Elected Congress President, Not Leader

कांग्रेस अध्यक्ष चुने, नेता नहीं

Editorial

Elected Congress President, Not Leader

Elected Congress President, Not Leader : राजनीति में अगर मुकाबला एक व्यावहारिक और एक बौद्धिक के बीच हो तो किसकी जीत होगी, इसका बहुत हद तक पहले से परिणाम निकाल लेना मुश्किल नहीं कहा जा सकता। राजनीति में बौद्धिकों को बैकबेंचर ही समझा जाता है, उनसे ऐसे काम लिए जाते हैं, जोकि आराम से कुर्सी पर बैठकर किए जा सकते हैं। हालांकि अगर एक 80 वर्षीय व्यावहारिक और 66 वर्षीय बौद्धिक के बीच यह मुकाबला हो रहा हो तो यह यह गौर करने वाली बात होगी कि किसका चुनाव होना चाहिए। कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए चुनाव शुरू कराया है। शशि थरूर पार्टी के बौद्धिक चेहरे हैं, ब्रिटेन में जन्मे और भारत में पले-बढ़े थरूर के पास विचार हैं। यही वजह है कि वे मल्लिाकार्जुन खडग़े के खिलाफ मुकाबले में खुद को मिल रहे नाकाफी समर्थन और वोट के बावजूद यह कहने से नहीं डर रहे कि खडग़े भीष्म पितामह हैं, लेकिन उनके पास विजन है। पूरा देश जान रहा है कि मल्लिकार्जुन खडग़े और शशि थरूर में किसे अध्यक्ष चुनने जा रही है। यह भी खूब है कि पार्टी में एकता का आलाप करने वाले नेता थरूर को अकेला छोड़ रहे हैं और खडग़े के पर्चा दाखिल करते समय ही प्रस्तावकों का भारी जमावड़ा लगता है।

कांग्रेस में ऐसा 24 साल बाद होगा, जब गांधी परिवार से बाहर का नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा। बेशक, यह चिंतन का विषय है कि गांधी परिवार ने आखिर कैसे राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव पर सहमति जताई थी। जी-23 नेताओं का ग्रुप और पार्टी के अंदर एक स्थायी अध्यक्ष की मांग का बढ़ता दबाव गांधी परिवार नकार नहीं पाया है और अध्यक्ष का चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। हालांकि पहले अशोक गहलोत, फिर दिग्विजय सिंह और अब मल्लिकार्जुन खडग़े के नाम को अप्रत्यक्ष रूप से आगे बढ़ा रहे गांधी परिवार ने एकबार भी शशि थरूर के संबंध में प्रतिक्रिया नहीं दी है। शशि थरूर लंबे समय से सांसद हैं, वे संसद में अपनी बौद्धिक बहसों के लिए जाने जाते हैं। वे कांग्रेस के उन चेहरों में शामिल हैं, जिनका काम नीति निर्धारण होता है। हालांकि खुद गांधी परिवार नहीं चाहता है कि वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें। आखिर क्यों? क्या कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने के बावजूद उसी ढर्रे पर चलना चाहती है, जिस पर वह चलती आई है। खडग़े को गांधी परिवार अपना वफादार मानता है और थरूर को एक बागी। जाहिर है, जिसके पास स्वतंत्र सोच होगी, वह किसी के इशारे पर नहीं चलेगा। शशि थरूर क्यों नहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकते, जबकि उन्होंने वे सभी काबिलियत हैं, जोकि इस पद के लिए चाहिए। वे चुनाव लड़ रहे हैं, जनमत तैयार कर रहे हैं और जीत कर संसद में पहुंच रहे हैं। उनकी सोच और अनुभव का लाभ कांग्रेस क्यों नहीं उठाना चाहती?  

मल्लिकार्जुन खडग़े अगर 80 साल की उम्र में ही इतने सक्रिय हैं तो यह निश्चित रूप से उनके और कांग्रेस के लिए हितकारी है। उन्होंने पांच दशक पहले कर्नाटक में कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। वर्ष 1972 में पहली बार चुनाव जीतने के बाद वे वर्ष 2008 तक लगातार 9 बार विधायक चुने गए। वे अजा समाज से भी आते हैं। उनके पास वृहद राजनीतिक अनुभव है, हालांकि बदले दौर में कांग्रेस को क्या किसी कमोबेश युवा नेतृत्व की जरूरत नहीं होनी चाहिए। यह शशि थरूर की विनम्रता है कि वे यह समझ रहे हैं कि जीत किसकी हो सकती है। क्रॉस वोटिंग राज्यसभा चुनाव और उपराष्ट्रपति एवं राष्ट्रपति चुनाव के दौरान खूब देखने को मिली है, हालंकि न चुनावों में ऐसा हो सकता है या नहीं, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। तब अगर पहले से तय है तो फिर चुनाव का ढोंग भी क्यों किया जा रहा है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा जी-23 समूह में शामिल रहे हैं, लेकिन अब वे खडग़े के प्रस्तावक बन रहे हैं वहीं वोट देने से पहले ही खुलकर कह रहे हैं कि वे खडग़े की जीत चाहते हैं। जाहिर है, खडग़े की जीत अन्य नेता भी चाहते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि खडग़े की जीत से गांधी परिवार की जीत सुनिश्चित होगी। अब बेशक, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यह कहें कि दोनों उम्मीदवार स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में वे तटस्थ रहेंगी, एक आधिकारिक बयान हो सकता है, लेकिन मौजूदा नेतृत्व ने जिस प्रकार पहले अशोक गहलोत को तैयार किया, उसके बाद दिग्विजय सिंह को मनाया, फिर खडग़े के नाम पर सहमति दी, उसके बाद यह तय माना गया है कि गांधी परिवार अपना प्रतिनिधि ही इस चुनाव में जीतवाना चाहता है।

कहने को तो कांग्रेस के नेता जोर देकर कह रहे कि चुनाव को लेकर गांधी परिवार का रुख तटस्थ है, लेकिन नॉमिनेशन की तस्वीर से ही साफ हो गया कि उनका हाथ किसके सिर पर है। खडग़े के नामांकन के वक्त तमाम बड़े नेताओं की फौज मौजूद थी तो थरूर के पर्चा दाखिले के वक्त उनके अलावा बमुश्किल ही कोई ऐसा चेहरा था जिसे आम लोग तो छोडि़ए, कांग्रेस के कार्यकर्ता भी पहचान रहे होंगे। लिहाजा नतीजा पहले से तय दिख रहा कि खडग़े ही जीतेंगे। आलोचक भले ही कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव को दिखावा कहें लेकिन यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है कि भारत में कोई राजनीतिक दल पूरे देश के सामने सार्वजनिक तौर पर आंतरिक चुनाव करा तो रहा है।

सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के पुराने नेता नई पीढ़ी के लिए रास्ता देने से इनकार कर रहे हैं? खडग़े, अशोक गहलोत, कमलनाथ...ये तमाम नेता 70 साल से ऊपर के हैं। जबकि शशि थरूर इस समय 66 के ही हैं। आम जनता की राय है कि ऐसे में एक युवा नेतृत्व को रास्ता देना चाहिए। वास्तव में कांग्रेस नेतृत्व को इस चुनाव पर नहीं, अपितु कांग्रेस के भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। कांग्रेस को इस समय क्रांतिकारी और ऊर्जावान नेतृत्व की जरूरत है, जोकि अपनी समझ से फैसले ले सके। अगर अब भी 10 जनपथ से ही कांग्रेस संचालित रही तो नए अध्यक्ष का चुनाव कोई मतलब नहीं रखेगा। जाहिर है, गांधी परिवार का प्रतिनिधि अगर अध्यक्ष बनता है तो स्थिति वही रहने वाली है, लेकिन अगर मौलिक सोच के नेता को इसकी जिम्मेदारी मिली तो कुछ परिवर्तन निश्चित रूप से सामने आएगा।