Politics should not be on the might of the army

Editorial : सेना के पराक्रम पर न हो राजनीति, देश की बढ़ रही ताकत  

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Politics should not be on the might of the army

Politics should not be on the might of the army देश जब गणतंत्र दिवस मना रहा है, तब ऐसे सवाल जोकि सेना और सुरक्षा बलों के शौर्य पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं, पर चिंतन आवश्यक है। पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों की शहादत के जरिए कांग्रेस ने मोदी सरकार पर वार करके यही बताने की कोशिश की है कि अभी उसे बहुत तैयारी और सुप्रबंधन की जरूरत है।

राहुल गांधी Rahul Gandhi एक तरफ देश को जोड़ने की बात कहते हुए यात्रा निकाल रहे हैं, वहीं कांग्रेस के नेता अपनी चाटुकारिता के चरम पर पहुंच कर जहां सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं एक आतंकी वारदात का तकनीकी विश्लेषण करते हुए यह भी साबित करने में जुटे हैं किस प्रकार केंद्र सरकार की वजह से सीआरपीएफ के 40 जवानों ने शहादत पाई थी। हालांकि यह उचित ही है कि राहुल गांधी ने अपने उस नेता के बयान पर माफी मांग ली है, जिसने बयान पहले से ही विवादों में रहे हैं।

पाक में घुस कर आतंकियों के कैंप पर भारतीय वायुसेना की ओर से की गई सर्जिकल स्ट्राइक surgical strike का सच यह है कि पाकिस्तान चाह कर भी इससे छिपा नहीं पाया है। सैटेलाइट तस्वीरें साफ जाहिर करती हैं कि उस जगह पर सबकुछ तबाह हुआ था। पाक के इलाके में आतंकियों के कैंप तबाह हुए हैं और भारतीय वायुसेना ने यह कारनामा कर दिखाया, ऐसे में भारत में विपक्ष खासकर कांग्रेस की ओर से केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए आखिरकार सेना का मनोबल क्यों गिराया जाता है।

दरअसल, भाजपा की ओर से अब राहुल गांधी से उन बयानों के लिए भी माफी की मांग की गई है, जो उन्होंने चीनी सैनिकों के उत्पात के बाद भारतीय सेना के संबंध में दिए हैं। कांग्रेस और राहुल गांधी के निशाने पर रहती तो मोदी सरकार Modi government है, लेकिन वह जरिया बनाती है सेना को। जबकि यह सूर्य के तेज की भांति सच है कि भारतीय सेना ने कभी भी देश का भाल नहीं झुकने दिया है, चाहे इसके लिए उन सैनिकों को अपने प्राण ही क्यों न गंवाने पड़े हों। राहुल गांधी ने भी सर्जिकल स्ट्राइक के संबंध में खून की दलाली कहकर सेना का अपमान किया था। अभी कुछ दिन पहले ही चीनी सैनिकों और भारतीय जवानों के बीच हुए द्वंद्व में उन्होंने भारतीय सैनिकों की पिटाई जैसा बयान दिया था। जबकि यह सच है कि चंद भारतीय सैनिकों ने ही सैकड़ों चीनी सैनिकों को महज डंडों से पीट कर खदेड़ दिया था। आखिर कांग्रेस नेताओं को अगर केंद्र सरकार पर हमलावर होना है तो वे सेना को मध्य में लाकर अपनी बात क्यों पूरी करते हैं। क्या यह भी सच नहीं है कि आज पाकिस्तान और चीन अगर अपने मंसूबों को ठंडा करके रखे हुए हैं तो यह पूरी दुनिया में भारतीय विदेश नीति की वजह से ही है। आज जी-20 जैसे अहम वैश्विक संगठन की बैठक भारत में होने जा रही है, क्या यह बड़ी उपलब्धि नहीं है।

 भाजपा के इस आरोप पर कांग्रेस को जवाब देना चाहिए कि आखिर जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे, जैसे नारे लगाने वाले आज कांग्रेस के साथ क्यों है। क्या कुतर्क करना इतना बड़ा कार्य है, कि उसका महत्व समझते हुए किसी को भी पार्टी अपनी सदस्यता दे देती है। क्या किसी की सोच को बदला जा सकता है, जबकि उसका कोर देश मेें अराजकता और अनुशासनहीनता को कायम करना है।

भारतीय संविधान Indian Constitution सभी को अभिव्यक्ति की आजादी देता है लेकिन अगर कोई देश को तोड़ने की ही बात करने लगे तो क्या उसे स्वीकार किया जाएगा। दरअसल, राजनीति अपनी जगह होनी चाहिए लेकिन अनर्गल प्रलाप करके देश की सहानुभूति और स्वीकृति हासिल नहीं की जा सकती। इस समय चाहे वह भारतीय सेना हो या फिर भारतीय विदेश नीति, दोनों सशक्त हैं और देश की स्वतंत्रता, संप्रभुता की रक्षा करने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं। ऐसे में कांग्रेस को उन बयानों से बचना चाहिए जोकि उसकी मंशा पर सवाल खड़ा करते हैं। कांग्रेस नेता बार-बार चीन की घुसपैठ और भारतीय जमीन कब्जाने का आरोप लगाते हैं, हालांकि इस सच से कौन इनकार करेगा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चीन को हैंडल करने में कोताही बरती। भारत सरकार के नरम रूख की वजह से चीन के हौसले बुलंद हुए और उसने भारत पर आक्रमण किया।

 वास्तव में आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह रहेंगे, लेकिन किसी भी पक्ष के लिए देश के हित सर्वोपरि रहने चाहिएं। आज भारत पर दुनिया की नजर है, विश्व को उससे उजाला मिल रहा है और वह लाइट हाउस की भांति है। यह गणतंत्र दिवस उन संकल्पों, इरादों के संबंध में विचार का अवसर प्रदान करता है, जोकि हमने आजादी के समय धारण किए थे। क्या हमने उन्हें हासिल कर लिया, हमारी यह यात्रा अनवरत है। हमें जन-जन के कल्याण के निहितार्थ विचारना है और देश को विकसित राष्ट्र बनाना है।

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