Lord Shree Ganesh

lord shree ganesh: भगवान श्रीगणेश का नाम जपने से ही सब कष्ट हो जाते हैं दूर

Ganesh-ji

Lord Shree Ganesh

Lord Shree Ganesh सभी देवों में भगवान श्रीगणेश को सर्वप्रथम स्थान प्राप्त है। विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश की सर्वप्रथम पूजा के बाद ही अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना का विधान है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जन्मे भगवान श्रीगणेश एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। भगवान श्रीगणेश अपने चारों हाथों में क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। भगवान श्रीगणेश रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। भगवान श्रीगणेश रक्त चंदन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। भगवान श्रीगणेश अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

भगवान गणेश Lord Ganesh के नाम जप से सब कष्ट होते हैं दूर : एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिक रूप तथा प्रणव स्वरूप हैं। उनके अनन्त नामों में सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र तथा गजानन- ये बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह-नगरों में प्रवेश तथा गृह नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।

पौराणिक कथा
पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्रीपार्वतीजी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगाजी में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वतीजी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्माजी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।

दूसरी ओर लिंगपुराण में उल्लेख मिलता है कि एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वर मांगा। आशुतोष शिव ने तथास्तु कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेशजी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने सुमन-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेशजी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया। 

भगवान गणेश जी का परिवार
प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि-बुद्धि नामक दो कन्याएं भगवान गणेशजी की पत्नियां हैं। सिद्धि से शुभ और बुद्धि से लाभ नामक शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए। शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेशजी का वाहन बताया गया है।

गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड में उल्लेख है कि कृतयुग में गणेशजी का वाहन सिंह है। वे दस भुजाओं वाले, तेज स्वरूप तथा सबको वर देने वाले हैं और उनका नाम विनायक है। त्रेता में उनका वाहन मयूर है, वर्ण श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर नाम से विख्यात हैं और छह भुजाओं वाले हैं। द्वापर में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले और मूषक वाहन वाले हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं। कलियुग में उनका धूम्रवर्ण है। वे घोड़े पर आरुढ़ रहते हैं, उनके दो हाथ हैं तथा उनका नाम धूम्रकेतु है। 

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