Chandigarh's industrialists, angry with the administration and administrators

प्रशासन और प्रशासक से खफा चंडीगढ़ के उद्योगपति, स्थानीय सांसद और केंद्र सरकार के टरकाऊ रवैये से भी नाराज, घोषणापत्र है या ठंडा बस्ता, मुद्दे वहीं के वहीं

Chandigarh's industrialists, angry with the administration and administrators

Chandigarh's industrialists, angry with the administration and administrators

Chandigarh's industrialists, angry with the administration and administrators- चंडीगढ़ (साजन शर्मा)। चुनावों में राजनीतिक पार्टियां घोषणापत्र में कई सारे मुद्दे शामिल करती हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उन्हें भूल जाती हैं। दैनिक अर्थ प्रकाश ने इस कड़ी में ऐसे मुद्दों और वादों को खोजा जो वर्षों से घोषणापत्रों की केवल शोभा बढ़ा रहे हैं। अर्थप्रकाश विभिन्न वर्गों के मुद्दों को लेकर एक सीरिज शुरू करने जा रहा है जिसमें उन मुद्दों को उठाया जाएगा जिन्हें वोट के तौर पर भुनाने और विशेष वर्ग को लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियां इस्तेमाल कर रही हैं, लेकिन इनका आज तक कोई हल नहीं निकाला जा रहा।

शहर के उद्योगपति भी घोषणापत्र में शामिल एजेंडों से दुखी होकर अब पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर रहे हैं। इनका कहना है कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने बरसों से चुनावों के दौरान अपने घोषणापत्र में विभिन्न वर्गों के मुद्दे तो शामिल किये लेकिन इन मुद्दों का आज तक समाधान नहीं हो पाया। जीत दर्ज करने वाले प्रतिनिधि ने वोट हासिल कर जीतने के बाद इनकी समस्याओं से मुंह मोड़ लिया। समस्या का हल न होने से त्रस्त ऐसे वर्ग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। चंडीगढ़ से चाहे कांग्रेस का या भाजपा का सांसद चुना गया हो, किसी ने भी गंभीरता से इंडस्ट्री से जुड़े मुद्दों को नहीं लिया। 

चंडीगढ़ के उद्योगपतियों की दर्जनों समस्याएं हैं जिनके लिये वह स्थानीय सांसद से लेकर चंडीगढ़ प्रशासन और केंद्र सरकार की चौखट तक गुहार लगा चुके हैं लेकिन इन मुद्दों का निदान नहीं हुआ। उद्योगपतियों ने ज्वाइंट फोरम ऑफ इंडस्ट्रियल एसोसिएशन का भी गठन किया लेकिन इस फोरम की भी सब कोशिशें नाकाम गई। जब-जब फोरम ने सक्रिय होकर आवाज उठाई, प्रशासन की ओर से इन्हें नोटिस थमाकर दबाने के पैंतरे आजमाये गए।

उद्योगपतियों ने कहा कि स्थानीय सांसद ने उनके मसलों का हल करने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई। चंडीगढ़ प्रशासन के अफसर राजनीति पर पूरी तरह से हावी हैं। 2006 में संसद से पास हुए एमएसएमई एक्ट का हवाला देते हुए उद्योगपतियों ने कहा कि जब कानून ही पास हो गया तो इसे लागू करने में क्या दिक्कत है। प्रशासन की उद्योगपतियों के मसले हल करने की मंशा नहीं है। 

चंडीगढ़ से फिलहाल किसी भी प्रमुख दल ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। उद्योग जगत से जुड़े लोग व स्थानीय निवासी चाहते हैं कि यहां से कोई भी पार्टी प्रत्याशी उतारे तो वह लोकल होना चाहिये क्योंकि वही उनकी रोजमर्रा की दिक्कतों से वही वाकिफ हो सकता है। उसे वह कभी भी पकड़ सकते हैं। बाहर से लाये गये प्रत्याशी को न तो उनकी समस्याओं के बारे जानकारी रहती है और न ही वह इन्हें हल कराने में ही कोई रुचि रखते हैं। ज्वाइंट फोरम ऑफ इंडस्ट्रियल एसोसिएशन चाहती है उनकी समस्याओं का जल्द हल हो।

ये हैं ज्वाइंट फोरम ऑफ इंडस्ट्रियल एसोसिएशन में

-    इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ चंडीगढ़
-    चैंबर ऑफ चंडीगढ़ इंडस्ट्रीज
-    चंडीगढ़ इंडस्ट्रियल कनवर्टिड प्लॉट ओनर्स एसोसिएशन
-    चंडीगढ़ इंडस्ट्रियल एसोसिएशन
-    फेडरेशन ऑफ चंडीगढ़ रीजन ऑटोमोबाइल्ड डीलर्स
-    लघु उद्योग भारती
-    चंडीगढ़ इंडस्ट्रियल यूथ एसोसिएशन
-    चंडीगढ़ फर्नीचर एसोसिएशन
-    इंडस्ट्रियल शैड वेलफेयर एसोसिएशन
-    चंडीगढ़ इंडस्ट्रियल सैल

राजनीतिक दलों ने उद्योगपतियों को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया। कोई भी राजनीतिक दल या उसका प्रतिनिधि चंडीगढ़ से जीता, उसने उद्योग जगत से जुड़े लोगों की समस्याएं सुलझाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। भारत के सभी यूटी में लीजहोल्ड से फ्रीहोल्ड किये जाने की अनुमति है लेकिन चंडीगढ़ में यह मसला अभी तक अटका हुआ है। इंडस्ट्रियल एवं कमर्शियल एरिया में मिसयूज एंड वॉयलेशन के नोटिस का मुद्दा भी ज्यों का त्यों खड़ा है। आगे प्रापर्टी का बंटवारा न होने की वजह से बच्चे उनके या बुजुर्गों के द्वारा शुरू किये गये काम को छोड़ रहे हैं। हम अपने बच्चों के लिये प्रापर्टी नहीं बल्कि झगड़ा या विवाद छोड़ रहे हैं। बच्चे इस काम में रुचि ही नहीं दिखा रहे। पढ़ लिख कर दूसरे कामों की ओर चले गये। प्रशासक को यहीं के स्तर पर निर्णय लेने चाहिएं, बजाये इसके मुद्दे केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजे जाएं।
-सुरिंदर गुप्ता
चैंबर ऑफ चंडीगढ़ इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट 

राजनीतिक दलों व यहां से जीते प्रतिनिधियों की मंशा मुद्दे सुलझाने की लगती ही नहीं। फायर एनओसी नार्म्स को ज्यादा प्रैक्टिकल बनाये जाने की जरूरत है। सभी प्लॉट या यूनिट में अलग फायर फाइटिंग उपकरण लगाने की बजाये कॉमन एरिया में फायर फाइटिंग प्रोविजन होना चाहिए। अलग अलग यूनिट में यह अफोर्डेबल नहीं है और न ही हर प्लॉट में वॉटर स्टोरेज हो सकती है। हर प्लॉट होल्डर से इसके लिये नोमिनल चार्ज लिये जा सकते हैं। प्रशासन केंद्र को मुद्दे हल करने को भेजता है जबकि केंद्र वापिस प्रशासन के पाले में भेज देता है। प्रशासन को स्थानीय मुद्दे हल करने की पूरी पावर होनी चाहिए। चंडीगढ़ में लीज होल्ड रेजीडेंशियल हाऊसिज को अफोर्डेबल कनवर्जन फ्रीस पर फ्री होल्ड में बदल दिया गया है। चंडीगढ़ के पड़ौसी राज्यों ने इंडस्ट्री के लिये यह प्रोविजन काफी कम कीमतों पर और सबसीडाइज्ड रेट पर किया है। वहां उद्योग जगत को इसका फायदा मिला और उसका विकास हुआ जिससे न केवल रेवेन्यू बढ़ा बल्कि रोजगार भी बढ़ा। पड़ौसी राज्यों की तर्ज पर ट्रांसफर फीस कम से कम रखी जाये।  इंडस्ट्री को पॉलिसी बनाने से पहले इसमें इंडस्ट्री को स्टेक होल्डर के तौर पर रखा जाए।
-अरुण गोयल
चैंबर ऑफ चंडीगढ़ इंडस्ट्रीज के जनरल सेक्रेट्री 

उद्योगपतियों के साथ काफी देर से ज्यादती हो रही है। उनके मसले लटके पड़े हैं। प्रशासन के अफसरों से लेकर प्रशासक, गृह मंत्रालय तक चक्कर लगा चुके हैं लेकिन प्रशासन कहता है कि केंद्र करेगा जबकि केंद्र कहता है कि प्रशासन के स्तर पर हल होने वाले मसले हैं। लीजहोल्ड से फ्री-होल्ड का मसला अहम है। पहले फ्री होल्ड बेसिस पर इंडस्ट्रियल प्लॉट मिले थे। फिर उसी कीमत पर 99 साल की लीज पर अलॉटमेंट कर दी गई। कई राज्यों और अन्य यूटी में जब फ्री होल्ड किया जा सकता है तो चंडीगढ़ में क्यों नहीं? लीज होल्ड में कई तरह की पाबंदियां हैं। बहुत से अलॉटमेंट व टाइटल अब खराब हो चुके हैं। इसकी वजह है कि प्रापर्टी का फैमिली डिवीजन, बिजनेस डिवीजन, पार्टनरशिप डिवीजन या क्लोजर लीज होल्ड में होना मुश्किल है। प्रशासन इंडस्ट्रियल व कमर्शियल एरिया में मिसयूज व वॉयलेशन के नोटिस भी थमाता है। इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगनी चाहिए। चंडीगढ़ में संसद से पास हुआ एमएसएमई एक्ट लागू होना चाहिए। चंडीगढ़ के प्रशासक को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से निर्णय लेने की पॉवर प्रदान की जानी चाहिए ताकि यहीं समस्याओं का हल हो सके। इंडस्ट्री में एफएआर 1.5 से 2 गुणा तक होनी चाहिये। मोहाली व पंचकूला की तर्ज पर इसके रेट तय होने चाहिएं।
-वरिंदर सिंह सलूजा
इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ चंडीगढ़ के वाइस प्रेसिडेंट 

राजनीतिक दलों की नियत साफ नहीं है। मैनीफेस्टो में मुद्दे जरूर डालते हैं लेकिन केवल वोट के लिये। असलियत में उन्हें पीडि़त की समस्याओं से कोई वास्ता नहीं। भारतीय राजनीति की यह हकीकत बन गई है। चंडीगढ़ से बड़े स्तर पर इंडस्ट्री पलायन कर रही है। करीब 40 प्रतिशत इंडस्ट्रियलिस्ट यहां से दूसरे राज्यों की ओर कूच कर चुके हैं क्योंकि काफी समय से समस्याओं का हल नहीं हुआ। अगर आगे भी निपटारा नहीं हुआ तो चंडीगढ़ में उद्योग जगत का बंटाधार हो जाएगा। लीज होल्ड के प्लॉटों का लीज ट्रांसफर का लॉक इन पीरियड 15 साल है। प्रशासन का कर्तव्य बनता है कि वह ट्रांसफर पॉलिसी व रेट लेकर आए जिससे इस पीरियड के दौरान अनअंर्ड प्रोफिट की कैलकुलेशन हो सके और इस समयसीमा या लॉक इन पीरियड के बाद प्रापर्टी ट्रांसफर एग्जीक्यूट हो सके। प्रशासन ऐसा करने में नाकाम रहा है।
-चंद्र वर्मा
चंडीगढ़ इंडस्ट्रियल कनवर्टिड प्लॉट ओनर एसोसिएशन के चेयरमैन 

इंडस्ट्रियल एरिया में मिसयूज एवं वॉयलेशन के वर्ष 2010 से कई केस पैंडिंग हैं। इंडस्ट्री या प्रापर्टी की वैल्यू से कई गुणा ज्यादा फाइन प्रशासन की ओर से लगा दिये गए हैं। यह बिलकुल गैर कानूनी है। बिल्डिंग रुल्स 2007 एवं 2009 को गैर कानूनी, असंवैधानिक, अतार्किक तरीके से लागू किया जा रहा है। पंजाब कैपिटल प्रोजेक्ट एक्ट 1952 में बदलाव का अधिकार केवल संसद का है। प्रशासन खुद अपने पत्र में कह रहा है कि बिल्डिंग रुल्स में नई अमेंडमेंट प्रपोजल के बाद तैयार की गई हैं जिसे केंद्रीय गृह मंत्रालय की मार्फ्त संसद से ही लागू किया जा सकता है।  
-अरुण महाजन
इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ चंडीगढ़ के प्रेसिडेंट 

लीज होल्ड से फ्री होल्ड का उद्योगपतियों का अहम मुद्दा है। फैमिली डिवीजन, बिजनेस डिवीजन, पार्टनरशिप डिवीजन या इंडस्ट्री बंद करने में इससे रुकावटें हैं। पॉवर ऑफ अटार्नी पर प्रॉपर्टी तकसीम हो रही है जिससे इंडस्ट्री के टाइटल ख्रराब हो रहे हैं। उद्योगपतियों को सब स्टैंडर्ड टाइटल्स के सहारे छोड़ दिया गया है जबकि उनका कोई कसूर नहीं है। चंडीगढ़ की इंडस्ट्रियल पॉलिसी में इन कनवर्जन को देखा जाना चाहिए और इंडस्ट्री की ग्रोथ में बाधा क्लॉज हटाना चाहिये। मिसयूज एंड वॉयलेशन नोटिसों के जरिये उद्योगपतियों को प्रताडि़त किया जाता है। चंडीगढ़ में संसद से 2006 में पास हुए एमएसएमई एक्ट पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए। इंडस्ट्रियल एरिया फेज 1 व 2 में एक्ट के तहत उपलब्ध गतिविधियों की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए ताकि इंडस्ट्री खुले दिमाग से नई इनोवेशन व प्रोडक्टीविटी पर ध्यान दे। बीते 40 साल से इंडस्ट्रियल एरिया में कोई होरीजेंटल ग्रोथ नहीं है। स्पेस की डिमांड लगातार बढ़ रही है। फ्लोर एरिया रेशो को रीजनेबल पेमेंट बेसिस पर वर्तमान में 0.75 से बढ़ाकर 1.5 किया जाना चाहिये। फायर एनओसी नार्म्स और बेहतर किये जाने चाहिएं। इंडस्ट्री की जरूरतों को समझे बगैर इन्हें नहीं बनाना चाहिए। एमसी फायर नॉमर््स के लिये एनबीसी कोड फॉलो कर रहा है। इंडस्ट्रियल एरिया के विशेष ब्लॉक में कॉमन फायर फाइटिंग प्रोविजन की जरूरत है।
-नवीन मंगलानी
चंैबर ऑफ चंडीगढ़ इंडस्ट्रीज के वाइस प्रेसिडेंट