Question on debate of news channels

न्यूज चैनलों की डिबेट पर सवाल

Editorial

Question on debate of news channels

पैगंबर मोहम्मद के संबंध में एक टीवी चैनल पर बहस के बाद देश और दुनिया में किस प्रकार की घटनाएं घटी हैं, वह इसका उदाहरण है कि आजकल टीवी न्यूज़ चैनल किसी मसले के समाधान की कोशिश में नहीं दिखते, अपितु अपनी टीआरपी बढ़वाने के लिए ऐसी वाहियात चर्चा कराने पर यकीन करते हैं, जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता। खुद सर्वोच्च न्यायालय ने अब इस बात को कहा है कि नफरत से टीआरपी आती है और टीआरपी से मुनाफा। देश में टीवी न्यूज चैनल की क्रांति नब्बे के दशक के बाद आई है, जब हर किसी को लगने लगा कि टीवी न्यूज मीडिया कितना प्रभावशाली है। बेशक, इसमें कोई शक नहीं है कि टीवी न्यूज मीडिया आज के समय में बेहद प्रभावशाली है और उसी की वजह से अनेक मामले सामने आते हैं, राज्य और केंद्र की सरकारों पर दबाव बनता है और फिर रिजल्ट बेहतर आता है। हालांकि चौबीस घंटे एक टीवी न्यूज चैनल को नहीं चलाया जा सकता, ऐसे में आधा से ज्यादा समय न्यूज स्टोरीज चलाने और बहस कराने में ही बीतता है। इस बहस के दौरान टीवी पर आने वाले लोगों एक-दूसरे पर गुस्सा होते हैं, आंखें दिखाते हैं, बेतुकी और अपमानजनक बातें करते हैं। महिलाओं के प्रति अपशब्द बोले जाते हैं और उन्होंने धमकाया तक जाता है। इसी दौरान हेट स्पीच की घटना भी सामने आती है। सर्वोच्च न्यायालय ने अब यही बात कही है, अदालत ने इसे समाज के लिए जहर करार देते हुए रोकने को कहा है तो इस पर ध्यान दिए जाने की सख्त जरूरत है।

अदालत ने टीवी चैनलों की बहस की सामग्री पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्र सरकार से सवाल पूछते हुए कहा कि सरकार मूकदर्शक बन कर ये सब देख रही है और इस मामले को बहुत छोटा आंक रही है। गौरतलब है कि पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी के मामले में राजस्थान और महाराष्ट्र में एक-एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। एक व्यक्ति को तो उसकी दुकान में ही गला रेत कर मार डाला गया। इसके बाद एक महिला जिन्होंने उस टीवी डिबेट में हिस्सा लिया था, को जान से मारने की धमकियां मिली हैं। यह मामले ने पूरे विश्व में भारत की छवि  मुस्लिम धर्म विरोधी बना दी। हालांकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष देश है। क्या भारत में घटने वाली ऐसी घटनाओं से पूरे देश के चरित्र का आकलन किया जा सकता है? बिल्कुल नहीं। पूरे देश ने देखा है कि उस विवादित टीवी डिबेट जिसमें वह अनुचित टिप्पणी की गई, के लिए उन महिला नेता को उकसाया गया था। दूसरे धर्म के अनुयायी ने उन महिला नेता के धर्म के संबंध में कुछ ऐसा कहा, जिसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने वह बात कह दी, जिसकी गूंज पूरी दुनिया में भारत विरोध के रूप में सामने आई। विश्व के उन देशों ने जोकि भारत की शांति, संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने की ही जुगत में रहते हैं, ने इसे अपने तरीके से इस्तेमाल किया और इसे पैगंबर मोहम्मद की शान के खिलाफ गुस्ताखी बताया। वास्तव में टीवी डिबेट पर गंभीरता से विचार की जरूरत है, और अब सर्वोच्च न्यायालय भी इसकी आवश्यकता समझ रहा है तो यह और ज्यादा जरूरी हो जाता है।

गौरतलब है कि जस्टिस केएम जोसेफ और ऋषिकेश राय की बेंच ने टीवी डिबेट को रेगुलेट करने को लेकर दिशा निर्देश तैयार करने की मंशा जाहिर की है और केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वह इस मामले पर कोई कानून लेकर आना चाहती है? वैसे ऐसा पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने टीवी चैनलों को उनके कार्यक्रमों के कारण इस तरह फटकार लगाई है और इनके रेगुलेशन की बात की है। वर्ष 2020 में एक चैनल के यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम पर रोक लगाते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि हमें इसमें दखल देना पड़ा क्योंकि इस पर कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा। यह एक सही वक्त हो सकता है जब हमें आत्म नियमन की ओर बढऩा चाहिए। हालांकि जब उस न्यूज़ चैनल के कार्यक्रम यूपीएससी जिहाद के प्रसारण पर हाई कोर्ट ने रोक लगाई थी तो इसके बाद 10 सितंबर साल 2020 को केंद्रीय प्रसारण मंत्रालय ने ही संबंधित न्यूज़ चैनल को इस कार्यक्रम के प्रसारण की इजाजत दी थी। इजाजत देते हुए मंत्रालय ने कहा था कि कार्यक्रम प्रसारित होने से पहले कार्यक्रम की स्क्रिप्ट नहीं मांगी जा सकती और न ही उसके प्रसारण पर रोक लगायी जा सकती है। हालांकि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा था कि सच्ची पत्रकारिता तथ्य और सच दिखाना है, हर पक्ष को अपनी राय रखने का मौका देना है। उनका कहना था कि मेनस्ट्रीम मीडिया चैनल को सबसे बड़ा खतरा न्यू-एज डिजिटल मीडिया से नहीं बल्कि ख़ुद से ही है। अगर आप अपने चैनल पर ऐसे मेहमानों को बुलाते हैं जो बांटने वाली बातें करते हैं, झूठे नैरेटिव फैलाते हैं और जोर-जोर से चिल्लाते हैं तो आप अपने चैनल की विश्वसनीयता खुद घटाते हैं।

हेट स्पीच के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के संबंध में तो जो कहा है, वह अपनी जगह है लेकिन टीवी चैनलों पर डिबेट का संचालन करने वाले एंकरों की भूमिका को भी अदालत ने अहम बताया है। अदालत ने कहा है कि टीवी बहस में शामिल लोग हेट स्पीच से दूर रहें, यह तय करना एंकर की जिम्मेदारी है, कुछ चैनल अब इसके लिए काम करने लगे हैं। वे डिबेट के दौरान बेहतर तरीके से बीच बचाव करते हैं और अनुशासन बनाकर रखते हैं, किसी नेता के बयान पर उसे टोकते हैं और कुछ भी अनावश्यक और भडक़ाऊ करने से उसे रोकते हैं। हालांकि यह आदत सभी न्यूज़ चैनलों पर अपनाने की आवश्यकता है। एक समाचार पत्र को पढऩे के बाद पाठक के मन में किसी विषय को लेकर एक राय बनती है, हालांकि न्यूज चैनल की बहस मनोरंजन ही प्रदान करती दिखती है। कहते हैं,प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बीच दौड़ जारी है, इसमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जीत रहा है, लेकिन यहां किसी की हार या जीत का सवाल ही नहीं है, यहां सभी मीडिया हैं, जिसका काम संचार करना है। वह सही और पुख्ता सूचनाओं का संचार करे यह उससे अपेक्षा की जाती है। टीवी न्यूज चैनलों को टीआरपी के चक्कर में अपने कार्यक्रम, शैली से समझौता नहीं करना चाहिए। टीवी न्यूज़ चैनल पर बहस सार्थक, सारगर्भित और सूझबूझ वाली होनी चाहिए।