G-20 becomes the vehicle of change

जी-20 बना परिवर्तन का वाहक, विश्व को मिले नए विचार  

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G-20 becomes the vehicle of change

G-20 becomes the vehicle of change जी-20 के गठन के बाद यह संभवतया: पहली बार होगा, जब इस वैश्विक संगठन ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है। जिसमें इसके सदस्य देशों ने इस संगठन में अपनी सदस्यता और अहमियत के साथ इसकी प्रासंगिकता को समझा है। यह वह संगठन है, जिसमें विकासशील और विकसित दोनों देश शामिल हैं। भारत वह देश है, जिसमें उम्मीदें हिलोरें मार रही हैं और वह विकसित राष्ट्र होने को बेताब है। उसकी इस बेताबी की झलक इस वैश्विक सम्मेलन के दौरान दुनिया ने देख ली है। भारत की स्थिति कक्षा में उस बच्चे की तरह है, जिसे अपने सभी पाठ याद है और जो कि सबसे आगे जाने को लालायित है। निश्चित रूप से यह देश और उसके नागरिकों के लिए भी गौरवान्वित करने वाले पल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन कि आज जी-20 एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के विजन को लेकर आशावादी प्रयासों का प्लेटफार्म बन गया है, उस सच्चाई का प्रत्यक्ष रूप है, जिसका साक्षात्कार देश और दुनिया ने किया है।  

जी-20 की अनेक उपलब्धियों में से एक उपलब्धि इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर के ऊपर सहमति बनना है। भारत के साथ अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने मिलकर यह डील की है। मकसद पश्चिम एशिया और यूरोप तक सस्ता और तेज समुद्री और रेल ट्रांजिट उपलब्ध कराना है। एक तरह से यह चीन की वन बेल्ट वन रोड योजना का जवाब है। भारत और यूएई के बीच दुबई पोर्ट प्राइमरी लिंक बन सकता है। यही बंदरगाह रेल लिंक का शुरुआती पॉइंट हो सकता है जो यूएई को सऊदी अरब, तुर्की, इजरायल और यूरोप से जोड़ेगा।

विशेषज्ञों ने इस समझौते को नया स्पाइस रूट करार दिया है। मालूम हो, प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप के बीच व्यापार के लिए खास रूट था। मुख्यत: मसालों का निर्यात होता था। सिल्क रूट के जरिए भी 15वीं सदी तक व्यापार होता रहा। भारत का आसियान और संयुक्त अरब अमीरात के साथ पहले से ही व्यापार समझौता है, वह यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और खाड़ी सहयोग परिषद के साथ अलग संधियों की संभावना तलाश रहा है। जिसमें क्षेत्र के अन्य देशों के अलावा सऊदी अरब और कुवैत भी शामिल हैं।

वास्तव में यह समय विश्व के समावेशी विकास का है। प्रधानमंत्री मोदी के उस कथन जिसमें उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में कहा था कि यह समय युद्ध का नहीं है, यह समयोचित है कि युद्ध और आतंकवाद के बजाय मसलों को शांतिपूर्ण तरीके से निपटाया जाए। एक समय विश्व दो हिस्सों में बंटा हुआ नजर आता था लेकिन अब इस अवधारणा का अंत हो चुका है। अब विश्व में समानुपात की भावना ज्यादा है और जी-20 एवं क्वाड जैसे संगठनों की वजह से नए शक्तिसमूह बन रहे हैं। बेशक, शक्ति समूह की जरूरत अब नहीं रह गई है, लेकिन चीन जैसे विस्तारवादी देश की चुनौती से पार पाने के लिए अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को अगर भारत पसंद आ रहा है तो यह नए दौर की कहानी की शुरुआत है।

यह कितना मनोनुकूल है कि अमेरिका के राष्ट्रपति इस बार भारत यात्रा के बाद पाकिस्तान नहीं गए हैं, इससे पहले लगातार ऐसा होता आया है, जब अमेरिका ने भारत के समकक्ष पाकिस्तान को रखा है। लेकिन इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आकर वियतनाम के लिए रवाना हो गए। वियतनाम वह देश है जोकि चीन की विस्तारवादी चुनौतियों का सामना कर रहा है। ऐसे में संदेश स्पष्ट है कि भारत की प्रासंगिकता कितनी बढ़ चुकी है और शक्ति संतुलन को वह किस प्रकार नियंत्रित कर रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन सही है कि हम ऐसे भविष्य की बात कर रहे हैं, जिसमें हम वैश्विक गांव से आगे बढक़र वैश्विक परिवार को हकीकत बनता देखें। एक ऐसा भविष्य जिसमें देशों के केवल हित ही नहीं, बल्कि ह्दय भी जुड़े हों। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक संस्थाओं में सुधार का आग्रह भी किया है, जोकि आवश्यक है। आखिर इतने बड़े सफल आयोजन के बाद भी अगर भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई जगह नहीं दी जाती है तो यह अन्यायपूर्ण एवं शक्तिशाली देशों की हठधर्मिता ही होगी।

हालांकि फ्रंास जैसे देशों ने भारत की स्थाई सदस्यता की मांग को स्वीकार किया है, एवं चीन को छोडक़र बाकी देश भी इसके लिए तैयार हैं। वास्तव में विश्व समाज को भारत की ओर से यह प्रबल संदेश दिया गया है कि किस प्रकार नए प्रारूप में सोच को उत्सर्जित करते हुए आगे बढ़ा जाए। सबसे बढक़र मानवता है, जिसके कल्याण के लिए देश और उनकी सरकारों को काम करने की जरूरत है। जी-20 सम्मेलन से विश्व के समक्ष नए विचार आए हैं, जिन पर काम हुआ तो परिवर्तन को कोई नहीं टाल सकेगा। 

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