अनिल विज ने पूरा जीवन आर एस एस की विचारधारा पर चलते हुए राजनीति की

अनिल विज ने पूरा जीवन आर एस एस की विचारधारा पर चलते हुए राजनीति की

Ideology of RSS

Ideology of RSS

अनिल विज अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन में कभी किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल नहीं हुए

Ideology of RSS: निर्दलीय विधायक होते हुए बंसीलाल, चोटाला के शाशन में मंत्री पद ठुकरा चुके अनिल विज को भजपा में ही 14 वर्ष का बनवास काटना पड़ा।मगर उन्होंने आर एस एस व भाजपा का दामन कभी नहीं छोड़ा।वहीं उनकी है यह तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है जिसमें आर एस एस के अनुभव और भविष्य की नींव के रूप की यह तस्वीर आर एस एस के सौवें  वर्ष पर बहुत कुछ बया कर रही है।

 हरियाणा में भजपा के दमदार मंत्री अनिल विज का  कि ने एस एस के नेताओं के आदेशों को कभी भी दर किनार नहीं किया।अनिल विज न ही कभी भी किसी अन्य दल के प्रलोभन में नही आए।
अनिल विज ने पूरा जीवन आर एस एस की विचारधारा पर चलते हुए राजनीति की।कभी टस से मस नहीं हुए।
     अनिल विज  1969-70 में अपने छात्र जीवन के दौरान प्रोफेसर गोपाल कृष्ण (करनाल के तत्कालीन संघ संचालक) के संपर्क में आने के बाद उनके साथ पहली बार शाखा में गए। देश के प्रति समर्पित भावना को देखते हुए विज को उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महामंत्री की जिम्मेदारी एसडी कॉलेज के लिए सौंप दी। 1974 में  स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी लगने तक वह हिंदू परिषद- भारत विकास परिषद और मजदूर संघ की गतिविधियों में पूरी तरह से सक्रिय हो चुके थे। नौकरी के बावजूद विज बैंक से छुट्टी लेकर भी आरएसएस- एबीवीपी और जनसंघ में बिना कोई पद लिए लगाई गई जिम्मेदारियों का ना केवल निर्वहन करते थे, बल्कि हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर उनकी भागीदारी दिखने लगी थी।

संघ के वरिष्ठ नेताओं के लाख कहने के बावजूद भी विज नौकरी छोड़ने को नहीं थे तैयार

 एमरजैंसी के बुरे वक्त के बाद अंबाला सीट से पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार को चुनाव जिताने के लिए विज ने 1 माह की छुट्टी लेकर पूरी भागीदारी निभाई और इसी तरह 1987 मेंं अंबाला छावनी से चुनाव लड़ रही सुषमा स्वराज को जिताने में भी विज की भूमिका बेहद अहम दर्ज हुई। लेकिन 1990 में पार्टी ने विधायक सुषमा स्वराज को राज्यसभा में भेजने का फैसला ले लिया और अंबाला छावनी की सीट खाली होने के कारण वहां उपचुनाव घोषित कर दिया गया। उस दौरान 1987 से 1990 तक देवीलाल की पार्टी के साथ जनसंघ गठबंधन था जो कि वह 1990 में टूट गया। इस उपचुनाव को लेकर हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने जनसंघ के उस समय बने नेता डॉ मंगलसेन को चैलेंज किया कि बिना उनकी मदद से चुनाव जीतना संभव ही नहीं है। विज को  तब राज्यसभा में पहुंची सुषमा स्वराज ने उन्हें चुनाव लड़ने की बात कही। लेकिन उन्होंने नौकरी का हवाला देते हुए ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। क्योंकि नौकरी करते 17 वर्ष बीत चुके थे और पेंशन लगने की उम्मीद के चलते वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। इसके बाद जनसंघ के वरिष्ठ राष्ट्रीय नेताओं केएल शर्मा (कृष्ण लाल),  मदन लाल खुराना के बार बार कहने पर भी अनिल विज नौकरी छोड़ कर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए।

विज को उपचुनाव से 2 दिन पहले जनसंघ के ऑफिस सेक्रेटरी गुलशन भाटिया ने उन्हें बुलाया और अपने साथ लेकर रोहतक ले गए। उस दौरान विज के साथ पार्टी के दो वरिष्ठ कार्यकर्ता सोम चोपड़ा और जगदीश गोयल भी थे और वह मंगल सेन के घर पहुंचे। जहां पहले से ही जनसंघ और आरएसएस के बड़े नेता मौजूद थे। लेकिन वहां भी विज चुनाव ना लड़ने की पैरवी करते रहे। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक उच्चाधिकारी ने जब विज को बड़ी उम्मीद और अधिकार के भाव से कहा कि "बहुत सुन ली तुम्हारी बातें- सुबह बैंक से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ो" तो विज ने  आर एस एस के आदेश को मना नहीं कर पाए और अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उस पहले उपचुनाव से कर डाली। उस दौरान ताजा-ताजा महमकांड प्रदेशवासियों के दिलों में खौफ बिठाए हुए था। ग्रीन ब्रिगेड के आतंक से लोग पीड़ित थे। प्रदेश भर में माहौल खराब था। आम व्यक्ति डरा- सहमा था। उन्होंने उपचुनाव लड़ा और जनता के आशीर्वाद से वह चुनाव जीत गए। उससे पहले सत्ता पक्ष ही उप चुनाव जीतती है ऐसी मान्यता थी। विज ने इस रिकॉर्ड को तोड़ते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। अनिल विज के इलेक्ट्रॉन राजनीतिक जीवन की शुरुआत इस चुनाव से हुई। लेकिन मात्र 9 माह के बाद हुए प्रदेश में आम चुनावों के दौरान विज हार गए। लेकिन अब विज संगठनात्मक रूप से पूरी तरह से सक्रिय हो गए और पार्टी द्वारा दी गई जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करते गए उनकी वफादारी और काबिल सोच के चलते पार्टी ने उन्हें युवा मोर्चा अध्यक्ष के रूप में बड़ी जिम्मेदारी सौंप डाली।

अचानक - अकारण संघ के एक बड़े अधिकारी ने विज को बुलाकर ले लिया था इस्तीफा

इस राजनीतिक सफर में अनिल विज को 1995 में अचानक एक दिन संघ के एक बड़े अधिकारी ने उन्हें बुलाकर पार्टी से इस्तीफा देने की बात कह डाली। विज ने इसका कारण पूछते हुए कहा कि पहले मेरी नौकरी छुड़वा दी और अब मेरी पार्टी क्यों छुड़वा रहे हो। कई बार कारण पूछे जाने पर भी उन्हें इसका उत्तर नहीं मिला और कहा गया कि आप संघ के एक अच्छे और मजबूत कार्यकर्ता हो और आदेश को मानते हुए पार्टी छोड़ दो। उसी वक्त अनिल विज ने वही पार्टी से अपना त्यागपत्र दे दिया। लेकिन जनता के दिलों में बस चुके थे। अनिल विज 1 साल बाद हरियाणा विधानसभा चुनावों में जनता के बेहद दबाव के कारण चुनाव लड़े, हालांकि उन्होंने लाख बार कहा कि मैं पार्टी के खिलाफ नहीं लडूंगा, लेकिन उनके कार्यकर्ताओं ने इसे बगावत नहीं बताते हुए कहा कि आप पार्टी के सदस्य नहीं हो, इसलिए यह बगावत नहीं कही जा सकती और जनता के आशीर्वाद से वह 1996 में एक निर्दलीय विधायक बने और बनी बंसीलाल की सरकार में उन्होंने समर्थन दिया। उसके बाद हुए 2000 के चुनाव में भी वह अपने प्रतिद्वंदी को परास्त करते हुए विजयी हुए। लेकिन 2005 के चुनाव में वह 550 मतों से चुनाव हार गए।

टिकट देने की खबर फ्लैश के बाद विज को दी गई थी भाजपा की सदस्यता

विज के अनुसार आरएसएस और भाजपा के कई वरिष्ठ लोगों द्वारा उन पर पार्टी में दोबारा आने के लिए खूब दबाव बनाया गया। लेकिन हमेशा विज का उत्तर एक ही रहा कि उन्हें पार्टी में से निकालने का कारण बताया जाए। 14 साल के इस कठिन बनवास के बाद 2009 में भाजपा के तत्कालीन हरियाणा प्रभारी विजय गोयल द्वारा उनकी सम्मानपूर्वक वापसी करवाई गई। लेकिन यह वापसी भी कैसे और किन परिस्थितियों में हुई, यह भी बेहद अचरज भरी थी। क्योंकि विजय गोयल ने अनिल विज को बंगाली मार्केट स्थित अपने कार्यालय दिल्ली में बुलाया। जहां वह उनसे मिलने अपने 25 कार्यकर्ता साथियों के संग पहुंचे और उसी दौरान विजय गोयल उन्हें वहां बिठाकर थोड़ी देर में आने की बात कहकर निकल गए। लेकिन वहां कार्यालय में लगे एक टीवी पर अंबाला छावनी से अनिल विज को भाजपा को ही टिकट देने की ब्रेकिंग को देख वह सभी अचंभित हो गए। यह सब देख यह सभी भाजपा के मुख्य कार्यालय पहुंचे। जहां इनकी मुलाकात तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष भाजपा राजनाथ सिंह के साथ हुई। विजय गोयल से मिलने के बाद जब विज ने बिना बातचीत हुए टिकट की खबर फ्लैश करने का कारण पूछा तो विजय गोयल ने इसे पार्टी का निर्णय बताया और जब इसके उत्तर में विज ने कहा कि वह पार्टी के सदस्य नहीं हैं और ना ही टिकट के लिए उन्होंने अप्लाई किया है तो मौके पर ही सदस्यता के रूप में उनकी पर्ची काट दी गई।

14 साल के दौरान बंसीलाल -चौटाला के मंत्री के ऑफर को भी ठुकरा चुके हैं विज

बता दें कि अभी तक अंबाला छावनी से अनिल विज 7 बार चुनाव जीत चुके हैं। फिलहाल वह 11 साल से भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। अनिल विज अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन में कभी किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल नहीं हुए। जबकि 1996 में बंसीलाल जब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, उनके द्वारा मंत्री बनाए जाने के ऑफर को भी विज ने ठुकरा दिया था और सन 2000 में ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व में प्रदेश में इनेलो की सरकार थी, चौटाला ने पार्टी के दो दिग्गज पंजाबी नेताओं अशोक अरोड़ा और ओमप्रकाश महाजन की जिम्मेदारी अनिल विज को पार्टी ज्वाइन करने के लिए मनाने को दी थी। मनाए जाने पर इनाम के रूप में ना केवल अनिल विज को बल्कि ओपी महाजन को भी मंत्री बनाया जाना था।  इस कोशिश में महाजन 2 दिन तक विज के निवास पर डटे रहे। लेकिन उनके पथ- सोच और विचारधारा से अलग नहीं कर पाए।

प्रस्तुति: चन्द्र शेखर धरणी