खुशी और खुशमिज़ाजी

खुशी और खुशमिज़ाजी

खुशी और खुशमिज़ाजी

खुशी और खुशमिज़ाजी

हैपीनेस गुरू पी. के. खुराना
कई बार ऐसा होता है कि हमारी भेंट किसी ऐसे व्यक्ति से हो जाती है जो बहुत हंसमुख हो, हंसता रहता हो, मुस्कुराता रहता हो, खुश रहता हो और उसके कारण बाकी लोग भी खुश हो जाते हों। ऐसा हर व्यक्ति अक्सर आदतन खुशमिज़ाज होता है, जल्दी तनाव में नहीं आता, हालात संभालना जानता है और मिलने वाले लोगों से मीठा बोलना, कड़ुवी बातों का जवाब भी मीठे ढंग से देना उसकी आदत में शुमार होता है। ऐसे किसी व्यक्ति से मिलकर हमें हमेशा खुशी ही होगी, उसकी खुशमिज़ाजी हमारी प्रसन्नता का भी कारण बनेगी।
एक बार एक महात्मा जी के आश्रम में उनके शिष्यों की सभा चल रही थी। इस सभा में सिर्फ विवाहित दंपत्तियों को ही शामिल किया गया था। श्रोताओं में एक महिला ऐसी थीं जो हमेशा खुश रहती थीं। उनके पतिदेव भी बहुत हंसमुख और मिलनसार थे। दोनों की जोड़ी भी बहुत फबती थी। सब लोग ये मानते थे कि पति-पत्नी में आपसी समझ बहुत अच्छी है और वे आदर्श दंपत्ति हैं। महात्मा जी ने उस महिला से सवाल पूछा कि आप हमेशा खुश रहती हैं इसका राज़ क्या है? तब उनके पतिदेव को ख़याल आया कि उनकी धर्मपत्नी सबके सामने उनकी प्रशंसा करेंगी कि मेरे पतिदेव मेरा बहुत ख़याल रखते हैं, मेरी हर बात ध्यान से सुनते हैं और मानते हैं, घर की तरफ पूरा ध्यान देते हैं, मेरे साथ और बच्चों के साथ समय बिताते हैं इसलिए मेरी खुशी का कारण मेरे पतिदेव हैं, लेकिन हुआ इसका बिलकुल उल्टा। महिला ने कहना शुरू किया कि सवेरे जब मैं उठती हूं तो सबसे पहले भगवान का शुक्रिया अदा करती हूं कि मैं आज भी ज़िंदा हूं, मुझे आज का सूरज देखने को मिल रहा है, फिर मैं शीशे के सामने खड़ी होती हूं और देखती हूं कि भगवान ने मुझे सारे अंग दे रखे हैं, मैं अपने सब काम खुद निपटा सकती हूं, अपनी सारी ज़रूरतें खुद पूरी कर सकती हूं, तब मैं एक बार फिर भगवान का शुक्रिया अदा करती हूं और अपने खुदा से और खुद अपने आप से वायदा करती हूं कि मैं सारा दिन खुश रहूंगी और अपने आसपास के लोगों को खुश रखूंगी। मैं अपनी इच्छा से और अपने निश्चय से खुश रहना चुनती हूं और खुश रहती हूं। मेरी खुशी मेरे अपने विचारों पर निर्भर है, खुश रहने के लिए मुझे किसी बाहरी कारण की, किसी एक्सटर्नल स्टिमुलेशन की जरूरत नहीं है। उस महिला का ये जवाब इतना स्पष्ट और इतना अच्छा था कि खुद उनके पतिदेव ने भी तालियां बजा कर उस उत्तर का स्वागत किया। उस महिला का ये उत्तर हम सब की आंखें खोलने के लिए काफी है कि खुशी इस बात में है कि हम खुश रहें। खुश होने के लिए किसी बाहरी कारण की, किसी बाहरी प्रेरणा की तलाश न करें, बस खुश रहना शुरू कर दें। यह खुशमिज़ाजी है, खुश रहने का यही मंत्र है, और यह एकमात्र सफलतम मंत्र है।
विश्व प्रसिद्ध मोटिवेशनल स्पीकर और लेखक रॉबिन शर्मा कहते हैं कि कभी अगर दिमाग में कोई नैगेटिव विचार आये तो उसके बदले में तुरंत कोई पॉजिटिव विचार सोचना शुरू कर दें, ध्यान किसी और विचार पर या काम पर केंद्रित कर दें। उत्तेजना से बचें, आलोचना से बचें। इसके लिए उन्होंने एक और भी तरीका सुझाया है कि अगर आपके आसपास कोई फूल हो तो उसे अपने हाथ में ले लें। उसे ध्यान से देखें, उसकी बनावट पर, पंखुड़ियों पर, हर अंश पर, कई तरह से फोकस करें। इससे आपका ध्यान नैगेटिव विचारों से हट जाएगा। अगर आप ऐसा करने का अभ्यास कर लें तो शांति मिलेगी और विचारों में मजबूती आयेगी, शुद्धि होगी। रॉबिन शर्मा कहते हैं कि यदि हम अपने जीवन का एक लक्ष्य तय कर लें तो हमारा जीवन उस लक्ष्य पर केंद्रित हो जाता है, तब आत्मसंयम भी आसान है और अनुशासन भी। साइंस कहती है कि हमारे दिमाग में हर रोज़ औसतन साठ हज़ार विचार आते हैं और अगर हम अपना एक लक्ष्य बना लें और उसे लिख लें व बार-बार देखते रहें तो वह एक विचार इतना हावी हो जाता है कि बाकी 59,999 के बेकार विचार अर्थहीन हो जाते हैं, वे हमें भटका नहीं पाते। इससे हम अपने समय का बेहतर उपयोग कर पाते हैं, ज्यादा प्रोडक्टिव हो जाते हैं और जल्दी सफल होना संभव हो जाता है। स्वयं पर नियंत्रण आसान हो जाएगा, और स्वयं पर नियंत्रण का परिणाम है कि हमें अपने जीवन पर नियंत्रण हो जाएगा।
बहुत से गुरुजन लॉ ऑव अट्रैक्शन की बात करते हैं, लेकिन रॉबिन शर्मा का स्पष्ट मत है कि यह कायनात आपको वह नहीं देती जो आप सोचते हैं, कायनात आपको वह देती है जो आप हैं, जो आप बन जाते हैं, जो आपके जीवन का सार है, कायनात आपको वही देती है। सिर्फ सोचने से कुछ नहीं होता, जब आपकी सोच इतनी गहरी हो जाती है और उस सोच का आपके जीवन से इतना तादात्म्य हो जाता है कि वह एक विचार आपके जीवन की धुरी बन जाता है तो पूरी कायनात आपके उस विचार को मूर्तरूप देने में जुट जाती है। रॉबिन शर्मा कहते हैं कि आपको जिस काम से अरुचि होती हो या डर लगता हो, उसे ही करें, बार-बार करें, वह काम रुचिपूर्ण हो जाएगा, आसान हो जाएगा और आप पायेंगे कि यह मुहावरा बिलकुल सही है कि डर के आगे जीत है।
खुश रहने के कुछ बहुत साधारण नियम हैं। ये नियम बहुत आसान हैं, बहुत व्यावहारिक हैं और बहुत लाभदायक हैं। कुछ समय खुद के साथ अकेले बिताएं। यह एकांत है, अकेलापन नहीं। इस एकांत का आनंद लें, खुद के साथ का आनंद लें। खुद को परखें, खुद को समझें। अपने लक्ष्य के बारे में सोचें, अपना प्लान ऑव ऐक्शन तय करें। खुद के साथ समय बिताना, कुछ समय एकांत में बिताना ऐसा ही है मानो आपने अपनी बैट्री रीचार्ज कर ली। अपनी सेहत का ध्यान रखें, शुद्ध भोजन खायें, ताज़ा खायें, प्लांट-बेस्ड फूड यानी पेड़-पौधों से मिलने वाला भोजन खायें। हर रोज़ कुछ नया सीखें, पढ़कर, सुनकर या देखकर, पर सीखें। संगीत का आनंद लें, सवेरे जल्दी उठने की आदत डालें, और अपने विचारों में तथा अपने व्यवहार में सामंजस्य लाएं। आपका व्यवहार ही नहीं, आपके विचार भी शुद्ध हों, आपके काम भी शुद्ध हों, उनमें नैतिकता हो, अपने समय का सदुपयोग कीजिए, समय ही जीवन है, समय आपका असली धन है, खोया धन वापिस आ सकता है, खोई सेहत भी वापिस आ सकती है लेकिन खोया समय वापिस लाने का कोई साधन नहीं है। अत: समय की कीमत समझें और इसका बेहतरीन उपयोग करें। अंत में बस यह सोचिए कि अगर आज का दिन आपके जीवन का आखिरी दिन हो तो आप क्या करेंगे ? इस अकेले विचार से जो ज्ञान उपजेगा वह आपका जीवन बदल देगा। इससे आपके मन की ईष्या, द्वेष और तुलना की भावना जाती रहेगी, आप शुद्ध हो जाएंगे, आप बुद्ध हो जाएंगे। खुशमिज़ाजी आ जाएगी, खुशियां आ जाएंगी।