कुत्ता काटने के मुआवजा दिये जाने के नोटीफिकेशन में कई पेंच: हाईकोर्ट चाहता था लोगों को राहत, प्रशासन बना अड़ंगा
- By Vinod --
- Thursday, 11 Jul, 2024
Many complications in the notification of giving compensation for dog bite
Many complications in the notification of giving compensation for dog bite- चंडीगढ़ (साजन शर्मा)I शहर के लोगों के हकों को लेकर चंडीगढ़ प्रशासन बिलकुल भी संजीदा नहीं है। भले ही फैसला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दिया हो या किसी कमीशन ने, प्रशासन अपने मुश्किल नियम तय करेगा। हाल ही में इसकी एक मिसाल सामने आई कुत्ता काटने के मामले में जारी उस नोटीफिकेशन से जिसमें प्रशासन ने ऐसा अडंगा अपनाया कि राहत तो लोगों को क्या मिलनी थी, उल्टा उनके लिये परेशानी बन गई। प्रशासन का हाल के दो मामलों में लोगों के प्रति गैर सहानुभूतिपूर्वक रवैया सामने आ गया।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अगस्त 2023 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था जिसमें कुत्ता काटने पर पीडि़त को मुआवजा देने की बात कही गई थी। कोर्ट ने इसको लेकर कमेटी गठित करने का आदेश प्रशासन को दिया था। ये कमेटी इस मंशा से बनाने को कहा गया था ताकि पीडि़त के लिये मुआवजे की राशि तय की जा सके। करीब एक साल बीतने को है लेकिन पहले तो प्रशासन ने कमेटी ही गठित नहीं करी। हाल ही में डीसी की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई तो इसमें ऐसे प्रावधान जोड़ दिये गये जो लोगों की दिक्कत बन गये। प्रशासन की ओर से इसका जो नोटीफिकेशन जारी किया गया उसमें कई सारी शर्तें जोड़ दी गई।
शर्तें भी ऐसी जिन्हें पूरा करने से लोग कतराने लगे। नोटीफिकेशन में एक शर्त प्रशासन ने यह जोड़ी कि अगर किसी को कुत्ता काटता है तो इसकी डीडीआर या एफआईआर संबंधित पुलिस थाने में दर्ज होनी चाहिए। दूसरी शर्त ये थी कि जिस अस्पताल में इलाज कराया गया उसका मेडिकल सर्टिफिकेट भी साथ मुआवजे के लिये लगाया जाना चाहिए। यानि प्रशासन की ओर से आम आदमी के लिये राहत को इतना मुश्किल कर दिया गया कि उसे मुआवजा लेने से ज्यादा इस पूरी प्रक्रिया में दिक्कत ज्यादा नजर आ रही है।
पुलिस के पचड़े में पडऩे से साधारण इंसान यूं ही दूर रहता है और थानों के चक्कर काटने से कतराता है लेकिन प्रशासन ने लोगों को इसी मुश्किल में फंसा दिया। हाईकोर्ट के जजमेंट में पीडि़त को केवल मुआवजा देने का आदेश दिया गया था। इसको लेकर तय हुआ कि एक जगह दांत के निशान पर अलग तो दो या ज्यादा जगह दांत के निशान पर और ज्यादा राशि का प्रावधान किया गया। प्रशासन ने हाईकोर्ट की ओर से दी राहत को परेशानी में बदल दिया।
कार्मल कान्वेंट में कमीशन का आदेश भी ठेंगे पर
इससे पहले कार्मल कान्वेंट स्कूल में पेड़ गिरने के हादसे के बाद हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस की अगुवाई में एक सदस्यीय कमीशन बनाया गया था। इस कमीशन ने हादसे में मरी लडक़ी के परिजनों को एक करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था। जो कमीशन प्रशासन ने खुद गठित किया था, उसके आदेश को ही मानने से इनकार कर दिया।आज तक पीडि़त परिवार को इस मामले में प्रशासन की ओर से मुआवजा नहीं मिल पाया। फिलहाल प्रशासन की मंशा स्पष्ट नहीं है कि वह लोगों को हाईकोर्ट के आदेश के बाद राहत की डोज देना चाहता है या इसमें अड़ंगा अड़ाए रखना चाहता है।
कुत्ता काटने के करीब 50 मामलों में हाल में हुई शिकायत
मिली जानकारी के अनुसार हाईकोर्ट के आदेश के बाद कुत्ता काटने के करीब 50 मामलों की शिकायत डीसी के पास पहुंच चुकी है। जो शर्तें प्रशासन ने हाल ही में जारी नोटीफिकेशन को जारी कर लगाई हैं वह शर्तें तो पुरानी शिकायतों के दौरान थी ही नहीं। अब पहला सवाल तो यह है कि क्या नोटीफिकेशन से पहले और हाईकोर्ट के आदेश के बाद जो शिकायतें आई उन्हें मुआवजा दिया जाएगा या नहीं? सैकेंड इनिंग एसोसिएशन के आरके गर्ग के मुताबिक कुत्तों की आबादी शहर में बढ़ रही है उसके लिये जिम्मेदार प्रशासन है। कुत्तों को पकडऩे के लिये भी प्रशासन कोई खास उपाय नहीं करता। लोगों की तो न कुत्तों की आबादी को लेकर और न उनके काटने के बाद सुनवाई ही नहीं हो रही। आम आदमी करे तो क्या करे?
पुलिस के पंगे में पडऩा नहीं चाहते लोग
सेक्टर 27 में हाल ही में कुत्ता काटने का एक मामला सामने आया। जिसे कुत्ते ने काटा उसे सैकेंड इनिंग एसोसिएशन के प्रधान राम कुमार गर्ग ने सेक्टर 22 के अस्पताल में भेज दिया गया ताकि मेडिकल हो सके। पता चला कि कुत्ते के काटने का डेढ़ इंच का जख्म है। इस मामले की शिकायत डीसी के पास भेजी गई। डीसी ऑफिस से शिकायतकर्ता को भी फोन भी आया लेकिन जिसे कुत्ते ने काटा, उसने पुलिस स्टेशन में शिकायत करना मुनासिब नहीं समझा। उसके मुताबिक पुलिस स्टेशन के कौन चक्कर काटे। चूंकि डीडीआर या एफआईआर दर्ज नहीं हो पाई लिहाजा प्रशासन की शर्तों के मुताबिक मुआवजा मिलना मुनासिब नहीं।
-दूसरा मामला कैंबवाला का था जिसमें एक बच्चे को कुत्ते ने काट लिया। अब परिजनों ने बच्चे का अस्पताल से इलाज तो करा दिया जिसका मेडिकल सर्टिफिकेट उनके पास है लेकिन जब उन्हें डीडीआर या एफआईआर दर्ज कराने को कहा गया तो उन्होंने पुलिस के पंगे में पडऩे से स्पष्ट इनकार कर दिया।