Virat Kohli Premanand Maharaj: विराट कोहली फिर एक बार प्रेमानंद महाराज के पास पहुंचे; वाइफ़ अनुष्का ने पूछ लिया यह प्रश्न

विराट कोहली फिर एक बार प्रेमानंद महाराज के पास पहुंचे; वाइफ़ अनुष्का शर्मा ने पूछा- बाबा नाम जप से भगवान मिल जाएंगे? वीडियो

Virat Kohli Premanand Maharaj

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Virat Kohli Premanand Maharaj: लगता है विराट कोहाली का मन वृंदावन में रम गया है, साथ ही वह प्रेमानंद महाराज से बहुत ज्यादा प्रभावित दिख रहे हैं। अब टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद विराट एक बार फिर वृंदावन पहुंचे हैं। यहां उन्होंने राधा केली कुंज आश्रम पहुंचकर प्रेमानंद महाराज का आशीर्वाद लिया। पत्नी अनुष्का शर्मा के साथ विराट कोहली का यह वृंदावन में 2 साल के अंदर तीसरा दौरा था। इससे पहले भी वह दो बार वृंदावन आए थे और दोनों बार संत प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए पहुंचे थे।

प्रेमानंद महाराज ने विराट से पूछा- प्रसन्न हो?

जब विराट कोहली और अनुष्का पहुंचे तो इस दौरान उनके प्रणाम करने के बाद प्रेमानंद महाराज ने उनसे पूछा कि, 'प्रसन्न हो'? जिसके बाद विराट ने कहा कि, 'सब ठीक है'। यह सुन महाराज जी ने भी कहा कि, 'सब ठीक ही रहना चाहिए'। इसके बाद प्रेमानंद महाराज ने विराट और अनुष्का को भगवान के विधान के बारे में बताया साथ ही उपदेश स्वरूप दोनों से कुछ बातें कहीं। दोनों ही प्रेमानंद महाराज की बातों को बड़ी शांति से ध्यानपूर्वक सुनते रहे और साथ ही महाराज जी को एक टक देखते रहे।

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प्रेमानंद महाराज बोले- वैभव-यश बढ़ना भगवान की कृपा नहीं

प्रेमानंद महाराज ने विराट-अनुष्का को बताया कि, ''वैभव बढ़ना, यश बढ़ना, ये भगवान की कृपा नहीं है। ये आपका पुण्य है। वहीं भगवान की कृपा यह है कि अंदर का चिंतन बदलना। जिसके बदलने से अनंत जन्मों के संस्कार भस्म हो जायें और अगला जन्म बड़ा उत्तम हो। प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, आज हमारा स्वभाव बहिर्मुखी हो गया है। यश, कीर्ति, लाभ, विजय के लिए ही हम भाग रहे हैं। हमें इससे सुख मिलता है लेकिन आज अंदर का सुख कोई भी नहीं रखता।

प्रेमानंद महाराज ने कहा, 'ऐसे में जब भगवान कृपा करते हैं तो संत समागम देते हैं और दूसरी जब कृपा होती है तो प्रतिकूलता दे देते है और उसके अंदर से ही एक ऐसा रास्ता भी देते हैं जो उनका रास्ता होता है। परम शांति का रास्ता होता है। भगवान वो रास्ता देकर जीव को अपने पास बुला लेते हैं।

आगे महाराज जी ने कहा, 'वैराग्य प्रतिकूलता देखकर प्राप्त होता है। अगर सब कुछ अनुकूल है तो हम आनंदित होकर उसका उपभोग ही करते रहते हैं। जब हमारे अंदर प्रतिकूलता आती है तब हमें ठेस पहुंचती है कि इतना झूठा संसार!! भगवान ने बिना प्रतिकूलता के इस संसार को छुड़ाने की कोई भी औषधि नहीं रखी है। आज तक जितने भी महापुरुष हुए, जिनका जीवन बदला। प्रतिकूलता का दर्शन करके ही बदला। इसलिए जब प्रतिकूलता आए तो आनंदित हो कि मेरे ऊपर अब भगवान की कृपा हो रही है।

हजारों लोग प्रेमानंद महाराज के दर्शन को पहुंच रहे

वृंदावन के विश्वविख्यात संत और राधारानी के परम भक्त प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए जहां देशभर से हर रोज हजारों आम लोग पहुंच रहे हैं तो वहीं विभिन्न क्षेत्रों की बड़ी-बड़ी हस्तियां भी महाराज जी के सामने सिर झुकाए खड़ी हैं और जिंदगी में मन की शांति व सही दिशा धारण करने के लिए उपदेश ले रहीं हैं। इसी कड़ी में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और शानदार बल्लेबाज विराट कोहली भी प्रेमानंद महाराज का सानिध्य लेते हुए देखे जा रहे हैं।

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प्रेमानंद जी महाराज की दोनो किडनी खराब

राधारानी के परम भक्त प्रेमानंद जी महाराज के बारे में लोग ताज्जुब खाते हैं। बीते 17-18 सालों से महाराज जी की दोनो किडनी खराब हैं। लेकिन फिर भी महाराज जी के जीवंत और अद्भुत स्वरूप को देखा जा सकता है। दोनो किडनी खराब होने के बाद भी उनके चेहरे का तेज देखते ही बनता है। आज घर-घर प्रेमानंद जी महाराज को सुना जा रहा है और उनके बारे में चर्चा की जा रही है। लोग यह कहने पर मजबूत हैं कि आज के समय में अगर कोई असली संत है तो वह प्रेमानंद जी महाराज हैं।

प्रेमानंद महाराज सीधी और स्पष्ट बात बोलते हैं। चाहें भले ही वह लोगों को कड़वी लगे। महाराज जी के प्रवचनों ने आज पूरे देश और दुनिया में एक नई लहर सी ला दी है। क्या युवा और क्या बड़े सब प्रेमानंद जी महाराज को सुनना चाह रहे हैं, उनके दर्शन करना चाह रहे हैं। प्रेमानंद जी महाराज के मुखमंडल से निकला एक-एक शब्द लोगों को आकर्षित कर रहा है और उनमें अच्छे बदलाव की भावना को जाग्रत कर रहा है।

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प्रेमानंद महाराज का पूरा नाम क्या?

प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Ji Maharaj) का पूरा नाम प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज है। उनका जन्म कानपुर के एक गांव में हुआ था। प्रेमानंद महाराज 13 साल की उम्र में ही रात 3 बजे घर से संन्यास के रास्ते में चलने के लिए भाग आए थे। उस समय वह कक्षा 9 में पढ़ते थे। इसके बाद वह कभी घर नहीं लौटें और अपना पूरा जीवन भगवान को समर्पित कर दिया। उन्होंने शुरुवात में संन्यास के कई साल भगवान शिव में लीन होकर काशी में बिताए। इसके बाद वह वृंदावन आ गए और राधारानी के परम भक्त हो गए।

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