Deadlock in Parliament, debate on concrete issues only benefits the country

Editorial : संसद में गतिरोध, ठोस मुद्दों पर बहस से ही देश को फायदा

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Deadlock in Parliament, debate on concrete issues only benefits the country

Deadlock in Parliament, debate on concrete issues only benefits the country: हिं डनबर्ग रिपोर्ट के सामने आने के बाद देश के दिग्गज उद्योगपति गौतम अडानी के मुद्दे पर संसद से लेकर सडक़ तक संग्राम मचा हुआ है। कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष इस मामले पर जेपीसी की मांग कर रहा है। लेकिन सरकार ने इस मसले को निजी मुद्दा बताते हुए विपक्ष की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। अडाणी प्रकरण (Adani case) को लेकर देश की राजनीति में ज्वार है, लग रहा है जैसे देश में कोई अन्य मुद्दा ही नहीं था, लेकिन गणंतत्र दिवस से एक दिन पहले इस रिपोर्ट के सामने आते ही विपक्ष को मुद्दे का ऐसा हथियार मिल गया, जिसके जरिये वह अब सरकार पर हमलावर है।  

विपक्ष की ओर से उठाए गए सवालों को भी समझा जाना चाहिए। यह अपने आप में बड़ा प्रश्न है कि साल 2014 में एक मामूली उद्योगपति अब दुनिया के सर्वाधिक अमीरों की संख्या में प्रमुख नंबर पर आ गया। उनकी कंपनी को सभी क्षेत्रों में उद्योग के लाइसेंस मिलते गए। कांग्रेस ने राज्यसभा में भी इस मुद्दे को उठाया है और पूछा है कि सरकार पब्लिक सेक्टर की कंपनियों को क्यों नहीं आगे बढ़ा रही, क्यों नहीं पब्लिक सेक्टर में रिक्त पदों को भरा जाता, जबकि इस सेक्टर में नौकरियों के जरिये आरक्षित वर्गों को भी लाभ मिलेगा। इसके बजाय सरकार निजी क्षेत्र को ही आगे बढ़ा रही है और अडाणी समूह इसका उदाहरण है। यह भी कहा गया है कि अडाणी समूह में करीब 30 हजार कर्मचारी ही कार्यरत हैं। लेकिन पब्लिक सेक्टर में 30 लाख नौकरियों की रिक्ति है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान पब्लिक सेक्टर की अनेक कंपनियों को बंद कर दिया गया है, जबकि निजी क्षेत्र अपने चरम पर है। केंद्र एवं राज्य सरकारें नौकरियां देने की बात करती हैं लेकिन निजी क्षेत्र में जब सीमित संख्या में ही नौकरियां दी जाती हैं और कई लोगों का काम एक-दो लोगों से ही लेने की जुगत की जाती है, तब पब्लिक सेक्टर की अनदेखी क्यों हो रही है?
 

इसके जवाब में भाजपा भी कांग्रेस (Congress) पर हमलावर हो जाती है और उन उद्योगपतियों के नाम गिनवाती है जोकि कांग्रेस की सरकारों पर फले-फूले। इनमें विजय माल्या का भी नाम शामिल किया गया है। हालांकि पार्टी का आरोप है कि अडाणी समूह को अनुचित फायदा पहुंचाने का आरोप भी कांग्रेस के वे लोग लगा रहे हैं, जोकि खुद जमानत पर हैं। भाजपा नेशनल हेराल्ड और अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले और डीएलएफ घोटाले का भी नाम कांग्रेस नेताओं से जोड़ रही है। हालांकि सवाल यह है कि विपक्ष के सवालों का सत्तापक्ष संतोषजनक जवाब क्यों नहीं दे पा रहा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बोल चुकी हैं कि अडाणी मामले से सरकार का कोई लेना देना नहीं है। अब सरकार ने जेपीसी की मांग को भी ठुकरा दिया है। उसका कहना है कि जेपीसी तब बैठती है, जब आरोप साबित होते हों। इसके अलावा जब सिक्योरिटी या सरकार पर आरोप लगता है तब भी जेपीसी का गठन किया जाता है।  

अब लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) का बयान भी आया है, जिसमें उन्होंने अपनी सरकार का बचाव करते हुए कहा है कि देश की प्रगति कुछ लोगों को हजम नहीं हो रही, इसलिए वे ऐसे आरोप लगा रहे हैं। जाहिर है, केंद्र सरकार के अपने तर्क हैं, लेकिन विपक्ष के सवाल भी अपनी जगह सही हैं। देश को तरक्की चाहिए लेकिन वह यह भी जानना चाहेगा कि आखिर कुछ लोग ही क्यों निजी क्षेत्र के मालिक बन बैठे हैं। उन लोगों को सरकारी बैंकों से मनचाहा लोन हासिल हो जाता है, जबकि आम आदमी को एक मामूली सी राशि का लोन लेने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश के पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की बात भी कही है, हालांकि इसी प्रकार से अगर देश में निजीकरण होता रहा तो देश संभव है, पहली सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए लेकिन अमीर और गरीब के बीच की खाई भयंकर रूप से चौड़ी हो जाएगी। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में गरीब भी खुद को गरीब कहते शर्माता है, क्योंकि उसे लगता है कि जब हर तरफ अमीर और अमीरी की बात हो रही है, तब वह खुद को गरीब कहकर क्यों  उपहास का पात्र बने। वास्तव में विपक्ष के पास सरकार की आलोचना का हक है, लेकिन संसद के अंदर दूसरे अनेक ऐसे कार्य हैं, जिन पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। अदाणी समूह के जरिए मोदी सरकार पर निशाना साध कर विपक्ष अपने मंसूबे पूरे करने की इच्छा नहीं रखता बल्कि विपक्ष की जायज मांग है और सत्तापक्ष इस तरह के आरोपों से बच नहीं सकता बल्कि सत्तापक्ष को विपक्ष की जायज मांग पर विचार करने की जरूरत है तथा इस प्रकार की बहसों को सदन के बाहर ही रखा जाए तो ज्यादा बेहतर है। सरकार से अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह और ज्यादा पारदर्शिता से अपने कर्तव्य को अंजाम देगी। 

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