गुरुदेव रामप्रसाद जी महाराज का 17वां पुण्य दिवस 18 जुलाई को

गुरुदेव रामप्रसाद जी महाराज का 17वां पुण्य दिवस 18 जुलाई को

Gurudev Ramprasad ji Maharaj's 17th death anniversary

Gurudev Ramprasad ji Maharaj's 17th death anniversary

17 जुलाई को एकासना दिवस जबकि 18 जुलाई को सामायिक दिवस के रूप में मनाया जाएगा
पूज्य गुरुदेव श्री शुभम मुनि जी महाराज करेंगे प्रवचन।   तपस्वीराज श्री शालिभद्र मुनि जी महाराज ठाणे-2 एवं महासाध्वी श्री संतोष जी महाराज ठाणे-4 भी मौजूद रहेंगे

चंडीगढ़, 16 जुलाई: Gurudev Ramprasad ji Maharaj's 17th death anniversary: जैन मुनि गुरुदेव श्री राम प्रसाद जी महाराज जी के 17 वें पुण्य स्मृति दिवस यानि 18 जुलाई के अवसर पर दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस अवसर पर 17 जुलाई दिन बुधवार को पूज्य गुरुदेव श्री शुभम मुनि जी महाराज की प्रेरणा से एकासना दिवस एवं 18 जुलाई दिन वीरवार को भगवन श्री गुणगान दिवस और सामायिक दिवस के रूप में चंडीगढ़ में मनाया जाएगा। पूज्य गुरुदेव मांगलिक प्रवचन में भगवन श्री रामप्रसाद जी का जीवन प्रसंग सुनाकर सभा को कृतार्थ करेंगे। श्री एसएस जैन सभा सेक्टर 18 के प्रधान सुभाष जैन, उपप्रधान सत्तन जैन, महामंत्री सुकेश जैन और कैशियर दयानंद जैन की ओर से सभी गुरुभक्तों को निवेदन किया गया है कि इस पावन दिवस पर धर्म आराधना करके गुरुदेव जी के पावनचरणों में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करें। इस कार्यक्रम के दौरान श्री शुभम मुनि जी महाराज के साथ साथ तपस्वीराज श्री शालिभद्र मुनि जी महाराज ठाणे-2 एवं महासाध्वी श्री संतोष जी महाराज ठाणे-4 मौजूद रहेंगे। इस दौरान प्रवचन भी होंगे जिसका समय सुबह 8.15 बजे से है।

गुरु रामप्रसाद जी महाराज के पास था प्रामाणिक, सुस्पष्ट एवं सटीक समाधान

गुरु रामप्रसाद जी महाराज एक ऐसी शख्सियत थे जिनके पास प्रामाणिक, सुस्पष्ट एवं सटीक समाधान था। शब्दकोष के वो साक्षात ब्रह्मा थे। न्याय-व्याकरण उनकी अंगुलियों पर चलते थे। जैनेतर दर्शनों के प्रामाणिक एवं आधिकारिक वेत्ता थे। योगशास्त्र, रामचरित मानस एवं गीता जैसे ग्रंथ उन्हें कंठस्थ थे। हिंदी, संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, पंजाबी, भोजपुरी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी आदि भाषाओं पर उनकी लाजवाब पकड़ थी। ज्ञान वितरण करने में उनको विशेष आनंद अनुभूति होती थी। पूरे दिन पढ़ाने के बाद भी थकावट महसूस नहीं करते थे। अध्ययन करवाने की उनकी शैली गजब की थी। भगवन  श्री रामप्रसाद कई संत-सतियों के शिक्षा गुरु रहे। उनकी प्रवचन शैली लाजवाब थी। जैसे दहलीज  के  बाहर रखा दीपक कमरे के बाहर-भीतर को एक साथ प्रकाशित कर देता है एवं डमरू का एक ही मनका उसे दोनों ओर से बजा देता है, ऐसे ही भगवन रामप्रसाद जी महाराज के प्रवचन भी जनसाधारण एवं विद्वान दोनों को अभिस्नात करते थे। उनकी सहनशीलता भी गजब की थी। सामान्य इंसान की सहनशीलता  जहां जाकर समाप्त होती जाती है, वहां से तो उनकी सहनशीलता शुरू होती थी। उनकी स्मरण शक्ति भी अविस्मरणीय एवं अद्भुत थी।