Pakistan should stop giving patronage to terrorism

Editorial: आतंकवाद को प्रश्रय देना बंद करे पाक तो ही उससे हो बात  

Pakistan should stop giving patronage to terrorism

Pakistan should stop giving patronage to terrorism

Pakistan should stop giving patronage to terrorism- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का वह साक्षात्कार सच में हास्यास्पद है, जिसमें वे भारत के साथ बातचीत का राग अलापते हुए पूरी तरह से गिड़गिड़ाते हुए अप्रत्यक्ष रूप से मौजूदा हालात में मदद की गुहार लगा रहे हैं। शरीफ ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता की पेशकश की थी, यह तब है जब भारत ने पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को प्रायोजित करने से बाज नहीं आने पर बातचीत बंद कर रखी है।

भारत अधिकृत कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद भारत की ओर से पाकिस्तान से बातचीत जैसा कुछ भी करने से इनकार कर दिया गया है। अब भारत में पाकिस्तान समर्थक घाटी के नेता अगर बातचीत का राग गा रहे हैं, तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भी इस द्विपक्षीय वार्ता का न्योता दिया था। हालांकि पाकिस्तान के किसी भी नेता की ओर से बातचीत जैसा शब्द अब धोखे का पर्याय बन चुका है। पाकिस्तान के राजनेता भारत को हर समय याद रखते हैं, क्योंकि उसी के जरिए उनकी राजनीति की दुकान चलती है। हालांकि यह समय और जरूरत के मुताबिक बदलता रहता है। जैसे, पाक के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान बतौर प्रधानमंत्री भारत से दुश्मनी की रवायत निभाते रहे लेकिन जब उन पर विपक्ष हमलावर हुआ तो भारत की विदेश नीति की तारीफ करने लगे और बाद में जब उन्हेंं कुर्सी से उतार दिया गया तो वे एक तरह से भारत प्रेमी ही हो गए।

  पाकिस्तान के इस समय आर्थिक हालात बेहद खराब हैं। पूरी दुनिया देख रही है कि पाक सरकार किस प्रकार अपनी जनता को दो समय का खाना तक मुहैया नहीं करा पा रही। आटे के लिए लोग छीना-झपटी कर रहे हैं तो सभी खाद्य पदार्थों के दाम आसमान से भी आगे निकल चुके हैं। पाकिस्तान ने खुद भारत से व्यापारिक रिश्ते तोड़े थे और ऐसा अनुच्छेद 370 के खात्मे के विरोध स्वरूप किया गया था। हालांकि अब पाकिस्तान के हुक्मरानों को अपनी गलती का अहसास हो रहा है।

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इसी इंटरव्यू जिसमें वे भारत के साथ बातचीत का राग गा रहे हैं, में कहा है कि अब हमारी हालत यह हो गई है कि कहीं भी जाते हैं तो समझा जाता है कि हम भीख मांगने के लिए आए हैं। हालांकि वे भारत के प्रति नरम रवैया दर्शाते हुए यह बताने से नहीं हिचकते कि पाकिस्तान ने भारत के साथ तीन युद्धों के बाद सबक सीख लिया है और वह भारत के साथ शांति से रहना चाहता है। शहबाज शरीफ से कोई पूछे कि आखिर पाकिस्तान को इतना मामूली सा सबक सीखने में इतना अरसा क्यों बीत गया। पाकिस्तान अपने बंटवारे के बाद से ही रह-रह कर भारत से सबक सीखता आ रहा है। उसकी आवाम अपने राजनीतिकों जो कि भारत विरोध की बुनियाद पर ही जिंदा हैं, की इसी सोच की सजा भुगत रही है। वरना अगर पाकिस्तान के भारत के साथ अच्छे संबंध होते तो आज पाकिस्तान इतनी बदहालत से न गुजर रहा होता।

  भारत की ओर से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के प्रस्ताव का सही जवाब दिया गया है। भारत का यह कहना उचित है कि वह पाक से मैत्रीपूर्ण संंबंध चाहता है, लेकिन शर्त यही है कि आतंकवाद मुक्त माहौल हो। भारत का यह भी कहना है कि वह अपने पड़ोसी से सामान्य संबंध चाहता है। आखिर भारत की विदेश नीति की यह चाह किस प्रकार अनुचित कही जा सकती है, यह तब है जब देश के अंदर ही अनेक पक्ष यह कह रहे हैं कि पाकिस्तान से बात करनी चाहिए। दरअसल, इससे पहले यही होता आया है, जितनी बार पाक ने भारत को आंखें दिखाई हैं, कुछ समय बाद फिर भारत ने बातचीत की टेबल पर आकर उसकी इस हिमाकत को बढ़ावा दिया है।

हालांकि अब पहली बार हो रहा है कि पाकिस्तान को उसका सच आईने में दिखाया जा रहा है। यही वजह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कहते हैं कि तीन युद्धों में हमें दुख, गरीबी और बेरोजगारी ही मिली है। हालांकि पता नहीं उनका यह कथन भारत के संदर्भ में भी था या नहीं। लेकिन अगर भारत के संदर्भ में भी उन्होंने ऐसा कहा है तो उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि इन युद्धों के बावजूद भारत ने खुद को संभाला है और आज वह इस स्थिति में है कि पाकिस्तान जैसे कई देशों को पाल सकता है।

पाकिस्तान से यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर खुद को परमाणु संपन्न देश किसके लिए बनाया है। आखिर भारत से विकास में प्रतियोगिता करने के बजाय वह हथियारों में होड़ क्यों कर रहा है? पाक की जनता बात-बात में भारत से तुलना करके देख रही है, क्या कभी वह अपने हुक्मरानों से यह पूछेगी कि आखिर आतंकवाद को शह देने, भारत में निर्दोषों की हत्याएं करवाने, पूरी दुनिया में भारत की निंदा करने जैसे कृत्यों के अलावा पाकिस्तान सरकार करती क्या है। वास्तव में पाक को ये बातचीत जैसे हथकंडों की बजाय आतंकवाद खत्म करते हुए अच्छे पड़ोसी होने का परिचय देना चाहिए। इसी में उसका हित है।

 

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