पूज्यपाद जगद्गुरु श्री वसंत विजयानंद गिरिजी का खरतरगच्छाधिपति आचार्य मणिप्रभसूरीजी ने किया हार्दिक आत्मीय सम्मान

Khartar Gachchadhipati Acharya Maniprabhasuriji
जीवन में श्रद्धा, विनय व विवेक जरुरी : पूज्यपाद जगद्गुरु वसंत विजयानंद गिरिजी महाराज
अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव में विकारों को त्यागने व संयम अंगीकार करने का भी दिया संदेश
बाड़मेर। Khartar Gachchadhipati Acharya Maniprabhasuriji: परमहंस परिव्राजकाचार्य अनन्त श्री विभूषित कृष्णगिरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु 1008 परम पूज्यपाद श्री वसन्त विजयानन्द गिरी जी महाराज का यहां बाड़मेर स्थित विश्व प्रसिद्ध कुशल वाटिका में खरतरगच्छाधिपति आचार्य मणिप्रभसुरीश्वरजी महाराज द्वारा भव्यता से आत्मीय आदर सम्मान किया गया। वे श्री जिनकुशल सूरी सेवाश्रम ट्रस्ट व जैन साधर्मिक वर्षीतप समिति बाड़मेर द्वारा आयोजित पारणा महोत्सव में विशिष्ट सान्निध्य प्रदान करने यहां पहुंचे थे। सत्य सनातन वैदिक धर्म परंपरा एवं साधु संप्रदाय में सर्वोच्च पद पूज्यपाद जगद्गुरु के पट्टाभिषेक पदारोहण बाद पहली बार अपनी जन्मभूमि धन्यधरा मरुप्रदेश राजस्थान में बाड़मेर आए थे। यहां स्थित कुशल वाटिका में ट्रस्ट मंडल के पदाधिकारियों द्वारा भी उनका स्वागत सत्कार किया गया। इस दौरान अपने आशीर्वचनीय वक्तव्य में पूज्यपाद जगद्गुरु ने अक्षय तृतीया पर्व विशेष की सभी उपस्थित जनों को बधाई शुभकामनाएं दी। साथ ही समस्त तपस्वी संतवृंद एवं श्रद्धालुजनों को संबोधित करते हुए तप की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अक्षय तृतीया का पारणा भी तभी सार्थक होगा जब उपवास के दौरान अन्न जल के त्याग के साथ वासना एवं विकारों का त्याग करके संयम अंगीकार करेंगे।
समस्त तपस्वीवृंद को अपना आनंदमय आशीर्वाद प्रदान करते हुए भक्त वत्सल भगवान, वचन सिद्ध पूज्यपाद गुरुदेवश्रीजी ने कहा कि स्वभाव में परिवर्तन लाते हुए अपने सद्गुणों को बढ़ाएं। पूज्यपाद जगद्गुरु ने यह भी कहा कि संतों से उपदेश, धर्म ज्ञान के साथ-साथ श्रेष्ठ शिष्यों की भांति श्रद्धा, विनय एवं विवेक भी ग्रहण करना चाहिए। प्रसंगवश व्यक्तित्व एवं वर्चस्व की विस्तार से विवेचना करते हुए कृष्णगिरी पीठाधीश्वर ने गच्छाधिपति आचार्य प्रवरश्री मणिप्रभसुरीश्वरजी की नेतृत्व क्षमता को हनुमानजी की वीरता की भांति बढ़ने जैसी बताया। इस दौरान गच्छाधिपति मणिप्रभसुरीश्वरजी ने अपने संबोधन में कहा कि सनातन परंपरा के सर्वोच्च पद जगद्गुरु के पद से नवाजे गए पूज्यपाद जगद्गुरु के आध्यात्म जगत में नाम, काम, पद, प्रेम, व्यक्तित्व एवं साधना की बढ़ रही विशालता को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। आत्म साधना की ओर निरंतर अग्रसर होकर वैश्विक स्तर पर जन-जन का कल्याण करने वाले श्री वसंत विजयानंद गिरि जी के द्वारा निर्मित होने वाले मंदिरों की श्रृंखला की विशालता भी अविस्मरणीय है। गच्छाधिपति आचार्य प्रवर ने कहा कि कृष्णगिरी पीठाधीश्वर के द्वारा कृष्णगिरी तीर्थ धाम में विशालतम 23 फीट के चतुर्मुखी पार्श्वनाथ भगवान के 421 फीट ऊंचे मंदिर की जब प्रतिष्ठा होगी और उसकी ध्वजा फहरेगी तो पूरे विश्व में शांति और एकता के साथ सनातन की पताका फहरेगी। इससे पूर्व साध्वीश्री डॉ विद्युत्प्रभाजी ने तप को विशिष्ट साधना बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति अथवा संत आदि तपस्वी, विद्वान या साधक हो सकता है, मगर सरल होना दुर्लभ है। साधना के शिखर पुरुष, पूज्यपाद जगद्गुरु श्री वसंत विजयानंद गिरी जी महाराज सरलमना संत है यह उनकी सबसे बड़ी उत्कृष्ट विशेषता है।
अनेक साधु-साध्वीवृंद ने भी इस मौके पर अपने-अपने विचार रखे। बड़ी संख्या में हुए पारणा कार्यक्रम एवं चढ़ावे आदि के कार्यक्रम में ट्रस्ट मंडल के पदाधिकारियों ने सभी का आभार जताया। कार्यक्रम में राजस्थान के विभिन्न शहर, गांवों सहित तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में गुरु भक्त पहुंचे थे।