Crimes against women should be heard immediately

महिलाओं के प्रति अपराधों की तुरंत सुनवाई हो

Editorial

Crimes against women should be heard immediately

Crimes against women should be heard immediately : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) का दो दिवसीय हरियाणा दौरा (Two day haryana tour) प्रदेश के विकास और इसकी सांस्कृतिक पहचान को देश और दुनिया में सामने लाने वाला सिद्ध हुआ है। महामहिम ने जहां प्रदेश को तीन बड़ी परियोजनाओं की सौगात प्रदान की है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती समारोह (International Gita Jayanti Celebration) में उपस्थित होकर इस समारोह को वैश्विक स्वरूप प्रदान करने में भी राज्य सरकार का सहयोग किया है। गीता जयंती हरियाणा, कुरुक्षेत्र और भारत की सांस्कृतिक महत्व (Cultural significance of india) को बढ़ाता आया है, प्रत्येक वर्ष इसके आयोजन के दौरान देश-विदेश से लाखों लोग गीता, इसके संदेश और कुरुक्षेत्र के धार्मिक महत्व (Religious Significance of Kurukshetra) का अहसास करते हैं। बीते दो वर्षों से गीता जयंती का उत्सव नहीं हो पाया था, हालांकि इस बार राष्ट्रपति मुर्मू ने स्वयं उपस्थित होकर इस उत्सव की गरिमा को राष्ट्रव्यापी बना दिया।

राष्ट्रपति ने हरियाणा में बेटियों के बढ़ते रूतबे (Rising status of daughters in Haryana) को रेखांकित किया है, उन्होंने यहां की बेटियों के खेल और अन्य क्षेत्रों में दिखाए जा रहे दमखम की प्रशंसा की है। हरियाणा में आज स्त्री-पुरुष लिंगानुपात सुधर चुका (Sex ratio has improved) है, हालांकि एक समय यही वह प्रदेश होता था जहां कन्या भ्रूण हत्या की वारदातें सबसे ज्यादा होती थी। महामहिम का यह उद्बोधन कि परिवार और समाज को हमेशा बेटियों के जज्बे की सराहना (Appreciate the spirit of daughters) करनी चाहिए, पूरे समाज के लिए एक संदेश है। हरियाणवी समाज में पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारी सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन देखने को मिला है। सबसे बड़ी बात यह है कि बेटियों के संदर्भ में अब आम हरियाणवियों की सोच बदल गई है। अब उन्हें भतेरी जैसे नामों से नहीं पुकारा जाता, अपितु वे गीता, बबीता और दूसरे नामों से जानी जाती हैं, जबकि ओलंपिक और दूसरे खेल आयोजनों में मेडल जीतती (Winning medals in sporting events) हैं। बीते ओलंपिक में हरियाणा की बेटियां का कमाल (Amazing of Haryana's daughters in Olympics) पूरी दुनिया ने देखा है। प्रदेश में इस परिवर्तन का आधार बना है बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान। राष्ट्रपति ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को इस अभियान के सफल कार्यान्वयन के लिए बधाई दी है।

गौरतलब है कि वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने हरियाणा से इस अभियान की शुरुआत की थी। इसके बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल (Chief Minister Manohar Lal) ने अभियान के गंभीरता से संचालन के लिए अलग से प्रकोष्ठ बनाया था। सरकार के सख्त निर्देशों के बाद लिंग जांच करने वालों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की गई और उन लोगों को जेल भिजवाया गया। यह भी गौरतलब है कि इससे पहले अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती (No strict action on ultrasound centers) थी। राज्य में ऐसे भी अनेक मामले सामने आए हैं, जब पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की टीम (Health department team) ने दूसरे राज्यों में जाकर भू्रण जांच कराने वाली माता और उसके रिश्तेदारों और जांच में लगे मेडिकल कर्मियों को गिरफ्तार किया है। एक समय झज्जर जिला लिंगानुपात में बेहद गंभीर (Jhajjar district very serious in sex ratio) स्थिति में था, प्रदेश में भू्रण जांच के सर्वाधिक मामले भी यहीं देखने को मिलते थे, लेकिन सरकार ने कड़ी कार्रवाई के जरिये कन्या भ्रूण हत्या की जांच और उसकी हत्या पर रोकथाम लगवाई।

यह भी हर्ष का विषय है कि अब आशा वर्कर्स, एएनएम और डॉक्टरों की टीम (ANM and team of doctors) कन्या भू्रण हत्या की रोकथाम के लिए सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। आशा वर्करों से सीधे संवाद के जरिए तो राष्ट्रपति को एक आशा वर्कर ने यह भी बताया है कि किस प्रकार वे अब तक 19 रेड में शामिल हो चुकी हैं। इससे मालूम होता है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग जहां संजीदगी से इस अपराध की रोकथाम में जुटा है, वहीं सबसे निचले स्तर पर आशा वर्करों की भूमिका (Role of ASHA workers) भी निरंतर बढ़ती जा रही है। उनकी सक्रियता और मौजूदगी के बगैर यह सफलता संभव नहीं है। हरियाणा के संबंध में एक सामाजिक चेतना और जो सामने आ रही है, वह बेटियों के जन्म पर कुआं पूजन और उनकी घुड़चढ़ी निकालने की है। अभी तक हरियाणवी समाज में बेटों के जन्म पर ही कुआं पूजने और उनकी घुड़चढ़ी निकालने की रवायत रही है, हालांकि अब बुजुर्ग दादियां भी अपनी पोतियों के प्रति लाड दर्शाते हुए उनके लिए कुआं पूजन का कार्यक्रम आयोजित करवाती हैं वहीं शादी के समय उनकी घुड़चढ़ी भी निकलवाती हैं। इन सामाजिक कार्यक्रमों का निहितार्थ समाज में आए बदलाव को परिलक्षित करता है।

जाहिर है, यह परिवर्तन स्वागत योग्य है, हालांकि अब भी बेटियों की शादी में दहेज जैसी बुराई (Evil like dowry in marriage of daughters) जारी है। दहेज बेटियों के उत्पीडऩ का जरिया (Dowry means of harassment of daughters) बन चुका है। खाप पंचायतें अपने यहां दहेज लेने और देने पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं, लेकिन फिर भी चोरी-छिपे या फिर अन्य माध्यमों से दहेज की रवायत जारी है। सरकार को बेटियों की शिक्षा, उनके स्वास्थ्य और रोजगार पर ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि दहेज की कुप्रथा पर रोक (Stop the practice of dowry) लग सके। प्रदेश में महिला थाने बनाए गए (Women's police stations have been set up in the state) हैं, लेकिन महिलाओं के प्रति अपराध कम नहीं हो रहे। ऐसे में जरूरत है कि सरकार और प्रशासन निम्न स्तर पर यह सुनिश्चित करे कि महिलाओं के प्रति अपराधों की तुरंत सुनवाई हो और अदालतों से उन्हें त्वरित न्याय (Speedy justice to them from the courts) प्राप्त हो सके। 

 

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