Congress got a strong candidate in Chandigarh in the form of Manish Tiwari.

Editorial: चंडीगढ़ में कांग्रेस को मनीष तिवारी के रूप में मिला सशक्त प्रत्याशी

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Congress got a strong candidate in Chandigarh in the form of Manish Tiwari.

Congress got a strong candidate in Chandigarh in the form of Manish Tiwari. चंडीगढ़ में कांग्रेस की ओर से लोकसभा उम्मीदवार का चयन निश्चित रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण रहा होगा। पंजाब में आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट से निवर्तमान सांसद मनीष तिवारी को चंडीगढ़ से टिकट देकर कांग्रेस नेतृत्व ने विरोधी भाजपा के समक्ष प्रखर चुनौती कायम कर दी है। मनीष तिवारी का छवि एक निष्पक्ष एवं जुझारू नेता की है, उन पर भ्रष्टाचार आदि के आरोप भी नहीं हैं। उनका चंडीगढ़ से संबंध काफी गहरा और पुराना है। वे पंजाब और चंडीगढ़ के जमीनी नेता हैं, इसमें कोई शक भी नहीं है।

मनीष तिवारी आनंदपुर साहिब से सांसद रहते हुए भी चंडीगढ़ के प्रति रुझान रखते आ रहे हैं, जिसका प्रतिफल अब उन्हें हासिल हुआ है। कांग्रेस नेतृत्व का यह फैसला उचित भी है, कि उसने चंडीगढ़ से वास्ता रखने वाले नेता को ही यहां टिकट दिया है। मनीष तिवारी बीते दो-तीन वर्ष से प्रयास में थे कि उन्हें चंडीगढ़ से टिकट प्रदान किया जाए। हालांकि अब उनकी यह मंशा पूरी हो गई है, लेकिन चुनौतियां अभी बहुत बाकी हैं।

चंडीगढ़ कांग्रेस में लगातार आठ बार वरिष्ठ नेता पवन बंसल लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार रहे हैं। वे मनमोहन सिंह सरकार में रेल मंत्री भी रहे। इस बार कांग्रेस में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति थी, क्योंकि पवन बंसल के अलावा अन्य नेता भी पार्टी की टिकट के चाहवान थे। हालांकि जब पार्टी ने मंथन किया तो पाया कि किसी नए चेहरे को ही टिकट दिया जाए। यह तब है, जब भाजपा की ओर से भी पहली बार संजय टंडन को टिकट दिया गया है। टंडन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं और भाजपा नेतृत्व की नजर में वे जुझारू नेता हैं। शहर में उनका प्रभाव है, हालांकि अगर संजय टंडन की जगह किसी अन्य नेता को टिकट दिया जाता तो कांग्रेस के लिए शहर से किसी नेता को टिकट देना आसान होता। लेकिन संजय टंडन के मुकाबले के लिए पार्टी ने कमोबेश एक युवा नेता को टिकट देकर प्रतियोगिता को और कड़ा बना दिया है।

बेशक, भाजपा में संजय टंडन और कांग्रेस में मनीष तिवारी, दोनों के लिए अपनी-अपनी पार्टियों में असंतोष और नाराजगी को दूर करना भी एक चुनौती होगी। दोनों दलों ने इस बार अपने उम्मीदवारों को बदल दिया है। यह अलग बात है कि भाजपा उम्मीदवार संजय टंडन को अभी चुनाव लड़ने का सीधा अनुभव नहीं है, लेकिन मनीष तिवारी मौजूदा सांसद हैं।

कांग्रेस में उम्मीदवार के चयन के साथ ही अब पूर्व सांसद पवन बंसल का दौर भी बीत गया है। बंसल चंडीगढ़ कांग्रेस के पर्याय रहे हैं, लेकिन इस बार उनके नाम पर शहर के कांग्रेसियों में आमराय नहीं थी। ऐसा सामने आ रहा है कि खुद प्रदेश अध्यक्ष और उनके समर्थकों की ओर से बंसल को टिकट दिए जाने का विरोध हो रहा था। बंसल को कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मिली हुई थी, लेकिन बाद में वे इस पद से हट गए थे। ऐसा भी सामने आ रहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से उनका टकराव हो गया था। यह सब कही सुनी बातें हैं, जिनका कोई सीधा प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन यह तय है कि कांग्रेस के पास शहर में संजय टंडन के बराबर कद का उम्मीदवार नहीं था। अगर पार्टी शहर से ही किसी को टिकट देती तो यह सीट एक तरह से विरोधी दल को सौंपने जैसा होता। लेकिन मनीष तिवारी के रूप में कांग्रेस नेतृत्व ने शहर में भाजपा उम्मीदवार को टक्कर देने की पूरी तैयारी की है। गौरतलब है कि कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं, ऐसे में आप शहर में कांग्रेस का समर्थन कर रही है।

हालांकि बदले हुए परिदृश्य में कांग्रेस उम्मीदवार को आप का कितना समर्थन मिलेगा, यह भविष्य ही बताएगा। इसके कयास लग रहे हैं कि भाजपा उम्मीदवार संजय टंडन की लोकप्रियता भी शहर में बहुत है, बतौर प्रदेश अध्यक्ष तो वे शहर के मुद्दों से जुड़े ही रहे हैं, बतौर समाज सेवक भी वे शहर के लोगों  से वास्ता रखते हैं। चंडीगढ़ बौद्धिकों का शहर है, और यहां सब कुछ नापतोल कर होता है, ऐसे में मतदाताओं को यह परखने में दिक्कत आ सकती है कि किस उम्मीदवार के साथ जाएं। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि मनीष तिवारी भी चंडीगढ़ के सभी वर्गों से जुड़े हैं।

अगर यह कहा जाए कि चंडीगढ़ इस बार पूरे देश के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी है तो कोई दोराय नहीं होनी चाहिए। चंडीगढ़ के लिए यह आवश्यक है कि वह ऐसे उम्मीदवार को चुने जोकि इसका और विकास करवा सके। यह शहर ठहर गया लगता है और इसके विस्तार के लिए हरसंभव कदम उठाए जाने की जरूरत है। 

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