कराची में सिंधुदेश की मांग पर बढ़ा बवाल, सड़क पर उतरे लोग; जमकर हुई तोड़फोड़

कराची में सिंधुदेश की मांग पर बढ़ा बवाल, सड़क पर उतरे लोग; जमकर हुई तोड़फोड़

Pakistan Protest Over Sindhudesh Demand

Pakistan Protest Over Sindhudesh Demand

Pakistan Protest Over Sindhudesh Demand: कई मोर्चे पर मुसीबतों से घिरे पड़ोसी पाकिस्तान में सिंध देश की मांग ने झकझोर कर रख दिया है. रविवार को इसी मांग को लेकर कराची में अफरातफरी मच गई, जब सिंधी कल्चर डे के मौके पर एक रैली में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो गई. इस तरह से ये कल्चरल सभा एक राजनीति कर प्रोटेस्ट में बदल गया. गुस्साई भीड़ एक अलग सिंधी होमलैंड की मांग कर रही थी.

क्या है सिंधु देश की मांग: गौर करें तो रविवार को कराची में उस वक्त अफरातफरी मच गई, जब सिंधी कल्चर डे के मौके पर एक रैली में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो गई. इससे लंबे समय से चली आ रही सिंधु देश की बहस फिर से शुरू हो गई. यह एक कल्चरल सभा के तौर पर शुरू हुई थी, जो जल्द ही एक पॉलिटिकल प्रदर्शन में बदल गया. इसकी वजह थी कि भीड़ एक अलग सिंधी होमलैंड की मांग कर रही थी.

पाकिस्तान के एथनिक सेपरेटिस्ट मूवमेंट: पाकिस्तान के हर कोने में, चाहे वह KPK हो, बलूचिस्तान हो, सिंध हो, या पंजाब हो, ज़्यादा अधिकारों की मांग करते हुए एथनिक मूवमेंट शुरू हुए हैं. एथनिक मूवमेंट की वजह से पाकिस्तान टूट गया था, जिसके बहुत बुरे नतीजे हुए थे. गौर करें तो, आज का बांग्लादेश, पहले पूर्वी पाकिस्तान था. वहां के बंगालियों ने सबसे पहले भाषा के आधार पर एक अलग देश की मांग की थी.

सिंधु देश की मांग का इतिहास: पाकिस्तान बनने के बाद, कुछ सिंधी नेता ऐसे थे, जिन्हें पाकिस्तानी फेडरेशन में अलग-थलग कर दिए जाने का डर था. उनका मानना ​​था कि सिंध, जनरल पंजाबी और एलीट लोगों के दबदबे वाली फेडरल या सेंट्रल सरकार के अंडर होगा. उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि सिंध में उर्दू बोलने वाले मुहाजिर, जो हॉयर एजुकेशन वाले हैं, उन पर हावी हैं, जबकि पंजाबी जनरल और उस प्रांत की ब्यूरोक्रेसी उन पर राज करेंगे.

सिंधी अधिकारों का आंदोलन 1967 में गुलाम मुस्तफा सैयद और पीर अली मुहम्मद राशिद ने उर्दू को राष्ट्रीय भाषा घोषित करने, एक यूनिट बनाने और सिंध प्रांत में बड़ी संख्या में मुहाजिरों के बसने के जवाब में शुरू किया था.

1971 में पाकिस्तान के टूटने के बाद, जी एम सैयद ने सिंधी राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया और सिंधी भाषा बोलने वाले लोगों के लिए सिंधुदेश का आइडिया पेश करके 1972 में JST की नींव रखी. इसलिए, इससे साफ पता चलता है कि 1960 के दशक के आखिर में एक यूनिट के आधार पर शुरू हुआ आंदोलन भाषा के साथ मजबूत हुआ.

1970 के दशक में सिंधी नेशनलिस्ट नेताओं ने सिंधियों की ताकत और पहचान को मजबूत करने के लिए कानूनों में बदलाव करने की कोशिश की. इससे एक ऑटोनॉमस या अलग सिंधुदेश के लिए आवाज उठी. हालांकि इस मूवमेंट को फेडरल सरकार के दबाव और रियायतों के मिक्सचर से खत्म कर दिया गया.

1971 की बांग्लादेश हार के बाद, जी.एम. सैयद ने नेशनलिज़्म को एक नई दिशा दी और 1972 में JST की स्थापना की और सिंधुदेश – सिंधियों के लिए एक अलग होमलैंड का आइडिया पेश किया.

यह मूवमेंट जी.एम. सैयद (सिंधी पॉलिटिकल लीडर) ने शुरू किया था, जिन्होंने सिंधी नेशनलिज़्म को एक दिशा दी. जीएम सैयद ने 1972 में जेय सिंध महाज (JSM) की स्थापना की और 'सिंधुदेश' का नया आइडिया दिया. सिंध में नेशनलिस्ट पॉलिटिकल पार्टी जेय सिंध कौमी महाज के बैनर तले सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने अलग सिंध की मांग की, जो 'सिंधुदेश' नाम से एक अलग राज्य की मांग कर रही थी.

1980: पाकिस्तान सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए बल का इस्तेमाल किया. जेय सिंह कौमी महाज़ और जेय सिंह मुत्तहिदा महाज के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन हुए.

2000: 2000 के दशक के बीच में, ऑटोनॉमिस्ट पार्टी अवामी तहरीक ने दिसंबर 2004 में पाकिस्तान के प्रेसिडेंट जनरल परवेज मुशर्रफ के इस प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने के बाद सिंधु नदी पर कालाबाग डैम के कंस्ट्रक्शन के खिलाफ काफी सपोर्ट जुटा लिया. कई पॉलिटिकल एक्टर और बुद्धिजीवी आगे आए, और आरोप लगाया कि प्रस्तावित बैराज पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहे सिंध पर असर डालेगा.

हाल के विद्रोह: 2021: मॉडर्न सिंधी राष्ट्रवाद के संस्थापकों में से एक, जीएम सैयद की 117वीं जयंती पर आयोजित एक बड़ी आजादी के समर्थन में रैली के दौरान, प्रदर्शनकारियों ने सिंधुदेश की आजादी के लिए दखल देने की मांग करते हुए PM मोदी, US के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन, न्यूजीलैंड की PM जैसिंडा और दुनिया के दूसरे नेताओं के पोस्टर उठाए.

अप्रैल-मई 2025: सिंध में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों ने पाकिस्तानी सरकार को सिंधु नहर प्रोजेक्ट को रोकने पर मजबूर कर दिया, जिसका मकसद कथित तौर पर सेना के हितों की पूर्ति करना था. सरकार की घोषणा के बावजूद, लोगों ने सिंध में हाईवे से नाकाबंदी नहीं हटाई, जिससे पंजाब और कराची पोर्ट से आने-जाने वाला ट्रांसपोर्ट कट गया. एक लाख ट्रक वाले और हेल्पर फंसे रहे. प्रोजेक्ट के खिलाफ आंदोलन के दौरान दो प्रदर्शनकारी मारे गए.

सिंधुदेश की मांग के मुख्य कारण:

  • पाकिस्तान के पॉलिटिकल, मिलिट्री और इकोनॉमिक सिस्टम में पंजाबियों के दबदबे के साथ-साथ कल्चरल नुकसान, ह्यूमन राइट्स का उल्लंघन और लोगों को जबरन गायब करने से लंबे समय से नाराजगी है.
  • सिंध की परेशानियों का मुख्य कारण पंजाबियों का दबदबा है. नेशनल असेंबली में पंजाब की सबसे ज़्यादा सीटें है.
  • पंजाबियों का फेडरल पॉलिटिक्स और सरकार बनाने पर अहम असर पड़ता है.
  • ज़्यादातर PM, टॉप ब्यूरोक्रेस्ट और मिलिट्री लीडर पंजाब से हैं.
  • हाल के दशकों में ज़्यादातर आर्मी चीफ पंजाबी मूल के रहे हैं.
  • डेमोग्राफिक बदलाव, रिसोर्स के गलत इस्तेमाल और CPEC के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होते हैं.
  • माइग्रेशन और राज्य की पॉलिसी ने पहचान, रिसोर्स और पॉलिटिकल ऑटोनॉमी को खतरा पहुंचाया.
  • विवादित इंडस कैनाल प्रोजेक्ट, जिससे स्थानीय लोगों को डर है कि जरूरी पानी पंजाब की ओर जाएगा, सिंध में सूखे को और खराब कर रहा है.
  • 52,000 एकड़ ज़मीन आर्मी के सपोर्ट वाली एक कंपनी को दे दी गई है. इससे स्थानीय किसान बेघर हो रहे हैं और कॉर्पोरेट खेती के नाम पर मिलिट्री के अमीर बन रहे हैं.
  • पाकिस्तानी सरकार की हिंसक कार्रवाई, जिसमें प्रदर्शनकारियों की हत्या और इंफ्रास्ट्रक्चर को आग लगाना शामिल है. इसने गुस्सा और बढ़ा दिया है, और राष्ट्रवादी नारे लगाए जा रहे हैं. इसमें सिंधुदेश एक आजाद सिंधी राज्य की मांग की जा रही है.

सिंध की डेमोग्राफिक्स: 2017 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान के कुल 207,774,520 लोगों में से सिंध की आबादी बढ़कर 47,886,051 हो गई है. इससे सिंध पंजाब के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्रांत बन गया है. (पंजाब सरकार, 2017) इस इलाके में बड़े पैमाने पर और लगातार लोगों के आने से अलग-अलग जातियों की आबादी हो गई है. पैसे के मामले में, सिंध पाकिस्तान का सबसे अमीर इलाका है.

कराची में दो नेशनल बंदरगाह हैं, जहां से पाकिस्तान का 90 प्रतिशत से ज़्यादा ग्लोबल लेन-देन शुरू होता है. सिंध देश की इनकम में 67% से ज़्यादा का योगदान देता है. 1947 में आजादी के बाद से सिंध में बहुत ज़्यादा शहरीकरण हुआ है, जिससे कराची, हैदराबाद और सुक्कुर जैसे शहरी केंद्रों का विकास रुक-रुक कर हुआ है.