India gave the right message to China

Editorial: चीन को भारत ने दिया सही संदेश, प्रखर विदेश नीति का परिचय

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India gave the right message to China

India gave the right message to China दक्षिण चीन सागर में भारत की ओर से अपना दावा पेश करना विदेशी नीति के नए अध्याय का प्रकट रूप है। एशिया महाद्वीप में भारत ने जिस प्रकार से खुद को बतौर नेतृत्वकर्ता और चीन की चुनौतियों को टक्कर देने वाले देश के रूप में पेश किया है, वह वैश्विक मानचित्र पर भारत की प्रबल दावेदारी को पुख्ता कर रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान जिस प्रकार से देश का रूख पेश किया है, वह चीन को जवाब देने के लिए काफी है। जी-20 शिखर सम्मेलन में जब 21 राष्ट्राध्यक्ष भारत पहुंच रहे हैं, तब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का खुद न आकर प्रधानमंत्री को भेजना जहां जी-20 देशों के इस समूह का अपमान है, वहीं चीन की वैश्विक हेकड़ी का भी परिचायक है।

चीन और रूस के राष्ट्र प्रमुखों ने इस बैठक से किनारा कर लिया है। रूस की यूक्रेन के साथ युद्ध की वजह से अपनी मजबूरियां हैं, वहीं कूटनीतिक रूप से रूस के राष्ट्रपति संभवत: भारत के समक्ष असहज स्थिति पैदा होने से भी बचने के उपाय के चलते भी बैठक में नहीं आ रहे हैं। हालांकि रूस और भारत के बीच दोस्ताना संबंध हैं, और यह सुनिश्चित है कि रूस, भारत से अपने संबंधों की अनदेखी नहीं करेगा। हालांकि चीन के संबंध में ऐसा नहीं है, चीन हर हालत में भारत के हितों से खिलवाड़ करने की प्रवृति से आगे बढ़ रहा है और उसका एकमात्र एजेंडा दक्षिण एशिया में भारत की तरक्की को रोकना है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आसियान बैठक में यह कथन बहुत बेहतरीन है कि 21वीं सदी एशिया की है और सभी मिलकर बढ़ेंगे।

गौरतलब है कि 10 देशों के संगठन आसियान की वैश्विक विकास में अहम भूमिका है। जी-20 से पहले आसियान देशों की बैठक में भी भारत ने वसुधैव कुटुम्बकम की विचारधारा को ही सामने रखा है। इस दौरान भारत ने 12 सूत्रीय प्रस्ताव पेश किया, जिसमें कनेक्टिविटी, व्यापार, डिजिटल बदलाव जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने जहां चीन को जवाब दिया है वहीं पाकिस्तान की भी खबर ली है। पाकिस्तान आतंकवाद की फैक्टरी बना हुआ है और आसियान बैठक में 12 सूत्रीय प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसमें आतंकवाद, आतंकी फंडिंग और साइबर दुष्प्रचार के खिलाफ सामूहिक लड़ाई का आह्वान किया गया। भारत वैश्विक मंचों पर लगातार इस तरह का आह्वान करता आ रहा है, जिससे अब विश्व के देश बखूबी समझने लगे हैं कि आतंकवाद का जनक कौन है और उसकी ओर से किस प्रकार पूरे दक्षिण एशिया को अशांत बना कर रख दिया गया है।

ऐसे में पाकिस्तान और चीन का गठबंधन भारत समेत दूसरे एशियाई देशों और अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के लिए खतरा बन चुका है। गौरतलब है कि चीन की ओर से एक मानचित्र जारी किया गया है, जिसके विरोध में भारत ने सबसे पहले आवाज बुलंद की थी। इस मानचित्र में चीन ने तकरीबन अपने सभी पड़ोसी देशों की जमीन पर दावा ठोका है। इसके बाद वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, ताइवान, नेपाल और जापान ने भी इस पर विरोध दर्ज कराया।

वास्तव में चीन की विस्तारवादी नीति से आज पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है। चीन अमेरिका के आकाश में जासूसी गुब्बारे भेज रहा है तो अमेरिकी नेताओं की वियतनाम आदि देशों की यात्राओं पर आग बबूला हो रहा है। जबकि वियतनाम पर उसका दावा अवैध है। चीन भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने को तैयार नहीं है, वहीं नेपाल को भडक़ा कर भारत के खिलाफ तैयार करने से बाज नहीं आ रहा है। चीन, भूटान के क्षेत्रफल को कब्जाए हुए है वहीं भारत में अरुणाचल प्रदेश को अपना बताता है। इसी प्रकार श्रीलंका को कर्ज के चंगुल में फंसा कर उसके जरिये भारतीय हितों पर कुठाराघात करने की चेष्टा में है। उसने पाकिस्तान को अपना गुलाम  बना लिया है और अन्य गरीब देशों की तरफ उसके लाल पंजे बढ़ रहे हैं। ऐसे में चीन की इन करतूतों का जहां प्रबल विरोध होना चाहिए वहीं चीन के मंसूबों की रोकथाम भी जरूरी है।

क्वाड देशों यानी अमेरिका, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया का समूह यही कर रहा है। लेकिन अब खाड़ी देशों सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में चीन के बीआरआई को मात देने के लिए भारत और अमेरिका एक बड़ी डील करने जा रहे हैं। दरअसल, भारत का पंचशील सिद्धांत चीन जैसे देश की समझ से बाहर है, इसके बाद मौजूदा मोदी सरकार की प्रखर विदेशी नीति का प्रभाव ही है कि चीन और उसके दोस्त देशों की करतूतों पर अंकुश लग रहा है। जी-20 समेत दूसरी वैश्विक बैठकों के जरिये भारत अपनी स्थिति को लगातार मजबूत कर रहा है, जोकि उचित है। दक्षिण चीन सागर पर अब भारत का स्टैंड प्रशंसनीय है और इसके बेहतरीन परिणाम सामने आएंगे। 

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