Inauguration of 76th annual Sant Samagam

76वें वार्षिक संत समागम का उद्घाटन, नर सेवा, नारायण पूजा: निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी

Chandigarh-Nirankari

Inauguration of 76th annual Sant Samagam

चंडीगढ़। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित जी द्वारा 76वें वार्षिक निरंकारी संत समागम की स्वैच्छिक सेवा का शुभारंभ आज संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा की पावन धरा पर किया गया। जैसा कि सर्वविदित ही है कि इस वर्ष का वार्षिक निरंकारी संत समागम दिनांक 28, 29 एवं 30 अक्तूबर, 2023 को आयोजित होने जा रहा है।

श्री ओ पी निरंकारी जी  जोनल इंचार्ज चंडीगढ़ ने बताया की चंडीगढ़ जोन व ट्राइसिटी से सैकड़ो श्रद्धालु  इस समागम में गए थे ।

इस अवसर पर संत निरंकारी मण्डल कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्य, केन्द्रीय योजना एवं सलाहकार बोर्ड के सदस्य, सेवादल के अधिकारी, स्वयंसेवक तथा दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्रो के अतिरिक्त अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्तो ने दिव्य युगल का स्वागत किया।

सेवा के इस सुअवसर पर श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि सेवा केवल तन से न होकर जब सच्चे मन से की जाती है तभी वह सार्थक कहलाती है। सेवा वही सर्वोत्तम होती है जो निःस्वार्थ एवं निष्काम भाव से की जाये। सतगुरु माता जी ने सेवा भाव के महत्व को बताते हुए कहा कि ब्रह्मज्ञान का बोध होने के उपरांत ही हमारे अंतर्मन में ‘नर सेवा, नारायण पूजा’ का भाव उत्पन्न होता है, तब हम प्रत्येक मानव में इस निरंकार प्रभु का ही अक्स देखते है। 

सतगुरु माता जी ने सेवा की सार्थकता को बताते हुए आह्वान् दिया कि निरंकारी मिशन का प्रत्येक श्रद्धालु भक्त यहां पर प्राप्त होने वाली सिखलाईयों से निरंतर प्रेरणा लें और एक सुंदर समाज के नव निर्माण में सहयोग दें।

समागम स्थल पर जैसे ही सेवा का विधिवत् उद्घाटन हुआ, हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त जो सेवा को ईश्वर भक्ति का एक अनुपम उपहार मानते हैं वह सेवाओं में तनमयता से जुट गये और अपना अल्प योगदान देने लगे। सभी श्रद्धालु भक्त यह भली भांति जानते है कि तन-मन-धन से की जाने वाली निस्वार्थ सेवा ही सर्वोत्तम भक्ति का एक सरल माध्यम है इसलिए वह सेवा के किसी भी अवसर को व्यर्थ नहीं जाने देते और ‘नर सेवा नारायण पूजा’ के सुंदर भाव को चरितार्थ करते हुए उसे प्राथमिकता देते है। वास्तविक रूप में सेवा का भाव ही मनुष्य में सही मायनों में मानवता का दिव्य संचार करते हुए उसे अहम् भावना से रहित करता है ।

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