What is OCD

यह ओसीडी (OCD) क्या है?

What is OCD

यह ओसीडी (OCD) क्या है?

यह ओसीडी (OCD) क्या है?
दोस्तों, क्या आपके या आपके किन्ही अपनों के साथ ऐसा होता है कि आपको कोई विचार इस जुनूनी हद तक विचलित, चिन्तित व परेशान कर दे कि आप अपनी चिंता दूर करने के लिये बारंबार कोई विशेष व्यवहार करने को बाध्य हो जाएं। जैसे बार बार हाथ धोना या घर से बाहर जाते हुए कुंडी चैक करना? यदि 'हां, तो इसका अर्थ है, आप या परिजन ओसीडी (जुनुनी बाध्यकारी विकार) से जूझ रहे हैं। इससे पहिले कि यह बीमारी लाईलाज बन जाए, आपको इससे निपटने और संबंधित सभी कुछ जानने-समझने की सख्त ज़रूरत है।


ओसीडी की विशेषताएं:

ऑबसैसिव-कम्पलसिव डिसआर्डर (ओसीडी) की दो मुख्य विशेषताएं हैं:- 'शक व 'अपराध-बोध। जब तक यह बेसिक बात नहीं समझेंगे, ओसीडी को कतई नहीं समझ सकते।


1. 'शक:  

शक, हमें खुद अपने, दूसरों या फिर किसी पर भी हो सकता है- अपनी बुद्धि, यौण-क्षमता, अनुभूति, सूरत व सुरक्षा बारे! और हां, किसी को यह भी शक हो सकता है कि 'मैं खूनी हूं। और तो और, किसी-किसी को तो अपने जीवित होने पर ही शक हो जाता है। इसीलिये उन्नीसवी सदी में इसे 'शकी बीमारी कहते थे। इतना घातक शक कि बुद्धिमानी पर भी भारी पड़ता है और किसी तरह मिटाया नहीं जा सकता। ऐसा शक, जिसके कारण वह सैंकड़ों बार वही व्यवहार दोहराने को बाध्य हो जाता है, जैसे बार-बार चैक करना कि उसने घर बंद या साफ किया कि नहीं; हाथ धोए कि नहीं; या अपने व दूसरों के बारे में सैंकड़ों प्रश्न पूछना और उत्तर मिलने पर भी उसी प्रश्न को दोहराना। जब तक पेशंटस को अपना शक दूर करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती, तब तक वे उससे उभरने का प्रयास ही नहीं करते।


2. 'अपराध-बोध:

ऐसे पेशंट अत्याधिक अपराध-बोध से पीडि़त होते हैं, जिसकी वजह से इन्हें गिल्टी महसूस कराना बहुत आसान होता है, क्योंकि वे ऐसे-ऐसे अपराधों के लिये खुद को जि़म्मेवार मान बैठते हैं जो उन्होंने कभी किये ही नहीं।


कुछ अन्य विशेषताएं:
3. ओसीडी लम्बा व पुराना विकार है:

डायबिटीज़, बीपी, दमा या अन्य क्रोनिक बीमारियों की तरह ओसीडी भी लम्बा चलने वाला विकार है। हालांकि अभी तक इसका कोई संपूर्ण ईलाज़ ज्ञात नहीं, किंतु कुछ हद तक नियंत्रित अवश्य कर सकते हैं। सो उन्हें पूरा जीवन इसे प्रभावशाली ढंग से मैनेज करना सीखना होगा ताकि रिलैप्स ना हो। अर्थात उन्हें जीवन भर 'बताए गये टूल्स व दवाइयां प्रयोग करनी होंगी।


4. ओसीडी जैनेटिक है:

इसका ऑरिजिन साईकोलॉजिकल नहीं, बल्कि जैनेटिक माना जाता है।


5. ओसीडी का इंसान के खुद के व्यवहार/जीवन पर ही असर पड़ता है:

दूसरो के जीवन पर कतई नहीं!
 

ईलाज (OCD Treatment):
* जुनुनी विचारों के प्रति रैसिसटेंस विकसित करना सीखें:

इसका लक्ष्य आपको अपने चिंतित करने वाले विचारों के साथ जीना सीखना है ताकि आप उन्हें सहन करने लगें और उनके प्रति आपकी रैसिसटेंस हो जाए। आपको यह समझना होगा कि यदि आप संबंधित व्यवहार नहीं करेंगे, तो कुछ बुरा नहीं होगा। कॉंसलरस पेशंटस को ऐसे विचारों के साथ जीने के लिये इस हद तक तैयार करते हैं जब तक वे थक कर हार ना जाएं। क्योंकि 'डरना और 'बोर होना साथ-साथ नहीं हो सकता। इसी तरह, इसी विकार का अंग होने के कारण बाध्यकारी हरकतों को भी उनके जीवन से निकालना होगा। ऐसी हरकतों को जारी रखने के लिये दो चीजों की ज़रूरत होती है:


1. पीडि़त इंसान अपने जुनूनी विचारों से आश्वस्त होकर ही बाध्यकारी हरकतें दोहराने के लिये प्रेरित होते है।
2. कुछ पेशंटस खुद के जुनूनी विचारों से छुटकारा पाने के बाद भी बाध्यकारी हरकतें जारी रखते हैं।


* जुनूनी विचारों से उत्पन्न भय का सामना करें:

मनोविश्लेषक फ्रेड अनुसार, चूंकि जुनूनी विचारों का भय मन में ही उत्पन्न होता है, सो इससेे बचकर आप भाग नहीं सकते। इससे ठीक होने का एकमात्र उपाय यही स्वीकारना है कि इसका कोई बचाव नहीं! यदि बचाव नहीं, तो इसका सामना करें? ओसीडी के पेशंट ज्यादा देरतक डरने वाली चीज़ों के संग नहीं जी सकते, ना वे यह स्वीकारते हैं कि उनके डर अनुचित हैं, और कुछ भी किये बिना चिंता खुद ही दूर हो जाएगी।

 
* जुनूनी विचार का सोचना रोक नहीं सकते:

मनोविश्लेषक फ्रेड पेंजल अनुसार, हम किसी बाध्यकारी व्यव्हार को तो रोक सकते हैं; पर किसी जुनूनी विचार को सोचने से नहीं रोक सकते। क्योंकि ये एक किस्म के बायो-कैमिकली पैदा की गयी मानसिक घटनाएं हैं, जो अपने वास्तविक विचारों जैसी लगती हैं, पर होती नहीं। उनके एक पेशंट ने तो ऐसे विचारों को 'सिनथैटिक विचार ही नाम दे दिया, क्योंकि ये वास्तविक विचारों की बिल्कुल कार्बन-कॉपी जैसे होते हैं। बायोकैमिकल घटनाएं होने के कारण अपनी ईच्छा से इन विचारों को रोक नहीं सकते, चूंकि जितना रोकेंगे, उतना ही ज्यादा वे विचार परेशान करेंगें। इसीलिये किसी विचार को कम सोचना चाहते हो तो इसे और ज्यादा सोचें।


* 'एक्सपोजऱ व रिसपॉन्स प्रिवेंशन थैरेपी:

इसमें एक ओर तो हम उसे अपने डरावने-शकीले विचारों व स्थितियों का सामना करना और दूसरी ओर उनके उन विचारों के कारण बारंबार दोहराने वाले व्यवहार को रोकना सिखाते हैं।


* कॉगनिटिव बिहेवियर थैरेपी (सीबीटी-Cognitive behavior therapy):

इसमें काउंसलर आपको अपने जुनूनी विचारों की संभावना के सदा सच होने पर प्रश्नचिन्ह लगाना सिखाता है और साथ-साथ इसके पीछे के तर्क को चुनौती देना भी सिखाता हैं।


* दवा केवल मदद की तरह है, पूर्ण उपचार नहीं:

मैडिसन से यदि पेशंट अपने लक्षणों में 60-70 प्रतिशत कमी महसूस कर पाएं तो यह एक अच्छा परिणाम होगा। पर यह अपवाद ही है, क्योंकि कोई भी मेडिसन सभी के लिये समान रूप से कार्य नहीं कर सकती। हां पर, हर पेशंट को कोई न कोई दवा जरूर सूट करेगी। दवा से सभी लक्षणें से राहत नहीं मिलती


* दवा के साथ सीबीटी (CBT) अवश्य कराएं:

दवाओं के साथ-साथ सीबीटी लेना बहुत ज़रूरी है, इससे जुनून व चिंता दोनों में राहत मिलेगी।


* ओसीडी डील करने में अपनी सूझबूझ कभी प्रयोग मत करें:

ध्यान रहे कि जो चीज या बात आपको ज्यादा डराती है, उससे डरना व बचना उतना ही स्वाभाविक है। किंतु ओसीडी में बाहरी किसी भी चीज़ से कोई डर नहीं होता, बल्कि वे पेशंट के खुद अंदर के ही विचार हैं, जिनसे बचने का उपाय या संकल्प भी उन्हें खुद ही करना होगा।


* पेशंट के पुनर्वास के लिये थैरेपी कराना ज़रूरी है:

अधिक देर तक चलने वाली ओसीडी, पेशंट के जीवन जीने की क्षमता एवं योग्यता- दोनों को बुरी तरह प्रभावित करती है, क्योंकि इसके कारण शायद उनकी पढ़ाई, नौकरी या दैनिक कार्य करने की आदत छूटने के कारण उन्हें सामान्य जीवन में वापिस लाने में बहुत समय लगता है। परंतु चाहे कितना भी समय लगे, रिलैप्स से बचने के लिये जड़ से ठीक होने पर ही थैरेपी समाप्त होनी चाहिये, ठीक वैसे ही, जैसे कैंसर के ऑपरेशन के बाद उसकी सभी जड़ें मिटाने के लिये कीमो/रेडियो थेरेपी ना कराएं तो कैसर हो जाएगा।


* रिलैप्स होने के ख़तरे से हर हाल में बचें:

जो लोग कुछ-कुछ ठीक होने पर ही बीच में ईलाज़ छोड़ देते हैं, वे फिर से रिलैप्स कर सकते हैं, क्योंकि अंशत: ठीक करनेेेे-होने जैसा इसमे नहीं चलता। कैंसर की तरह ओसीडी का ईलाज बीच में छोडऩे से रिलैप्स होने का सबसे बड़ा ख़तरा है। इसके पूर्णतय: ठीक होने व ठीक रहने की प्रक्रिया पूरी न करें तो यह क्रोनिक बन जाती है, उम्र भर इससे छुटकारा नहीं मिलता।


* इसके ठीक होने की अवधि कोई निश्चित नहीं:

इससे ठीक होने में कितना समय लगेगा, यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है। सरल, सामान्य या जटिलतारहित केस में पूर्ण ईलाज में 6 माह से 12 माह तक का समय लग सकता है, किंतु भारतवर्ष में प्राय: लोग तभी काउंसलर के पास जाते हैं जब लक्षण जटिल हो जाते हैं या अन्य कई मानसिक समस्याएं हों। यदि पेशंट नियमित तौर से थैरेपी नहीं कराएं या बहुत ज्यादा समस्या होने पर ही करांए, तो समय और भी ज्यादा लगेगा।
दुर्भाग्य से ओसीडी वाले लोगों के साथ पागलपन का कलंक जुड़ जाता है, परंतु ये किसी भी तरह पागल नहीं होते, ना ही ये भ्रमित या अक्षम होते; बल्कि लक्षणों से छुटकारा मिलते ही ये बहुत रचनात्मक सिद्ध होते हैं।


डॉ. स्वतन्त्र जैन
मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता