिलाफ अवमानना याचिका दर्ज की है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 15 मई को निर्धारित की है।

इस मामले पर मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने प्रधान सचिव गृह के न्यायालय के समक्ष पेश होने की छूट के लिए आवेदन किया था। अदालत ने इसे स्वीकार करते हुए अवमानना याचिका का जवाब दायर करने के आदेश दिए हैं। प्रधान सचिव गृह ने स्पष्ट आदेशों के बावजूद भी उप जिला न्यायवादी किशन सिंह वर्मा और सहायक जिला न्यायवादी श्वेता सडयाल को समायोजित करने के लिए 24 अप्रैल को अधिसूचना जारी की थी।

इस अधिसूचना के तहत राज्य सरकार ने दो न्यायवादियों के तबादला आदेश रद्द कर दिए थे। हालांकि अभियोजन विभाग की मौजूदगी में 24 अप्रैल को ही अदालत ने उन सहायक या उप जिला न्यायवादी को 48 घंटे के भीतर ज्वाइन करने के आदेश दिए थे, जिन्होंने तबादला आदेशों के बावजूद अपना कार्यभार नहीं संभाला था।

उप जिला न्यायवादी किशन सिंह वर्मा का तबादला 13 मार्च 2023 को आबकारी एवं कराधान कार्यालय शिमला से जिला न्यायवादी कार्यालय सिरमौर किया गया था। इसी तरह श्वेता सडयाल को भी उपायुक्त कार्यालय शिमला से जिला न्यायवादी कार्यालय मंडी स्थानांतरित किया गया था। सचिव गृह ने किशन सिंह वर्मा का तबादला रद्द कर दिया और श्वेता सडयाल को एचपीपीसीएल शिमला में समायोजित किया।

बता दें कि 24 अप्रैल को अदालत ने पाया था कि वे उप एवं सहायक जिला न्यायवादी मनपसंद स्थानों में तैनाती के लिए राजनीतिक दबाव बना रहे हैं जिससे अदालतों की कार्यवाही प्रभावित हो रही है। अभियोजन निदेशालय राजनीतिक हस्तक्षेप और अन्य दबाव से मुक्त होना चाहिए।

अदालत ने आदेश दिए थे कि जिन न्यायवादियों को 13 और 31 मार्च की अधिसूचना के तहत नियुक्त या स्थानांतरित किया गया था, वे 48 घंटे के भीतर ज्वाइन करें। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि ज्वाइन न करने की स्थिति में इन्हें निलंबित किया जाए और विभागीय कार्रवाई की जाए।