ईश्वर के प्रति समर्पित मन ही मानवता की सच्ची सेवा कर सकता है - निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

ईश्वर के प्रति समर्पित मन ही मानवता की सच्ची सेवा कर सकता है - निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

चण्डीगढ/पंचकुला /मोहाली/समालखा: 29  अक्तूबर, 2023:- Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj: ‘‘ईश्वर के प्रति समर्पित मन ही मानवता की सच्ची सेवा कर सकता है और एक सही मनुष्य बनकर पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी जीवन जी सकता है।’’ यह उद्गार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 28 अक्तूबर को 76वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के पहले दिन के मुख्य सत्र में उपस्थित विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। 

तीन दिवसीय निरंकारी सन्त समागम का भव्य शुभारम्भ कल निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा, में हुआ है जिसमें देश-विदेश से लाखों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्त एवं प्रभूप्रेमी सज्जन सम्मिलित हुए और सभी ने इस पावन अवसर का आनंद लिया। श्रद्धालुओं में समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का समावेश होने से अनेकता में एकता का सुंदर नज़ारा यहां देखने को मिल रहा है। 

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

सत्गुरु माता जी ने फरमाया कि जीवन में सेवा एवं समर्पण का भाव अपनाने से ही सुकून आ सकता है। संसार में जब मनुष्य किसी व्यवसाय के साथ जुड़ा होता है तब वहां का समर्पण किसी भय अथवा अन्य कारण से हो सकता है जिससे सुकून प्राप्त नहीं हो सकता। भक्त के जीवन का वास्तविक समर्पण तो प्रेमाभाव में स्वयं को अर्पण कर इस परमात्मा का होकर ही हो सकता है। वास्तविक रूप में ऐसा समर्पण ही मुबारक होता है। 

सत्गुरु माता जी ने इसे अधिक स्पष्टता से बताते हुए कहा कि किसी वस्तु विशेष,  मान-सम्मान या उपाधि के प्रति जब हमारी आसक्ति जुड़ जाती है तब हमारे अंदर समर्पण भाव नहीं आ पाता है। वहीं अनासक्ति की भावना को धारण करने से हमारे अंदर पूर्ण समर्पण का भाव उत्पन्न हो जाता है। परमात्मा से नाता जुड़ने के उपरान्त आत्मा को अपने इस वास्तविक स्वरूप का बोध हो जाता है जिससे केवल वस्तु-विशेष ही नहीं अपितु अपने शरीर के प्रति भी वह अनासक्त भाव धारण करता है। 

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अंत में सत्गुरु माता जी ने कहा कि जब हम इस कायम-दायम निराकार की पहचान करके इसके प्रेमाभाव में रहेंगे, इसे हर पल महसूस करेंगे तब हमारे जीवन में आनंद, सुकून एवं आंतरिक शांति निरंतर बनी रहेगी। 

सेवादल रैली:  

            समागम के दूसरे दिन का शुभारम्भ एक आकर्षक सेवादल रैली द्वारा हुआ। इस रैली में  भारतवर्ष एवं दूर देशों से आए हुए हजारों सेवादल स्वयंसेवक भाई बहनों ने हिस्सा लिया। भारतवर्ष के पुरुष स्वयंसेवकों ने खाकी एवं बहनों ने नीली वर्दी पहन कर तथा विदेशों से आये सेवादल सदस्यों ने अपनी अपनी निर्धारित वर्दियों में सुसज्जित होकर भाग लिया। 

            दिव्य युगल के पावन सान्निध्य में आयोजित सेवादल रैली में सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने शांति के प्रतीक रूप में मिशन के ध्वज को मुस्कुराते हुए फहराया।

Nirankari Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj

            इस रैली में सेवादल द्वारा शारीरिक व्यायाम का प्रदर्शन किया गया और मिशन की सिखलाई पर आधारित लघुनाटिकाओं द्वारा सेवा के विभिन्न आयामों को बड़े ही रोचक ढंग से उजागर किया गया। इसके अतिरिक्त सेवादल नौजवानों द्वारा विभिन्न मानवीय आकृतियों के करतब भी दिखाए गए और खेल कूद के माध्यम से सेवा के प्रति सजगता एवं जागरुकता का महत्व दर्शाया गया। अंत में बॅण्ड के धून पर सेवादल के सदस्य सत्गुरु के सामने से प्रणाम करते हुए गुजरे और अपने हृदयसम्राट सत्गुरु के प्रति सम्मान प्रकट किया।

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            सेवादल रैली को सम्बोधित करते हुए सत्गुरु माता जी ने कहा कि समर्पित भाव से की जाने वाली सेवा ही स्वीकार होती है। जहां कही भी सेवा की आवश्यकता हो उसके अनुसार सेवा का भाव मन में लिए हम सेवा के लिए प्रस्तुत होते हैं वही सच्ची भावना महान सेवा कहलाती है। यदि कहीं हमें लगातार एक जैसी सेवा करने का अवसर मिल भी जाता है तब हमें इसे केवल एक औपचारिकता न समझते हुए पूरी लगन से करना चाहिए क्योंकि जब हम सेवा को सेवा के भाव से करेंगे तो स्थान को महत्व शेष नहीं रह जाता। जब हम ऐसी सेवा करते हैं तो उसमें तो निश्चित रूप में उसमें मानव कल्याण का भाव निहित होता है। 

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            इसके पूर्व सेवादल के मेंबर इंचार्ज पूज्य श्री विनोद वोहरा जी ने समस्त सेवादल की ओर से सत्गुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी का सेवादल रैली के रूप में आशिष प्रदान करने के लिए शुकराना किया।

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