घाटी में नहीं बंद हुआ 'दरबार मूव', अब 'प्रशासन मूव' के नाम से फिर शुरू

Darbar-Move new

जम्मू में उपराज्यपाल के कार्यालय में कामकाज हुआ शुरु : file photo

Darbar move in j&k : जम्मू-कश्मीर (jammu and kashmir) को शेष भारत से अलग करने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के साथ ही घाटी में दरबार मूव की प्रथा खत्म हो गई थी। छह-छह महीने के लिए कश्मीर और जम्मू को राजधानी बनाने की यह रवायत यहां राजशाही के जमाने से चली आ रही थी। अब जब जम्मू-कश्मीर शेष भारत के साथ कदमताल कर रहा है, तब अगर फिर से दरबार मूव जैसी कवायद अंजाम दी जाने लगी है तो हैरान होना लाजमी है। वास्तव में जम्मू में शीतकालीन राजधानी के रूप में लगभग 500 कर्मचारियों के साथ दरबार मूव फिर से सज गया है। हालांकि इस बार इसे दरबार की बजाय प्रशासनिक मूव का नाम दिया गया है। यानी राजशाही ऊपर से बेशक न दिखे लेकिन नाम बदल कर उसी के दौर जैसी रवायत फिर से अंजाम में लाई जा रही है। 

 

दो राजधानी की प्रणाली बरकरार है
दरबार मूव के दौरान छह महीने के लिए गर्मियों में कश्मीर को राजधानी बनाया जाता था और छह महीने के लिए सर्दियों में जम्मू राजधानी होती थी। प्रत्येक वर्ष सैकड़ों ट्रकों में सरकारी फाइलों को लादे ट्रक जम्मू से कश्मीर की तरफ और फिर कश्मीर से जम्मू की ओर सफर करते थे। इस दौरान 10 हजार के करीब सरकारी कर्मचारी दरबार मूव के नाम पर इधर से उधर आने-जाने में लगे रहते थे। इस दरबार मूव के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते थे। लेकिन जम्मू-कश्मीर से यह रवायत जैसे जाने का नाम नहीं ले रही है। अभी भी राज्य में बेशक दो संविधान और दो निशान खत्म हो चुके हैं, लेकिन दो राजधानी का सिस्टम बरकरार है।

 

जम्मू से सर्दियों में प्रशासन चलाना आसान
प्रशासनिक मूव के नाम पर दो राजधानी की इस प्रकिया का यह कह कर सही ठहराया जा रहा है कि प्रशासनिक कामकाज को सुचारू रूप से चलाए रखने के लिए यह आवश्यक है। कश्मीर में सर्दियों में भारी बर्फबारी की वजह से हालात असामान्य हो जाते हैं और राज्य में व्यवस्था बनाए रखने के लिए जम्मू से प्रशासन चलाना सुविधाजनक होता है। अब उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, पुलिस महानिदेशक, मुख्य सचिव, प्रशासनिक सचिव के कार्यालय जम्मू से संचालित होना शुरू हो गए हैं। जम्मू में राजभवन के अंदर साज-सज्जा और मरम्मत का कार्य अक्तूबर के महीने से ही शुरू हो गया था। अब अगले छह महीने के लिए जम्मू से ही घाटी का प्रशासन संचालित होगा। 

 

क्या है दरबार मूव और कब से हुआ शुरू
दरबार मूव जम्मू और कश्मीर सरकार के सचिवालय और अन्य सरकारी विभागों को एक शहर से दूसरे शहर ले जाने की कवायद है। इसे सामान्य तरीके से इस तरह समझा जा सकता है कि कश्मीर जोकि ऊपर की तरफ है, सर्दियों में बर्फबारी से बेहाल हो जाता है और जम्मू जोकि नीचे की तरफ है, गर्मियों में पसीने से तरबतर हो जाता है।  एक मई से लेकर अक्तूबर तक सरकारी कार्यालय समर केपिटल यानी श्रीनगर में शिफ्ट हो जाते हैं, वहीं अक्तूबर से लेकर मई तक सर्दी के मौसम के लिए राजधानी जम्मू में स्थानांतरित हो जाती है। यह प्रथा वर्ष 1872 में महाराजा रणबीर सिंह के वक्त शुरू हुई थी जोकि वर्ष 1952 में जम्मू एवं कश्मीर की राज्य सरकार बनने के बाद भी जारी रही। दरबार मूव बेहद जटिल कार्य था। इसमें सैकड़ों ट्रकों से कार्यालयों का फर्नीचर, फाइल, कंप्यूटर और अन्य रिकार्ड को शिफ्ट किया जाता था। बसों से सरकारी कर्मचारियों को यहां से वहां ले जाया जाता था। 

 

अप्रैल 2021 में बदल गया सबकुछ
अप्रैल 2021 में जम्मू एवं कश्मीर के इतिहास में पहली बार दरबार मूव की इस प्रथा पर रोक लग गई। उस समय कोरोना महामारी की वजह से इसे रोक दिया गया। इसके बाद 30 जून 2021 को 149 वर्षों में राजधानी बदलने की यह रवायत पूरी तरह खत्म कर दी गई। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस संबंध में अधिकारियों को निर्देश जारी किए और नोटिस जारी कर सिविल सचिवालय में कार्यरत कर्मचारियों को तीन सप्ताह के अंदर दरबार मूव वाली जगह खाली करने को कहा। इससे पहले 30 मार्च 2020 को पूर्व मुख्य सचिव बीवी आर सुब्रमण्यम ने कहा था कि राज्य सरकार विभागों के स्थानांतरण के मद्देनजर पेपरलेस कार्य को बढ़ावा देने के लिए ई-ऑफिस तैयार करने के लिए कदम उठा रही है। प्रशासन ने सरकारी रिकॉर्ड को ई-ऑफिस पर अपलोड कर दिया है। इस तरह से दरबार मूव के नाम पर दफ्तरों की यहां से वहां अदला-बदली के नाम पर भारी परिवहन खर्च को बचाया जा सकेगा। इसके बाद से जम्मू और कश्मीर दोनों जगह सरकारी कार्यालय संचालित हो रहे हैं। 

 

दरबार मूव पर आता था कितना खर्च
दरबार मूव बेहद खर्चीली प्रथा थी, जिस पर अनुमानत 110 करोड़ रुपये हर छह महीने बाद खर्च आता था। इस रवायत के बंद होने के वक्त इसकी खुशियां मनाई गई कि अब राज्य में 220 करोड़ रुपये की बचत होगी, जिसे जनता की भलाई के कार्यों 
पर खर्च किया जाएगा। 

 

तो जम्मू को ही क्यों नहीं बनाया स्थाई राजधानी 
घाटी में अनेक बार जम्मू को ही राज्य की स्थाई राजधानी बनाने की मांग उठती रही है, ऐसा इसलिए क्योंकि यहां साल भर औसत तापमान बना रहता है। गर्मी के दिनों में यहां मैदानी इलाकों जैसी गर्मी ही पड़ती है। हालांकि राजनीतिक कारणों से जम्मू को राजधानी बनाने का प्रस्ताव निरस्त होता रहा। यह भी कहा गया कि अगर जम्मू को स्थाई राजधानी बनाया गया तो कश्मीर घाटी में गलत संदेश जाएगा।