Cow dung is the wealth of the poor, cooking gas for the poor's house made from cow dung

गोबर गरीब का धन, गोबर से बने उपले गरीब के घर की रसोई गैस- देहात में गोबर से बना इंधन व अन्य चीजें भी है आय का जरिया

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Cow dung is the wealth of the poor, cooking gas for the poor's house made from cow dung

Cow dung is the wealth of the poor, cooking gas for the poor's house made from cow dung-पंचकूला। समाज और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में देहात का महत्वपूर्ण योगदान रहा है1देश की अधिकतम आबादी गांवों में बसती है,बेशक भारत गांवों में बसता है लेकिन आजादी प्राप्ति के सालों बाद भी देहात में बसने वाले आम देहाती को आज तक सब कुछ नही मिल सका, जिसके लिए वह अधिकार रखता है। वर्तमान में कुकिंग गैस की कोई कमी नही है1 आज लगभग हर घर में खाना बनाने के लिए गैस उपलब्ध है 1 इसके बाद भी घर की बुजुर्ग महिलाएं परंपरागत ईंधन का प्रयोग कर लेती है 1 इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की अर्थव्यवस्था खेती बाडी पर निर्भर हैं। आर्थिक ढांचे को  सुदृढ करने के लिए कृषि,पशुपालन का मुख्य योगदान रहा है।

पशुपालन का जिक्र आते ही गोबर तथा गोबर से बनी चीजों का महत्व मानस पटल पर आना स्वाभाविक है। देहात में रोजमर्रा के कार्यों में गोबर को ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।सही मायनों में गोबर तथा गोबर से बनी वस्तुएं देहात में लोगों के आर्थिक तंत्र को मजबूत करने में अहम भूमिका अदा कर रही है। बेशक शहरों तथा कस्बों में आजकल गैस का प्रचलन अधिक बढ़ गया है लेकिन महंगाई के इस जमाने में गैस की बढ़ती कीमतों से घबराए लोग विशेषकर गांव के लोग गोबर से बने उपलों की बात करने लगते है। गोबर सहित गैर पर परम्परागत चीजें हमारी संस्कृति की पहचान है तथा संस्कृति संस्कारों की सच्चाई का आईना है

गरीब के घर की रसोई गैस है उपले - गोबर को गरीब का धन कहा जाता है। गोबर से बने उपलों को यदि गरीब के घर की रसोई गैस कहा जाए तो यह बात भी सही है। देहात में दिनचर्या की शुरुआत गोबर से होती है तथा शाम को कार्यो का समापन भी गोबर के प्रयोग से ही होता है। गांव में प्रतिदिन चाय वा नास्ता बनाने के कार्यो से ही उपलों का प्रयोग शुरू हो जाता है। दिन में खाना बनाने, खिचडी, राबडी, दलिया, कडी, हलवा, खीर अन्य स्वादिष्ट व्यंजन बनाने में गोबर से बने उपलों,गोहों का ही प्रयोग किया जाता है। इन्हे गोसे भी कहा जाता है।

आर्युवेद का जानकार डा. के पी सिंह बातचीत के दौरान बताया कि गोबर पोषक, शोधक, दुर्गन्ध नाशक, बलवर्धक एंव कांति दायक है।अमेरीकी डा. मैकफर्सन के अनुसार गोबर के समान सुलभ कीटनाशक द्रव्य दूसरा कोई नही है।रूसी वैज्ञानिकों के अनुसार आणविक विकिरण का प्रतिकार करने में गोबर से पुती दीवार पूरी तरह सक्षम है। कहा जाता है पुराने जमाने में ऋषि मुनि गोबर से पर्याप्त मात्रा में विटामिन प्राप्त कर दीर्घायु प्राप्त करते थे। गोबर के लेपन व प्रयोग से कई बीमारियों को नष्ट होने की मान्यता हैं। हैजा,मलेरिया,खुजली, अग्निदग्ध,सर्पदंश तथा दंत रोग इत्यादि गोबर या इससे बने उपलों के प्रयोग से बेहतर स्वास्थ्य लाभ पा सकते है। आज भी प्रचलित है गोबर से जुड़े लोकगीत व गाथांए। गोबर तथा उससे बनी चीजों ने हिन्दी साहित्य, लोकगीतों, समृद्ध परंपरा, रहन सहन तथा जीवन शैली में भी अपना अहम स्थान बनाया है। गोबर से बने बिटोडा के बारे में अनेक कहावतें है। देहात में गोबर के लोकगीत वा गाथांए भी प्रचलित हैं। गोबर पाथने की बात को लेकर बहु सास से कहती है कि सासू मेरे तै गोबर ना पथै, मेरे हाथां में पाटै बिंवाई। गोबरे बसती लक्ष्मी,अर्थात गोबर में लक्ष्मी का वास होता है। गोबर मैं डला मारै, छिनटम छींटा होवै।

कलायत निवासी जसवंत सिंह राणा और आयुर्वेदिक पद्धति का ज्ञान रखने वाले लोगों ने एक भेंट के दौरान बताया कि उपलों के प्रयोग से बनाई गई चीजें न केवल स्वादिष्ट होती हैं बल्कि उनमें स्वास्थ्य वर्धक विटामिन भी पूरी तरह उपलब्ध रहते हैं। ग्रामीण महिलाएं हारे व चूल्हे पर मिट्टी के बने बर्तनों में खिचड़ी,दलिया, इत्यादि बनाने के लिए रख देती है,जो धीमी-धीमी आंच में पकते रहते हैं। इसी बीच महिलाएं अन्य कार्यों में व्यस्त रहती है। हारों पर धीमी आंच में बना खाना ना केवल स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होता है बल्कि स्वास्थ्यवर्धक एवं ऊर्जा से भरपूर होता है। हारे में रखा दूध कम आंच में पकने से उसका रंग हल्का लाल होता जाता है,जिस पर आने वाली मोटी मलाई ताकत से भरपूर होती है। इस दूध से बनी लस्सी बहुत ही स्वादिष्ट होती हैं। पशुओं के लिए बिनौले इत्यादि गर्म करने के लिए भी उपलों का ही प्रयोग किया जाता हैं।

देश के विभिन्न राज्यों में उपलों की अलग-अलग संज्ञा

उतरी भारत विशेषकर हरियाणा, पंजाब, तरप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश अन्य कंई राज्यों मेंउपलों को गोहे,गोसे,राने,थेपडी,कण्डे,बरकूले आदि नामों से जाना जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हमारे देश में आकर्षक ऋतूओं की पूरी मौज है,इनमें वर्षा ऋतू का आगमन बहुत ही सुहावना होता है।देहात की औरतें बरसात के मौसम की आहट से पहले ही काफी संख्या में उपलों को सुखाकर रख लेती हैं। बाद में इन्हे तरतीब से लगाकर बिटोडे बना देती है।ग्रामीण महिलाएं बिटोडे बनाने मे काफी पारंगत होती है।बिटोडे इस प्रकार बनाए जाते है ताकि वर्षा के पानी से उपले भीगने ना पाए और समय पडने पर उपलों को ईंधन के रूप में प्रयोग करने के लिए निकाला जा सके। उपले देहात के आर्थिक तंत्र को मजबूत करने में भी काफी सहायक सिद्ध होते है। कुछ महिलाएं मेहनत करके काफी संख्या में उपले पाथ लेती है तथा वक्त पडने पर अन्य को 5 से 10 उपले प्रति रूपया बेच भी देती है। गोहे ईट पकाने में भी प्रयोग में लाए जाते हैं। ईंट   लगाने वाले प्रति बिटोडा के आकार के अनुसार चार हजार से पांच हजार तक में खरीद लेते है।महिलाएं इससे होने वाली आय से दैनिक उपयोग की चीजें जैसे हल्दी,नमक,तेल,साबुन,जूते, चप्पल,कंघी तथा बच्चों की स्लेट बत्ती,कलम,दवात व पेंसिल इत्यादि खरीद कर घर का काम चलाती रहती है।यहां तक की मायके जाने का किराया भी निकाल लेती है। गोबर या उससे बनी चीजों को देहात की महिलाओं का खजाना भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नही होनी चाहिए।

ग्रामीण स्तर पर करवाई जानी चाहिए प्रतियोगिताएं 

देहात की महिलाओं का मानना है कि यदि इस विषय बारे ग्रामीण स्तर पर प्रतियोगिताएं करवाई जाए तो इस पर परा और कला में निखार लाया जा सकता हैं। ऐसा करने से ना केवल हमारी गैर परम्परागत संस्कृति को संवारने वा सहेजने में मदद मिलेगी बल्कि कला एवं संस्कृति के नए अध्यायों का सूत्रपात होगा।गोबर कीट,पतंगों तथा छोटे जीवों का आहार है।यह आसानी से प्राप्त हो जाता है।गोबर को खेतों में जैविक खाद के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है। इसके प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है तथा लहलहाते हरे भरे खेत सकून देते है। गोबर की खाद वाले खेतों की फसल गुणवत्ता एंव उत्पादन क्षमता बहुत ही अच्छी मानी जाती है। आज के दौर में इसे आरगैनिक खेती कहा जाने लगा है।लोगों में लगातार यह धारणा एवं मान्यता घर करती जा रही है कि रासायनिक खादों का प्रयोग कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है। इसलिए लोग विशेषकर शहर के लोग देसी चीजों का अधिक उपयोग करने लगे हैं।आजकल तो देहात में गोबर गैस प्लांट का प्रचलन बढ़ गया है।यह खाना बनाने से लेकर कई अन्य कार्यों सहित आर्गेनिक खाद तैयार करने के लिए भी किफायती हैं।

गोबर या गोबर से बनी चीजों का प्रयोग नया नहीं है समाज में

गोबर को सजावट के रूप मे भी प्रयोग किया जाता है। हमारे संस्कार हमारी समृद्ध संस्कृति पर आधारित है। गोबर का समाज के साथ गहरा संबंध है। द्वापर युग में योगीराज भगवान कृष्ण ने ब्रज वासियों को  मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अंगुली पर धारण कर लिया था। सामाजिक सरोकार की कंई ऐसी कहावत सुनने को मिलती है,जिनमे गोबर के महत्व को दर्शाया गया है। भारतीय संस्कृति एवं जीवन शैली की धरोहर है गोबर तथा उससे बनी चीजें हमारी संस्कृति संस्कारों की सच्चाई का आईना है। प्राचीन समय से ही लोग गोबर को शुभ मानते आए है।देहात में तो गोबर से घरों को सजाया जाता है।शुभ लगन कार्यो में आज भी गोबर का प्रयोग किया जाता है।बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरे का पर्व सांस्कृतिक और अध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। दशहरे से दस दिन पूर्व देहात में गोबर वा मिट्टी से बनी दुर्गा मां की प्रतीमा दीवारों पर बनाई जाती है।दशहरे तक महिलाएं इसकी पूजा करती है। इसके बाद दशहरे वाले दिन गोबर से ही दस पीढिय़ां बनाई जाती है,जो पूजा अर्चना करने के बाद पवित्र जल में प्रवाह कर दी जाती है।

एक जमाना था जब फिल्मों में देहात के दृश्य फिल्माए जाते थे 

ग्रामीण सौंदर्य तथा कलात्मक दृष्टिकोण से भी गोबर से बने बिटोडों का अलग महत्व है। देहात में महिलाएं जिस लगन के साथ बिटोडों पर नक्काशी बनाती हैं वह हमारे लोक मानस एंव लोक कला की वैभवशाली परम्पराओं की परिचायक है। जिस तरह विद्वान लोग यज्ञ,हवन के समय मन्त्रोचारण करते है। देहात में महिलाएं भी बिटोडे लगाते से मन की कोमल भावनाओं के साथ लोक संस्कृति के रोचक गीत गाती है। बिटोडे लगाने का कार्य मार्च-अप्रैल तथा मई के महीने में किया जाता है।एक जमाना था जब फिल्मों में देहात के दृश्य फिल्माए जाते थे तो उसमें गोबर या उससे बनी चीजो के दृश्य प्रदर्शन अवश्य होते थे। आज भी क्षेत्रीय फिल्मों में इस प्रकार के दृश्य फिल्माए जाते है।

देहात में सामाजिक सरोकार और आवभगत की पहचान है हुक्का

हुक्का भरने के लिए उपलों से बनी आग ही प्रयोग में लाई जाती है। धुणों में उपलों का प्रयोग किया जाता है। देहात में हुक्का आवभगत का साधन माना जाता है। मेहमानों के घर पहुंचते ही सबसे पहले हुक्का भर कर दे दिया जाता है ताकि इसी बीच चाय,नाश्ते व खाने का इंतजाम कर लिया जाए।गोबर से बने उपले मिट्टी के बर्तन,ईटें हुक्के, सुराही,चुगडे कुल्डी,घडे इत्यादि बनाने के प्रयोग में भी लाए जाते हैं। भले ही आधुनिक पीढी गोबर के महत्व को नकार दे,लेकिन जिस मुकाम पर हम खडे हैं, वह गोबर जैसी गैर परंपरागत चीजों का ही करिश्मा है।ं कहा जाता है कि गोबर का उपयोग शुभ मंगल कार्य से जुडा है। यही कारण है कि ग्रामीण अंचल में किसी भी शुभ लगन कार्य को करने से पहले उस स्थान को गोबर से लीपा जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक गोबर से बने चीजों की विशेष भूमिका है। देहात के लोग सारा जीवन गोबर का प्रयोग करते रहते हैं।आखरी वक्त यानी मरने के बाद भी व्यक्ति का शरीर उपलों की आगोश में समा जाता हैं।