Democracy Strong in India

Editorial: भारत में लोकतंत्र मजबूत, दुनिया करे अपनी परवाह

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Democracy Strong in India

Democracy Strong in India कांग्रेस नेता राहुल गांधी जिस समय लंदन में भारत के संबंध में यह कह रहे थे कि देश में लोकतंत्र खतरे में है, तब शायद उन्हें इसका अंदाजा नहीं था कि मानहानि मामले में अदालत का फैसला आना है और उसके बाद उनकी लोकसभा से सदस्यता चली जाएगी और उन्हें अपना सरकारी बंगला भी खाली करना पड़ेगा। क्या यह सब पहले से तय था? संभव है, इसे पहले से तय बताना बहुत बचकाना और न्यायपालिका एवं विधायिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण होगा।

यह सब एक लोकतांत्रिक देश के अंदर की घटनाएं हैं, जहां एक बड़े राजनेता को एक अदालत मानहानि के मामले में 2 साल की सजा सुना देती है और देश की संसद ने जो कानून बना रखा है कि किसी सांसद को अगर दो या इससे ज्यादा वर्षों की सजा होती है तो उसकी सदस्यता चली जाएगी का बखूबी पालन है। तब देश के अंदर लोकतंत्र को कहां हानि हुई या उसका अस्तित्व कहां संकट में पड़ा है। यह तो संविधान और कानून की विजय है, कि उनका पालन किया गया।  

 कांग्रेस की ओर से आजकल राहुल गांधी के मसले को लेकर अभियान चलाया हुआ है। कांग्रेस और विपक्ष ने इस पूरे प्रकरण को लोकतंत्र के खतरे में होने के रूप में परिभाषित किया है। अगर यह मामला देश के अंदर ही सीमित रहे तो फिर किसे दिक्कत हो सकती है, लेकिन मामला तब बिगड़ रहा है, जब अमेरिका, जर्मनी और दूसरे देश इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। सबसे हैरानी की बात यह है कि आखिर इन देशों को ऐसा करने की क्या जरूरत आ पड़ी है। उनका वास्ता देश और उसकी सरकार से होना चाहिए न कि किसी व्यक्ति विशेष से। आखिर भारत जोकि लोकतंत्र की जननी है, उसे यह बताने की आवश्यकता है कि उसके यहां लोकतंत्र है या नहीं।

एक मामला आजकल चर्चा में है कि जर्मनी ने राहुल गांधी के संबंध में टिप्पणी की है और इसके जवाब में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने जर्मनी को धन्यवाद किया है। यह अपने आप में बड़ी बहस का न्योता है कि क्या वास्तव में भारत को किसी बाहरी देश की लोकतंत्र के संबंध में टीका-टिप्पणी की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर कांग्रेस नेताओं को इसकी जरूरत क्यों पड़ रही है। उन्हें कभी चीन से, कभी पाकिस्तान से, कभी ब्रिटेन से और कभी जर्मनी से इस मदद की दरकार क्यों होती है। वास्तव में राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल का दिग्विजय सिंह को यह जवाब सही है कि हमें विदेश से समर्थन की जरूरत नहीं है, यह लड़ाई हमारी अपनी है।  यही बात सरकार या फिर भाजपा की ओर से कही जाती है तो इस पर भी सवाल उठते हैं, लेकिन चूंकि यह बात एक विपक्षी नेता की ओर से कही जा रही है, इसलिए इसका महत्व समझा जाना चाहिए।  अपनी टिप्पणी में जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि हमने भारत में विपक्षी नेता राहुल गांधी के खिलाफ फैसले और उनकी संसदीय सदस्यता समाप्त किए जाने का संज्ञान लिया है।

हमारी जानकारी के मुताबिक, राहुल गांधी फैसले को चुनौती दे सकते हैं। तब ये स्पष्ट होगा कि क्या यह फैसला टिक पाएगा और क्या निलंबन का कोई आधार है? जर्मनी को उम्मीद है कि न्यायिक स्वतंत्रता के मानक और मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांत समान रूप से राहुल गांधी के खिलाफ कार्यवाही पर लागू होंगे। अब जर्मनी के बयान पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा था कि राहुल गांधी को परेशान करके भारत में लोकतंत्र से समझौता किया जा रहा है।  

वास्तव में जर्मनी के विदेश मंत्रालय की यह टिप्पणी पूरी तरह से अनुचित है और यह भारत के आंतरिक मामलों में दखल है। पश्चिम के देशों में लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन इतनी खामोशी से हो रहा है कि किसी मीडिया में यह नहीं आता। लेकिन भारत दुनिया के देशों के संबंध में कुछ भी अतिरेक पूर्ण टिप्पणी नहीं करता, दूसरी भाषा में उनके मामलों में अपनी टांग नहीं अड़ाता। लेकिन पश्चिम के देशों ने यह अपना एजेंडा बना लिया है कि वे ऐसा करें, क्योंकि ऐसा करके उन्हें ऐसी संतुष्टि मिलती है, जिसमें वे यह देखते हैं कि एशिया का एक मध्यवर्गीय देश किस प्रकार तेजी से वैश्विक महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ रहा है। आज अमेरिका और रूस जैसे शक्तिशाली देश, भारत को मद्देनजर रखकर अपनी नीतियों को बना रहे हैं।

चीन जैसा विस्तारवादी देश चुप्पी साध कर इसलिए बैठा है, क्योंकि उसे भारत की ताकत का अहसास है। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश भारत के साथ विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिभागिता कर रहे हैं। दरअसल, भारत का महत्व और उसका स्थान विश्व में लगातार बढ़ रहा है, दुनिया को सही परिप्रेक्ष्य में सोचना चाहिए, वहीं देश के अंदर भी वैचारिक मंथन की जरूरत है, महज आरोप लगाकर मंतव्य नहीं पूरा हो सकेगा। 

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