Varuthini Ekadashi

वरुथिनी एकादशी के दिन करें श्री हरि विष्णु के साथ देवी तुलसी की पूजा, देखें क्या है खास

Hari-Vishnu

Varuthini Ekadashi

एकादशी तिथि को बेहद शुभ माना गया है। इस दिन सृष्टि के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा होती है। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह श्री हरि को बेहद प्रिय है। इस साल यह तिथि 04 मई को पड़ रही है। इसके अलावा इस पुण्यदायी मां तुलसी की पूजा का भी खास महत्व है, 

।।तुलसी कवच।।
मन ईप्सितकामनासिद्धयर्थं जपे विनियोग: ।

तुलसी श्रीमहादेवि नम: पंकजधारिणी ।
शिरो मे तुलसी पातु भालं पातु यशस्विनी ।।

दृशौ मे पद्मनयना श्रीसखी श्रवणे मम ।
घ्राणं पातु सुगंधा मे मुखं च सुमुखी मम ।।

जिव्हां मे पातु शुभदा कंठं विद्यामयी मम ।
स्कंधौ कह्वारिणी पातु हृदयं विष्णुवल्लभा ।।

पुण्यदा मे पातु मध्यं नाभि सौभाग्यदायिनी ।
कटिं कुंडलिनी पातु ऊरू नारदवंदिता ।।

जननी जानुनी पातु जंघे सकलवंदिता ।
नारायणप्रिया पादौ सर्वांगं सर्वरक्षिणी ।।

संकटे विषमे दुर्गे भये वादे महाहवे ।
नित्यं हि संध्ययो: पातु तुलसी सर्वत: सदा ।।

इतीदं परमं गुह्यं तुलस्या: कवचामृतम् ।
मर्त्यानाममृतार्थाय भीतानामभयाय च ।।

मोक्षाय च मुमुक्षूणां ध्यायिनां ध्यानयोगकृत् ।
वशाय वश्यकामानां विद्यायै वेदवादिनाम् ।।
द्रविणाय दरिद्राण पापिनां पापशांतये ।।

अन्नाय क्षुधितानां च स्वर्गाय स्वर्गमिच्छताम् ।
पशव्यं पशुकामानां पुत्रदं पुत्रकांक्षिणाम् ।।

राज्यायभ्रष्टराज्यानामशांतानां च शांतये।
भक्त्यर्थं विष्णुभक्तानां विष्णौ सर्वांतरात्मनि ।।

जाप्यं त्रिवर्गसिध्यर्थं गृहस्थेन विशेषत: ।
उद्यन्तं चण्डकिरणमुपस्थाय कृतांजलि: ।।

तुलसीकानने तिष्टन्नासीनौ वा जपेदिदम् ।
सर्वान्कामानवाप्नोति तथैव मम संनिधिम् ।।

मम प्रियकरं नित्यं हरिभक्तिविवर्धनम् ।
या स्यान्मृतप्रजा नारी तस्या अंगं प्रमार्जयेत् ।।

सा पुत्रं लभते दीर्घजीविनं चाप्यरोगिणम् ।
वंध्याया मार्जयेदंगं कुशैर्मंत्रेण साधक: ।।

सास्पिसंवत्सरादेव गर्भं धत्ते मनोहरम् ।
अश्वत्थेराजवश्यार्थी जपेदग्ने: सुरुपभाक ।।

पलाशमूले विद्यार्थी तेजोर्थ्यभिमुखो रवे: ।
कन्यार्थी चंडिकागेहे शत्रुहत्यै गृहे मम ।।

श्रीकामो विष्णुगेहे च उद्याने स्त्री वशा भवेत।
किमत्र बहुनोक्तेन शृणु सैन्येश तत्त्वत: ।।

यं यं काममभिध्यायेत्त तं प्राप्नोत्यसंशयम् ।
मम गेहगतस्त्वं तु तारकस्य वधेच्छया ।।

जपन् स्तोत्रं च कवचं तुलसीगतमानस: ।
मण्डलात्तारकं हंता भविष्यसि न संशय: ।।

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