Uddhav's chair is almost certain, see what happens in the floor test

उद्धव की कुर्सी जाना लगभग तय, देखें क्या होता है फ्लोर टेस्ट में

Udhav-Thakre

Uddhav's chair is almost certain, see what happens in the floor test

मुंबई। महाराष्ट्र के सियासी संग्राम के 9 दिनों में दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फ्लोर टेस्ट के आदेश के बाद शिवसेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। उद्धव सरकार का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की डिप्टी स्पीकर की कार्रवाई पर 11 जुलाई तक रोक लगाई है। ऐसे में राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट का आदेश देना सही नहीं है।

मार्च 2020 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के खिलाफ बगावत करते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद राज्यपाल ने कमलनाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था। कमलनाथ सरकार ने तर्क दिया था कि विधायकों की अयोग्यता का मामला स्पीकर के पास लंबित है ऐसे में राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिए नहीं कह सकते, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से मना कर दिया था।

देखा जाए तो इसी तरह की स्थिति महाराष्ट्र में भी है। हालांकि, यहां पर विधायकों ने इस्तीफा नहीं दिया है, लेकिन एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी विधायकों ने कहा है कि उद्धव सरकार के पास अब बहुमत नहीं है। 13 अप्रैल 2020 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शिवराज सिंह बनाम स्पीकर के मामले में कहा था कि विधायकों पर अयोग्यता की कार्यवाही लंबित होने के कारण फ्लोर टेस्ट को नहीं रोका जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि फ्लोर टेस्ट को रोकने की जरूरत नहीं है, क्योंकि स्पीकर ने विधायकों के इस्तीफे और संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार दलबदल के केस पर फैसला नहीं किया है। कोर्ट ने इस दौरान फ्लोर टेस्ट कराने की अर्जेंसी की व्याख्या भी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह जानने के लिए फ्लोर टेस्ट कराना बहुत जरूरी है कि सीएम और उनकी मंत्रिपरिषद के पास बहुमत है या नहीं। सरकार के बने रहने और उसके अस्तित्व के लिए यह बहुत जरूरी है। यह एक ऐसा मामला है जिसमें कोई देरी नहीं हो सकती, क्योंकि सीएम की अगुआई वाली सरकार मंत्रिपरिषद पर निर्भर होती है, जिस पर सदन को विश्वास होना चाहिए। विशेष रूप से जहां सदस्यों ने मौजूदा सरकार में विश्वास की कमी के चलते इस्तीफा दे दिया हो। ऐसे में सदन की सामूहिक इच्छा पर इस्तीफे के प्रभाव जानने के लिए फ्लोर टेस्ट कराना सबसे सुरक्षित तरीका है।

एकनाथ शिंदे समेत शिवसेना के 16 बागी विधायकों ने 27 जून को सुप्रीम कोर्ट की वेकैशन बेंच के सामने याचिकाएं दायर की। याचिकाओं में दलबदल कानून के तहत 16 बागी विधायकों को भेजे गए अयोग्यता के नोटिस रद्द करने की मांग की गई थी। डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल की ओर से जारी अयोग्यता के इन नोटिसों का 27 जून को ही शाम 5.30 बजे तक जवाब देना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फौरी आदेश में इस तारीख को 12 जुलाई तक बढ़ा दिया। यानी, तब तक अयोग्यता की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई। अगली सुनवाई 11 जुलाई को होगी।

बेंच ने जब यह आदेश सुना दिया तो सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने मामले पर अंतिम आदेश आने तक फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने इससे इनकार कर दिया। कामत शिंदे की जगह शिवसेना विधायक दल के नेता बनाए गए अनिल चौधरी और चीफ व्हिप सुनील प्रभु की तरफ से पेश हुए थे।

 कामत की इस मांग पर बेंच ने कहा कि कुछ होने के अनुमान के आधार पर कोई आदेश नहीं सुना सकते। इस पर कामत ने बेंच से कहा कि हमें आशंका है कि वो फ्लोर टेस्ट की मांग करने वाले हैं। यह स्टेटस-को यानी यथास्थिति को बदल देगा। जवाब में बेंच ने कहा, अगर कुछ भी गैरकानूनी होता है तो आप अदालत आ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफ जहां फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, तो दूसरी तरफ यथास्थिति से छेड़छाड़ होने पर अदालत आने की बात कही। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की यही एक लाइन शिवसेना को राहत दे सकती है।