When will Lohri be celebrated

Lohri: कब मनाई जाएगी लोहड़ी, देखें तिथि व इससे जुड़ी कहानी

Lohari

When will Lohri be celebrated

When will Lohri be celebrated लोहड़ी उत्तर भारत का प्रमुख पर्व है। खासकर पंजाब और हरियाणा में इसे बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ये पर्व मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। आमतौर पर लोहड़ी का पर्व सिख समुदाय के लोग मनाते हैं। इस पावन दिन पर लकडिय़ों और उपलों से घर के बाहर या फिर खुली जगह पर आग जलाई जाती है। उस आग के चारों ओर परिक्रमा की जाती है।

लोहड़ी के पावन पर्व पर नई फसल को काटा जाता है। कटी हुई फसल का भोग सबसे पहले अग्नि को लगाया जाता है। आग के चारों तरफ चक्कर लगाकर सभी लोग अपने सुखी जीवन की कामना करते हैं। लोहड़ी के दिन आग में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाई जाती हैं। 

लोहड़ी कब मनाई जाएगी  
इस साल 15 जनवरी 2023 को मकर संक्रांति मनाई जा रही है। वहीं लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या यानी एक दिन पहले मनाया जाता है। ऐसे में इस साल लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाना चाहिए। 14 जनवरी को लोहड़ी की पूजा का शुभ मुहूर्त रात 8 बजकर 57 मिनट पर है।

लोहड़ी Lohri फसल की बुवाई और कटाई से जुड़ा एक खास पर्व है। इस अवसर पर नई फसल की पूजा की जाती है। लोहड़ी की अग्नि में रवि की फसल के तौर पर तिल, रेवड़ी, मूंगफली, गुड़ आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। इस दिन लोग सूर्य देव और अग्नि देव को आभार व्यक्त करते है, जिससे कि फसल अच्छी उत्पन्न हो। 

लोहड़ी Lohri के पावन पर्व पर लोग एक जगह इकठ्ठा होते हैं और अग्नि जलाने के बाद उसमें तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाते हैं। इसके बाद सभी लोग अग्नि के गोल-गोल चक्कर लगाते हुए गीत गाते हैं और ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते हैं। 

लोहड़ी की कहानी क्या है 
लोहड़ी का पर्व क्यों मनाया जाता है, इसे लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। ऐसी ही एक मान्यता है दुल्ला भट्टी की कहानी। इस त्योहार पर दुल्ला भट्टी की कहानी को खास रूप से सुना जाता है।

मान्यता के अनुसार, मुगल काल में अकबर के दौरान दुल्ला भट्टी पंजाब में ही रहता है। कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की उस वक्त रक्षा की थी जब संदल बार में लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था। वहीं एक दिन दुल्ला भट्टी ने इन्हीं अमीर सौदागरों से लड़कियों को छुड़वा कर उनकी शादी हिन्दू लड़कों से करवाई थी। तभी से इसी तरह दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि से सम्मानित किया जाने लगा और हर साल हर लोहड़ी पर ये कहानी सुनाई जाने लगी।

यह पढ़ें:

असंभव कुछ भी नहीं, पढ़िए स्वामी विवेकानंद जी के उच्च विचार

यह पढ़ें:

Mahashivratri; महाशिवरात्रि पर बन रहा बेहद दुर्लभ संयोग, देखें क्या है खास