बांग्लादेश में जारी हुआ नया फरमान, महिलाओं और लड़कियों के बदले ड्रेस कोड

bangladesh new farman: बांग्लादेश, जो खुद को एक उदार इस्लामी देश के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, वहां हाल ही में एक ऐसा फैसला सामने आया है जिसने देश और दुनिया में चिंता की लहर दौड़ा दी है। बांग्लादेश के कई स्कूलों और कॉलेजों में अब लड़कियों के लिए "इस्लामिक ड्रेस कोड" अनिवार्य कर दिया गया है, और इसके पीछे जिस सख्ती और सोच को अपनाया गया है, उसे देखकर कई लोग इसे तालिबानी सोच का एक नया रूप कह रहे हैं।
क्या है नया फरमान?
हाल ही में बांग्लादेश के शिक्षा मंत्रालय और स्थानीय प्रशासन द्वारा एक निर्देश जारी किया गया, जिसमें स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने वाली छात्राओं को "ढंका हुआ और संयमित कपड़ा" पहनने का आदेश दिया गया है। इसके तहत छात्राओं को अब:
- शरीर को पूरी तरह ढकने वाले ढीले और पारंपरिक कपड़े पहनने होंगे।
- जींस, टाइट कपड़े, स्लीवलेस टॉप, स्कर्ट या कोई आधुनिक पोशाक पर सख्त पाबंदी लगाई गई है।
- स्कूल-कॉलेज की शिक्षिकाओं को भी "इस्लामिक ड्रेस कोड" का पालन करना होगा।
इसके अलावा, कई जगहों पर हिजाब और दुपट्टा अनिवार्य किया जा रहा है, और ऐसा न करने पर छात्राओं को डांट, सस्पेंशन या यहां तक कि प्रवेश न देने जैसी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
क्यों उठ रहे हैं इसे 'तालिबानी सोच' कहने वाले सवाल?
तालिबान शासित अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा, स्वतंत्रता और कपड़ों पर जो कठोर बंदिशें लगाई गई हैं, उन्हें पूरी दुनिया जानती है। ऐसे में जब बांग्लादेश जैसे अपेक्षाकृत उदार देश में महिलाओं के पहनावे पर पाबंदियां लगाई जाती हैं, तो कई मानवाधिकार संगठन और बुद्धिजीवी वर्ग इसे तालिबानी सोच से जोड़ रहे हैं। कई संगठनों ने इसे महिलाओं की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया है, और कहा है कि ये फैसला कट्टरता को बढ़ावा दे सकता है।
बांग्लादेश के अंदर विरोध
देश की महिला अधिकार कार्यकर्ता, छात्राएं और सेक्युलर समूह इस फैसले के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि यह नियम लड़कियों को शिक्षण संस्थानों से दूर कर सकता है और उन्हें डर के माहौल में जीने के लिए मजबूर कर देगा। ढाका यूनिवर्सिटी और कई अन्य कॉलेजों में इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए हैं।बांग्लादेश में यह नया फरमान सिर्फ कपड़ों की बात नहीं है, यह उस मानसिकता की झलक है, जो महिलाओं को सिर्फ शरीर के रूप में देखती है, और उन पर नियंत्रण को एक सामाजिक कर्तव्य मानती है। इस समय जब पूरी दुनिया महिला स्वतंत्रता और समानता की बात कर रही है, ऐसे कट्टर फैसले एक खतरनाक दिशा की ओर इशारा करते हैं।