BJP should also worry about its workers

भाजपा करे अपने काडर कार्यकर्ताओं की भी फिक्र

BJP should also worry about its workers

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BJP should also worry about its workers- पंजाब के (Ex CM Captain Amrinder Singh) पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और (Former State President Sunil Jakhar) पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ का (National Executive of BJP) भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल होना, दोनों नेताओं का बड़ा सम्मान है। (Amrinder Singh) कैप्टन अमरिंदर सिंह इस समय (Punjab) पंजाब की (Politics) राजनीति में सबसे ज्यादा उम्र के सक्रिय नेता हैं। वहीं (Sunil Jakhar) सुनील जाखड़ पार्टी के ऐसे चेहरे हैं जोकि अपनी साफगोई और पारदर्शिता के लिए जाने जाते हैं। साल (2024 Lok Sabha Elections) 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट चुकी (BJP & Congress) भाजपा के लिए कांग्रेस से आए (Politician) नेता और पदाधिकारी ही खेवनहार बन गए हैं तो ताज्जुब नहीं होता। हालांकि पार्टी का मूल कैडर जोकि बरसों से अपने दिन फिरने का इंतजार कर रहा है, इन नियुक्तियों के बाद और ज्यादा सकते में है। पार्टी के पुराने नेताओं में अनेक अब बाहर जा चुके हैं या उन्हें सक्रिय ही नहीं रहने दिया गया है। (BJP) भाजपा बीते कुछ वर्षों के दौरान (Congress) कांग्रेस से आए नेताओं को अपने यहां अहम स्थान प्रदान कर रही है, उसकी यह रणनीति कामयाब भी हो रही है, लेकिन यह सवाल भी अहम है कि (Party) पार्टी के काडर की अनदेखी करनी सही है?

(Amrinder Singh) कैप्टन अमरिंदर सिंह (Congress) कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं, लेकिन (Party) पार्टी ने जिस प्रकार से उन्हें विदाई दी थी वह उनके सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली थी। इसके बाद उनके सामने भी यह चुनौती थी कि खुद को राजनीतिक रूप से जीवंत बनाए रखें, ऐसे में देश की सबसे बड़ी और (Central Government) केंद्र की सत्ता में बैठी (BJP) भाजपा ही उनके लिए अंतिम विकल्प थी। (BJP) भाजपा हिंदुत्व सोच की वह पार्टी है, जिसे एक समय दूसरे (Political Party) राजनीतिक दलों के नेता अछूत समझते थे। कांग्रेस से (BJP) भाजपा में आना अभिशाप की तरह समझा जाता था। हालांकि साल 2014 में एकाएक (BJP) भाजपा के प्रति (Congress) कांग्रेस नेताओं का मोह बढ़ा, अपने यहां टिकट कटने के बाद उन्होंने (BJP) भाजपा में आश्रय लिया। वे सांसद बने और केंद्र में मंत्री भी। (Haryana Congress) हरियाणा में कांग्रेस के पर्याय रहे बीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत सिंह, धर्मबीर सिंह जब (BJP) भाजपा में आए तो हर किसी को हैरानी हुई थी। उस समय (Haryana BJP) हरियाणा में भाजपा के पास इतने बड़े चेहरे नहीं थे, लेकिन कांग्रेस से आए नेताओं ने उन खाली जगहों को भर दिया। पंजाब के संबंध में विचार करें तो यहां भी कुछ चेहरों को छोडक़र पार्टी के पास चर्चित एवं (National) राष्ट्रीय फलक रखने वाले नेताओं की कमी थी। कैप्टन अमरिंदर सिंह का फलक राष्ट्रीय नेता का है वहीं वे लंबा (political and administrative) राजनीतिक एवं प्रशासनिक अनुभव रखते हैं, जोकि (BJP)  भाजपा के काम आ सकता है। वे राज्य में जट्ट सिख वोट पर प्रभाव रखते हैं।

सुनील जाखड़, राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी और अमन जोत कौर वालिया को भी पार्टी ने (national executive member) राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बनाया है। दिलचस्प यह भी है कि पंजाब कार्यकारिणी में भी कांग्रेस से आए नेताओं को ही अहमियत दी गई है। दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को समायोजित करने के लिए पार्टी ने पदों की संख्या भी बढ़ा दी है। पहले जहां सात उपप्रधान होते थे, वहीं अब इनकी संख्या 11 हो गई है। यह तब है, जब पार्टी ने काडर से महज 3 लोगों को ही जगह दी है। जयइंदर कौर, केवल सिंह ढिल्लों, डॉ. राजकुमार वेरका, लखविंदर कौर गरचा, अरविंद खन्ना (Congress) कांग्रेस से नेता हैं, जोकि अब उपप्रधान पद की जिम्मेदारी संभालेंगे। दरअसल, (Congress) कांग्रेसियों का भाजपा करण पार्टी की रणनीति का हिस्सा हो सकती है, लेकिन मूल काडर की अनदेखी कहीं उस पर भारी न पड़ जाए, इसका भी उसे ख्याल रखने की जरूरत है। पार्टी ने नई नियुक्तियों में केवल मात्र मनोरंजन कालिया को (national executive) राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी है। अगर मनोरंजन कालिया को छोड़ दें तो बाकी के सभी नेता बीते आठ महीनों के अंदर ही (BJP) भाजपा में शामिल हुए हैं।

बीते (assembly elections) विधानसभा चुनाव में (BJP) भाजपा ने अपने बूते जंग लड़ी थी, (BJP) भाजपा की छवि पंजाब में हमेशा से अकाली दल की अनुषंगी के रूप में रही है। यह माना जाता था कि दोनों दल कभी जुदा नहीं होंगे। सिख और हिंदू भाईचारे का प्रतीक बनी दोनों पार्टियों में दरार आई तो नुकसान सर्वाधिक अकालियों को हुआ। हालांकि भाजपा के अंदर शुरुआत से यह कुलबुलाहट रही कि उसे अकाली दल से अलग राह अपनानी चाहिए, दोनों दलों का गठबंधन टूटने से भाजपा नेताओं को खुशी हुई, क्योंकि उन्हें अपने लिए ज्यादा अवसर दिखने लगे थे। लेकिन जिस तरह से पार्टी ने आक्रामक रूख अपनाते हुए कांग्रेस के अंदर हुई तोडफ़ोड़ का फायदा उठाया है, उससे पार्टी को ताकत मिली है। प्रसार कभी भी गलत नहीं होता, भाजपा कभी दो सांसदों की पार्टी थी। उस समय कौन यह सोच सकता था कि एक दिन वह पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र एवं राज्यों में सत्ताशीन होगी। लेकिन निरंतर आगे बढ़ने की चाह में पार्टी नए लोगों को अपने साथ जोड़ती गई। अब पंजाब में भी यही नीति जारी है, बीते (assembly elections)  विधानसभा चुनाव में पार्टी को अकेले लड़ने का यह फायदा हुआ कि उसका वोट प्रतिशत बढ़ गया, हालांकि उसे सिर्फ दो सीटें हासिल हुई। वास्तव में भाजपा के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने काडर की भी परवाह और चिंता करे। भाजपा को स्थापित करने में उन ज्ञात-अज्ञात कार्यकर्ताओं का अहम योगदान रहा है, जिन्होंने कभी इसकी चाह भी नहीं रखी होगी कि उन्हें (national executive) राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पहचान मिले। भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते हुए सभी को साथ लेकर चलना होगा। वरिष्ठ नेताओं का अनुभव एवं युवाओं का पुरुषार्थ पार्टी को आगे लेकर जाएगा। 

 

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