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Editorial: कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में मेहनती नेताओं को मिला इनाम

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कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन पार्टी के लिए यह संदेश है कि वह अब पूरी मोर्चाबंदी से आगे बढऩे को तैयार है। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने जिस प्रकार सभी बड़े नेताओं को इस शीर्ष नीति निर्धारण राजनीतिक इकाई में जगह दी है, वह सभी पक्षों को साधने की कोशिश है, वहीं पार्टी में मेहनत कर रहे नेताओं को भी पुरस्कृत करने का प्रयास है।  पार्टी अब अनिर्णय की स्थिति से भी बाहर निकालने को तैयार है, जब यह मान लिया गया था कि पार्टी में अनुशासन नहीं रहा है और सभी नेताओं का लक्ष्य भटक गया है।

इस कार्यसमिति में उन सभी चेहरों को स्थान मिला है, जोकि पार्टी के मौजूदा कर्णधार हैं और उसे आगे बढ़ाने में अपना सहयोग दे रहे हैं। हरियाणा की नजर से कार्यसमिति में जिस प्रकार  रणदीप सुरजेवाला और कुमारी सैलजा को प्रतिनिधित्व दिया गया है वह पार्टी में संतुलन बनाने की कोशिश है, लेकिन इसी दौरान राज्यसभा सांसद एवं पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा को भी कार्यसमिति का सदस्य बनाना जहां पार्टी नेतृत्व का हुड्डा परिवार की अनदेखी करने से बचने का जरिया है, वहीं यह प्रदेश में हुड्डा पिता-पुत्र की भविष्य की राजनीति को भी हरी झंडी है।

गौरतलब है कि बीते दिनों हरियाणा प्रदेश कांग्रेस नेताओं की पार्टी हाईकमान के साथ बैठक हुई थी, इस बैठक का एजेंडा यही था कि प्रदेश में गुटबाजी पर लगाम लगाई जाए। हालांकि जिस प्रकार से प्रदेश में अनेक वरिष्ठ नेता हैं, जोकि अपने-अपने स्तर पर राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं, उसके मद्देनजर यह मुश्किल है कि गुटबाजी पर नियंत्रण होगा, लेकिन इस दौरान प्रदेश में जिस प्रकार से सुरजेवाला, कुमारी सैलजा एवं किरण चौधरी ने एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए संयुक्त रैलियों, प्रदर्शनों का दौर शुरू किया है, वह  उनके बढ़ते प्रभाव का आधार है। अब कार्यसमिति जैसी अहम इकाई में हरियाणा से अगर रणदीप सुरजेवाला एवं कुमारी सैलजा को अहमियत दी गई तो यह इसका भी संदेश है कि पार्टी राज्य में सभी नेताओंं को साथ लेकर चलना चाहती है।

वास्तव में आजकल हरियाणा कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई अपने चरम पर है। बीते दिन हिसार में पूर्व सीएम एवं नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा की रैली में केवल उनके समर्थक नेता ही मौजूद रहे। जबकि पार्टी की ओर से इसे गठबंधन सरकार के खिलाफ एक मुहिम बताया गया है। अगर ऐसा है तो इसमें सभी नेताओं का एकजुट होना जरूरी था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में पार्टी नेतृत्व का कहा और राज्य में हुआ विरोधाभास को जन्म देता है। यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व ने नसीहत दी थी कि सभी को मिलकर चलना है और अति आत्मविश्वास में न रहकर धरातल पर काम किया जाना चाहिए।

हरियाणा कांग्रेस में लंबे समय से ऐसा गतिरोध कायम है, जिसमें पता ही नहीं चल रहा है कि संगठन है भी कि नहीं। यह स्थिति किसी पार्टी इकाई के लिए जोखिमपूर्ण और संशय वाली होती है। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा कांग्रेस में सीटों के बंटवारे में मनमर्जी के आरोप लगे थे, यह भी कहा गया कि एक पक्ष को ज्यादा सीटें दे दी गई। वहीं दूसरे पक्ष की ओर से कहा गया कि संगठन में मिलजुल कर विचार करके सीटें नहीं दी गई, जिसकी वजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। वास्तव में कांग्रेस अपने अंदर लोकतंत्र होने का दावा करती है, जोकि अच्छी बात है लेकिन क्या इसकी जरूरत नहीं है कि पार्टी में सभी गुटों, वर्गों को साथ लेकर चला जाए। अगर ऐसा हुआ तो पार्टी अपनी जीत की संभावनाओं को बढ़ा लेगी।

राहुल गांधी ने बीते दिनों से हरियाणा पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है तो यह पार्टी के लिए अच्छा है। इस समय प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया सभी गुटों से मुलाकात कर रहे हैं, वहीं लोकसभा क्षेत्र अनुसार पार्टी नेताओं को बुलाकर उनसे राय ले रहे हैं। यह अच्छी कवायद है, लेकिन इसमें भी गुटबाजी आधारित नाराजगी सामने आ रही है। यह भी देखने को मिल रहा है कि एक वर्ग इससे बात से परेशान हो जाता है कि आखिर दूसरे वर्ग या गुट को इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है। यह सब सामान्य बात है लेकिन अगर इसका स्तर असामान्य हो जाएगा तो फिर चुनाव में भी यह फूट सामने आकर दिखेगी।

किसी पार्टी का जनाधार उसके नेताओं के हवाले ही होता है। रणदीप सुरजेवाला ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रदेश प्रभारी की अपनी भूमिका को जिस प्रकार निर्वाह किया, उसके बाद ही उन्हें अब मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी मिली है, इसी प्रकार कुमारी सैलजा भी छत्तीसगढ़ प्रभारी की भूमिका में हैं। पार्टी को उन नेताओं को अवश्य ही आगे बढ़ाना चाहिए जोकि मेहनत कर रहे हैं और परिणाम ला रहे हैं। हालांकि कांग्रेस नेताओं को बेतुके बयानों से बचना चाहिए। जनता के निर्णय पर सवाल उठे सकते हैं, लेकिन उसे राक्षस तो नहीं बताया जाना चाहिए। 

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