INLD's future

ऐलनाबाद उपचुनाव तय करेगा इनेलो का भविष्य 

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चंडीगढ़। ऐलनाबाद विधानसभा का उपचुनाव इनेलो का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। यही नहीं इस चुनाव परिणाम से यह भी साफ होगा का पूर्व उपप्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल का राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन है। इनेलो के दो फाड़ होने के बाद बनी जननायक जनता पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करते हुए 10 सीटें हासिल कर हरियाणा की भाजपा सरकार में साझेदारी कर सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई,जबकि इनेलो मात्र एक सीट पर सिमट कर रह गई थी,जिसके एकमात्र विधायक ऐलनाबाद से अभय चौटाला बने थे। जिन्होंने किसान आंदोलन के चलते 27 जनवरी को अपना इस्तीफा दे दिया था। इस समय इनेलो का कोई भी सांसद या विधायक नहीं है।

दुष्यंत चौटाला की पार्टी ने गठन के महज दस माह के भीतर रणनीति के तहत आगे बढ़ते हुए दस सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की है। इनेलो और जननायक जनता पार्टी दोनों ही अपनी पार्टियों को चौधरी देवीलाल की नीतियों पर चलने वाली पार्टी बताते हैं। दोनों दलों के नेता ताऊ देवीलाल के नाम पर ही वोट मांगते हैं।

चौधरी देवीलाल हरियाणा ही नहीं देश की राजनीति में कद्दावर नेता थे, जिन्होंने 1987 में 90 में से 86 सीट जीतकर एक इतिहास रचा था। अजय चौटाला व अभय चौटाला दोनों भाई होते हुए भी अलग-अलग पार्टियों में हैं। ऐलनाबाद उपचुनाव में जननायक जनता पार्टी वह भाजपा के गठबंधन उम्मीदवार गोविंद कांडा का समर्थन कर रहे हैं,वही अभय चौटाला अपने पिता चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के साथ अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

अभी भी प्रत्येक जनसभा में अभय सिंह चौटाला अपने आप को किसानों का सच्चा हितैषी और चौधरी देवी लाल का वारिस बताकर मतदाताओं से इनेलो के पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ अजय सिंह चौटाला और उनके बेटे दिग्विजय चौटाला गठबंधन के उम्मीदवार गोबिंद  कांडा के लिए गांव-गांव जाकर उनके पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं क्योंकि ऐलनाबाद क्षेत्र सिरसा जिले में आता है जो दुष्यंत चौटाला का भी गृह क्षेत्र है इस क्षेत्र में दुष्यंत चौटाला की अच्छी पकड़ है जोकि गोबिंद कांडा को जिताने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।

अभय की जीत की बजाए हार के होंगे कई मायने

इस उपचुनाव में यदि अभय सिंह चौटाला पराजित हो जाते हैं तो इससे न केवल किसान आंदोलन को धक्का लगेगा बल्कि उनकी पार्टी के लिए भी बहुत बड़ा झटका होगा। अभय चौटाला के हारने का सीधा मतलब पार्टी का राजनीति के शून्य पर पहुंचना है। अगर वह जीत जाते हैं तो इसका राजनीति पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि कुछ माह पहले तक अभय अपनी पार्टी के अकेले विधायक थे। ऐसे में उनकी जीत से राजनीतिक समीकरणों में कोई बदलाव नहीं होगा।

गठबंधन प्रत्याशी जीता तो मजबूत होंगे दुष्यंत

ऐलनाबाद में अगर गठबंधन प्रत्याशी गोविंद कांडा चुनाव जीत जाते हैं तो इसका सीधा असर भाजपा और दुष्यंत पर होगा। भाजपा जहां पहली बार कमल खिलाएगी वहीं दुष्यंत चौटाला अपने गृह जिला सिरसा में अपने दादा ओम प्रकाश चौटाला के बाद देवीलाल परिवार के मजबूत नेता के रूप में स्थापित होंगे।