Serious issue of pension of ex-servicemen

Editorial: पूर्व सैनिकों की पेंशन का मामला गंभीर, समाधान हो सकारात्मक

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Serious issue of pension of ex-servicemen

Serious issue of pension of ex-servicemen पूर्व सैनिकों की वन रैंक वन पेंशन यानी ओआरओपी को लेकर जैसा गतिरोध कायम है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। यह तब है, जब सैनिक जोकि देश की सुरक्षा के लिए अपना बलिदान कर देते हैं, वहीं कम उम्र में सेवानिवृत्त होने के बाद उनकी आय का जरिया भी सीमित हो जाता है। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से ओआरओपी को लेकर जैसा ढीला रवैया बना हुआ है, वह सैनिकों के साथ अन्याय नजर आता है।

अब बेशक केंद्र सरकार ने इस साल जनवरी माह में रिटायर्ड जवानों और अधिकारियों के लिए वन रैंक वन पेंशन के दूसरे अध्याय की अधिसूचना जारी कर दी है, लेकिन उसे लेकर भी सिपाही से लेकर जूनियर कमांडिंग ऑफिसर तक के सेवानिवृत्त सैनिकों में रोष है। हालांकि इससे लेफ्टिनेंट कर्नल से लेकर मेजर जनरल तक के अधिकारी खुश हैं।

वर्ष 2014 में भाजपा ने पूर्व सैनिकों से ओआरओपी को लागू करने का वादा किया था, इसे लेकर पूर्व सैनिकों की ओर से दिल्ली में अनेक बार धरना-प्रदर्शन किया जा चुका है, लेकिन कोई अंतिम उपाय सामने नहीं आ रहा।  अब केंद्र सरकार की ओर से जारी अध्यादेश में कहा गया है कि जुलाई 2019 से ओआरओपी लागू मानी जाएगी और सभी सेवानिवृत्त जवानों और अधिकारियों को एक ही किश्त में बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा.

  गौरतलब है कि वन रैंक वन पेंशन के तहत पूर्व सैन्य कर्मियों के बकाया भुगतान पर केंद्र सरकार को एक बार फिर से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने बकाया भुगतान को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से पेश किए गए लिफाफा बंद रिपोर्ट को लेने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को वन रैंक वन पेंशन योजना के तहत बकाया भुगतान का नया फॉर्मूला भी दे दिया। इसके अनुसार, योग्य पारिवारिक पेंशनरों को 30 अप्रैल 2023 तक, सशस्त्र बलों के वीरता पुरस्कार हासिल कर चुके विजेताओं को 30 जून 2023 तक और 70 साल से अधिक के योग्य पेंशनरों को 30 अगस्त 2023 तक भुगतान करने का आदेश दिया है। इसके अलावा बाकी पेंशनरों को समान किस्तों में 28 फरवरी 2024 से पहले भुगतान करने को कहा है। दरअसल, सवाल यह है कि अगर केंद्र सरकार ओआरओपी का फायदा पूर्व सैनिकों को दे रही है तो फिर यह एक समान क्यों नहीं है। पूर्व सैनिकों के संगठनों ने बकाये के भुगतान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इसलिए ही याचिका दायर की है। इससे पहले ओआरओपी की योजना वर्ष 2006 में लागू की गयी थी, लेकिन विसंगतियों का हवाला देते हुए सेवानिवृत्त सेना के अफसर और जवान एक साथ मिलकर आंदोलन करने लगे। ये आंदोलन कई सालों तक चला और 2014 और 2019 के आम चुनावों में कुछ एक राजनीतिक दलों ने इसमें संशोधन करने का वादा भी किया था, लेकिन पूर्व सैनिक ओआरओपी के पुनरावलोकन की मांग पर अडिग रहे।

हालांकि अब ओआरओपी के दूसरे अध्याय की अधिसूचना जारी होने के बाद सेवानिवृत्त जवान इसके विरोध में सडक़ों पर उतर आये हैं तो यह गंभीर मामला है। अब 27 पूर्व सैनिकों के संगठनों ने एक साझा मोर्चा बनाकर दिल्ली के जंतर मंतर पर इसके खिलाफ अनिश्चितकालीन धरना भी शुरू कर दिया है। आंदोलन कर रहे सेना के कनिष्ठ सेवानिवृत्त जवानों का आरोप है कि नए ओआरओपी के लागू होने के बाद सेवानिवृत्त कनिष्ठ पद पर काम करने वाले सैनिकों और अफसरों को मिलने वाली पेंशन में जमीन और आसमान का फर्क हो गया है।

सिपाही से लेकर जूनियर कमांडिंग अफसर तक के ओहदे वाले पूर्व सैनिक दलील दे रहे हैं कि यह योजना अफसरों के लिए थी ही नहीं, मगर इसके तहत सेवानिवृत्त अधिकारियों को ही लाभ पहुंचाने का काम किया गया है। सरकार ने 2006 में लागू हुए वन रैंक वन पेंशन में 42 हजार 500 करोड़ के आसपास का प्रावधान रखा था, जिसमें तीनों सेनाओं के कनिष्ठतम सैनिक से लेकर वरिष्ठतम अधिकारियों की पेंशन से लेकर सेवा के दौरान घायल होकर विकलांग होने वालों के लिए पेंशन निर्धारित की थी। इसके अलावा कार्य करते हुए मारे गए जवानों और अधिकारियों की विधवाओं को दी जाने वाली पेंशन में भी बढ़ोतरी की थी।

गौरतलब है कि सेना में जवानों की संख्या, कुल बल की 97 प्रतिशत है जबकि अधिकारियों का प्रतिशत 3 है। यही नई ओआरओपी को लेकर पूर्व सैनिकों में रोष की वजह है। दूसरी वन रैंक वन पेंशन की इसी साल 20 जनवरी को घोषणा की गयी। उसके अन्दर 23 हजार करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया। वास्तव में केंद्र सरकार को सैनिकों के संबंध में गंभीरता से निर्णय लेते हुए उनके मसलों का समाधान करना चाहिए। मौजूदा और पूर्व सैनिक देश की शान हैं। पूर्व सैनिकों की पेंशन में विसंगति अनुचित है, हालांकि इस पर सकारात्मक होकर काम करने की जरूरत है।  

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