Ateeq has a past,

Editorial: अतीक तो अतीत हुआ, लेकिन अपराध के अंकुर छोड़ गया

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Ateeq has a past

Ateeq has a past क्या इसे यह समझा जाए कि उत्तर प्रदेश में माफिया अतीक अहमद अपने पीछे गैंगस्टर की नए अंकुर छोड़ गया है। निश्चित रूप से अपराध कभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं होता है, वह किसी न किसी रूप में जिंदा रहता है और खुद के बड़े होने का इंतजार करता रहता है। अतीक अहमद के साथ भी यही हुआ था, बेहद छोटी उम्र में वह अपराध की दुनिया में आ गया और फिर सुधरने की कोशिश भी नहीं की। अब उसकी और उसके भाई अशरफ की हत्या के तीनों आरोपी जोकि 23 या इससे कम उम्र के ही हैं, अपराध की दुनिया में नाम कमाने निकल पड़े हैं। उनके इकबालिया बयान से यही साबित हो रहा है कि उन्होंने अपराध की दुनिया में अपना नाम बनाने के लिए दोनों की हत्या की।

तीनों पर अनेक मामले दर्ज हैं और तीनों की मुलाकात जेल की दीवारों के पीछे हो चुकी है। आरोपियों ने यह भी कहा है कि वे अतीक अहमद गैंग का सफाया करना चाहते थे, बेशक यह बात सुनने में अच्छी लग रही है, लेकिन सवाल यह है कि युवा पीढ़ी अगर इस प्रकार हाथों में तमंचे लेकर गुंडागर्दी करेगी तो फिर उसका भविष्य क्या होगा। निश्चित रूप से एक दिन फिर तीनों की कोई और हत्या कर देगा और इस प्रकार अपराध का यह सिलसिला कभी बंद नहीं होगा।

 अतीक अहम दुर्दांत अपराधी था, उस पर सौ से ज्यादा केस चल रहे थे। अभी कुछ दिन पहले ही तत्कालीन बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। लेकिन इस मामले में अभी और केस की सुनवाई जारी थी।  इसी प्रकार उसके भाई अशरफ की भी अदालत में पेशी हो रही थी। दोनों की हत्या से कुछ देर पहले ही उन्होंने प्रयागराज में एक जगह छिपा कर रखे हथियार पुलिस को बरामद कराए थे। दरअसल, दोनों की हत्या के संबंध में जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अगर न्यायिक आयोग गठित किया है तो यह जरूरी है। लेकिन यूपी पुलिस जिस पर अब अंगुली उठ रही है, उसे यह साबित करना चाहिए कि  इस वारदात में उसका कोई हाथ नहीं है।

बेशक, यह आरोप हो सकता है, लेकिन जनसामान्य में जिस प्रकार की बातें सामने आ रही हैं, उन्हें देखते हुए पुलिस की भूमिका को संदिग्ध माना जा रहा है। हालांकि पकड़े गए तीनों युवा आरोपियों का यह कहना कि वे अपराध की दुनिया में नाम कमाना चाहते थे, काफी बेतुका लगता है। अब विभिन्न रिपोर्ट इस प्रकार की जानकारी दे रही हैं कि आरोपियों को दोनों की हत्या की सुपारी दी गई है। उन्हें महंगे हथियार मुहैया कराए गए। तीनों ने भारत में प्रतिबंधित जिगाना पिस्तौल से वारदात अंजाम दी है, आखिर वह उनके पास कैसे आ गई। आखिर वह कौन हो सकता है, जिसने अतीक और उसके भाई की हत्या के लिए इतना खर्च किया है। अगर पुलिस इसका पता लगाती है तो यह उसके दामन पर लगे दाग को धोने में कुछ काम आ सकता है।

इस प्रकरण में एक चिंताजनक बात यह है कि तीनों आरोपियों ने मीडिया कर्मियों का भेष धर कर इस वारदात को अंजाम दिया। मीडिया कर्मी पहले ही अपनी सुरक्षा के संबंध में चिंतित रहते हैं, अपराधियों के निशाने पर वे सहजता से होते हैं। ऐसे में अपराधी अगर उनका वेश बनाकर इस प्रकार से वारदात को अंजाम देंगे तो फिर वास्तविक मीडिया कर्मियों पर कौन भरोसा करेगा। आज के समय में पत्रकारिता का महत्व वैसे ही नीचे गिरा दिया गया है, लेकिन ऐसे मामलों की वजह से पत्रकारों पर भी सवाल उठेंगे। हालांकि यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एसओपी बनाने के गृह मंत्रालय को निर्देश दिए हैं। यह मामला इतना आसान नहीं हो सकता कि इसे सहजता से लिया जाए।

वहीं इन सवालों के जवाब अभी तक मिलने बाकी हैं कि आखिर जब साबरमती जेल से अतीक अहमद को लाया जा रहा था तो उसकी पुलिस वैन के पास तक पत्रकारों को नहीं फटकने दिया जा रहा था लेकिन जब प्रयागराज में अस्पताल में चैकअप के बाद उसे बाहर लाया गया तो पत्रकारों के समक्ष ऐसे पेश कर दिया गया जैसे कि वह प्रेस कॉन्फ्रेंस करना चाहता हो। बेशक, एक आरोपी, अपराधी को भी अपनी बात कहने का हक है, लेकिन जिस तरह से लचर सुरक्षा में उन दोनों को मीडिया कर्मियों के सवालों के जवाब देने के लिए रोक दिया गया, वह बेहद आपत्तिजनक और उनकी सुरक्षा को खतरा था।

निश्चित रूप से मीडिया का कार्य सूचना को बाहर लाना है, लेकिन इसकी जरूरत है कि संयम एवं सुरक्षा के साथ इस कार्य को अंजाम दिया जाए। अतीक अहमद हत्याकांड ने पुलिस प्रणाली समेत पूरे सिस्टम को नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है, संभव है इसके सही परिणाम सामने आएंगे। 

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